जानवरों पर प्रयोग न करने के लिए विकल्प

दुनिया के सबसे दूरदर्शी वैज्ञानिक जानवरों पर प्रयोग नहीं करते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि अन्य प्रजातियों की शरीर विज्ञान मनुष्यों से भिन्न है, इसलिए वे जानवरों पर प्रयोगों से प्राप्त परिणामों को मनुष्यों पर सटीकता से लागू नहीं कर सकते हैं. जानवरों पर दर्दनाक और घातक प्रयोग करना बेहद क्रूर, बेकार और अनावश्यक है, खासकर तब, जब पशुओं पर होने वाले परीक्षणों के स्थान पर इस्तेमाल होने वाली बेहतर तकनीक पहले से ही मौजूद हैं और उन्हें लगातार विकसित किया जा रहा है.

भारत में जानवरों को प्रयोग से बचाने के लिए कुछ कानून हैं. वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972, मेंढकों और संरक्षित प्रजाति के जीवों पर प्रयोगों को पूरी तरह से प्रतिबंधित करता है और द प्रिवेंशन ऑफ क्रूएल्टी टू एनिमल्स एक्ट, 1960 यह कहता है कि जब भी संभव हो जानवरों पर प्रयोग करने से बचना चाहिए. PETA-इंडिया के वैज्ञानिकों ने अपनी विशेषज्ञताओं का प्रयोग करते हुए अधिकारियों को यह समझाया है कि जानवरों पर प्रयोग करने से हमेशा बचा जा सकता है.

नई तकनीकी खोजों का उपयोग करके जीवों का इस्तेमाल किए बैगर की गई रिसर्च बार-बार क्रूर पशु प्रयोगों की तुलना में अधिक मानव-प्रासंगिक और सटीक साबित हुई हैं. यहां पशुओं का प्रयोग किए बगैर उपलब्ध रिसर्च विधियों और उनके लाभों के कुछ उदाहरण दिए गए हैं:

इन विट्रो टेस्टिंग

इन विट्रो परीक्षणों में शोधकर्ता अधिक सटीक रूप से बता पाए हैं कि ड्रग्स, रसायन, सौंदर्य उत्पाद और अन्य उपभोक्ता उत्पाद मनुष्यों को कैसे प्रभावित करेंगे.

हार्वर्ड के वाइस इंस्टीट्यूट ने “ऑर्गन्स-ऑन-चिप्स” विकसित की है, जिनमें मानव अंगों और अंग प्रणालियों की संरचना और कार्यात्मकता की तर्ज पर ही काम करने के लिए एक उन्नत प्रणाली द्वारा विकसित मानव कोशिकाएं होती हैं, ताकि खोजार्थी जहरीले परीक्षणों और रोग अनुसंधान के लिए जानवरों के बजाय चिप्स का उपयोग कर सकें. ये चिप्स बीमारियों, दवाओं की प्रतिक्रियाओं और मानव शरीर विज्ञान की सही जानकारियां उपलब्ध करवा सकती हैं, जो जानवरों पर होने वाले आदिम प्रयोगों की तुलना में अधिक सटीक हैं. कुछ कंपनियां तो इन चिप्स का प्रयोग करना शुरू भी कर चुकी हैं, जिससे अन्य शोधकर्ता जानवरों की जगह इन चिप्स का उपयोग कर सकते हैं.

एलर्जी की प्रतिक्रिया जानने के लिए जानवरों को दवाओं के इंजेक्शन या उनकी मुंडित त्वचा पर दवा लगाकर परीक्षण किए जाते रहे हैं. जिनकी जगह पर CeeTox, Inc ने, साज-सज्जा के सामान, चिकित्सा उपकरण और अन्य दवाओं के लिए एक पशु-निषेध त्वचा एलर्जी परीक्षण विकसित किया है. सामान्य इंसानी त्वचा के प्रमुख लक्षणों को हूबहू दर्शाने वाला MatTek’s EpiDerm™- नामक मानव कोशिका आधारित एक त्रिआयामी टिश्यू मॉडल उत्पाद विकास, नियामक परीक्षण और बुनियादी खोजपूर्ण अनुसंधान अनुप्रयोगों के लिए जानवरों की जगह इस्तेमाल किया जा सकता है.

इस बीच, EpiSkin ने त्रिआयामी आंखों के मॉडल बनाए हैं. कंपनी के अनुसार, “पुनर्निर्मित टिश्यू एक स्तरीकृत और सुव्यवस्थित एपेथीलियम का निर्माण करता है जो बनावट, रूप और कार्य करने के हिसाब से इंसानी कॉर्निया के जैसा है जिसमें बेसल, विंग और म्युकस प्रोडक्शन सैल्स भी होती हैं. परीक्षणों और बुनियादी जैव चिकित्सा अनुसंधान विधियों के लिए इस्तेमाल होने वाले खरगोशों और अन्य जानवरों की जगह इस तकनीक को सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया जा सकता है.

साल 2016 में, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने इन विट्रो टेस्टिंग में पशुओं पर होने वाले प्रयोगों को हटाने के लिए ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स अधिनियम में संशोधन किया है और आर्थिक सहयोग और विकास-परीक्षण संगठन ने त्वचा और आंखों की जलन और साफ-सफाई के परीक्षणों के लिए त्रिआयामी पुनर्निर्माण मॉडलों का उपयोग कर प्रयोग करने की मान्यता प्रदान की है.

कंप्यूटर (इन सिलिको) मॉडलिंग

जानवरों पर प्रयोग रोकने के एक अन्य मानवीय विकल्प इन सिलिको या कम्प्यूटेशनल मॉडल का उपयोग किया जा रहा है, जो रसायनों की खतरनाक क्षमता के बारे में जानकारी प्रदान कर सकता है. इन विधियों में जहर के डेटा के साथ-साथ मात्रात्मक संरचना-गतिविधि संबंध (quantitative structure-activity relationships(QSAR) को दोबारा मापने के लिए डेटाबेस होते हैं, जो खतरनाक क्षमता की पहचान कर सकते हैं. रासायनिक परीक्षणों के लिए क्यूएसएआर (QSARs) पर भरोसा लगातार बढ़ता जा रहा है.

ह्युमन-पेशेंट सिम्युलेटर

ह्युमन-पेशेंट सिम्युलेटर ताउम्र चलने वाले मजबूत और उच्च तकनीक वाले उपकरण हैं, जो जानवरों को नुकसान पहुंचाए बिना चिकित्सा प्रशिक्षण के लिए काम आते हैं.

ट्रामामैन एक सांस लेने वाले और रक्त प्रवाह मानव धड़ का एक बूत बनाता है, जिसमें त्वचा और टिश्यू, पसलियों और आंतरिक अंगों की असली परतें होती हैं, जो दर्दनाक चोटों वाले रोगियों की जिंदगी बचाने के लिए सर्जरी करने के लिए डॉक्टरों को प्रशिक्षित करता है. यह अत्याधुनिक सिम्युलेटर पोर्टेबल है, पशुओं पर किए जाने वाले अभ्यासों की तुलना में कम महंगा है, और इसका दोबारा उपयोग किया जा सकता है. अध्ययनों से पता चलता है कि आधुनिक सिम्युलेटर का उपयोग करके सर्जरी सीखने वाले डॉक्टर, पशुओं को काटकर अभ्यास करने वालों की तुलना में अधिक सक्षम हैं, क्योंकि ज्यादातर सिम्युलेटर मानव शरीर रचना विज्ञान आधारित होते हैं, जबकि कुत्ते और सूअर मानव शरीर विज्ञान से भिन्न होते हैं.

सशस्त्र सेना मेडिकल कॉलेज ह्युमन-पेशेंट सिम्युलेटर का उपयोग करने वाला एक सफलतम उदाहरण है. यह उपकरण मौत की स्थितियों को भी हूबहू बना सकता है, जिसमें पोलीट्रॉमा, हृदय और सांस लेने की आपात स्थितियां, और बहुत कुछ शामिल हैं.

मानव स्वयंसेवकों से मदद

वैज्ञानिक समुदाय के लिए अमूल्य संपत्ति और मानव चिकित्सा की प्रगति के लिए मानव स्वयंसेवक हमेशा उपलब्ध रहे हैं, और हमेशा रहेंगे.

मानव स्वयंसेवकों की मदद से फंग्सनल मैगनेटिक रेजेनैन्स इमेजिंग (एफएमआरआई (fMRI)) जैसी एडवांस्ड ब्रेन इमेजिंग और रिकॉर्डिंग टैकनिक्स जानवरों पर होने वाले भयानक मस्तिष्क प्रयोगों की जगह इस्तेमाल की जा सकती है.

शोधकर्ता “माइक्रोडोज़िंग” नामक एक विधि का भी उपयोग कर रहे हैं, जिसमें मानव स्वयंसेवकों को एक बार छोटी सी दवा की खुराक दी जाती है और सुविकसित इमेजिंग तकनीकों का उपयोग कर यह जानकारी जुटा ली जाती है कि दवा शरीर में कैसे व्यवहार करती है. ऐसा बड़े पैमाने पर मानव परीक्षणों से पहले मनुष्यों में दवा की सुरक्षा और मेटाबोलिज्म की महत्वपूर्ण जानकारियां इकट्ठा करने के लिए किया जाता है. माइक्रोडोज़िंग का इस्तेमाल जानवरों पर होने वाले कुछ परीक्षणों की जगह किया जाता है और यह दवा के उन तत्वों की पहचान करने में मदद करता है जो मनुष्यों में काम नहीं करते हैं, ताकि उन तत्वों को सरकार जानवरों पर होने वाले आवश्यक परीक्षणों के लिए अनावश्यक रूप से न इस्तेमाल करे.



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