शिक्षा और प्रशिक्षण में पशुओं का इस्तेमाल

हर साल, दुनिया भर में लाखों जानवरों को कक्षाओं में काट दिया जाता है. उनके फॉर्मलडिहाइड-संरक्षित शवों को विभिन्न स्थानों से छात्रों की प्रयोगशालाओं में चीरफाड़ करने के लिए भेजा जाता है. अजीब तरह के परीक्षणों के लिए ही कत्लखानों में मारी जाने वाली मादा सूअरों के गर्भ से उनके बच्चों को काटकर निकाल लिया जाता है और बेघर बिल्लियों को अक्सर बायोलॉजिकल सप्लाई होम्स द्वारा बंदी बना लिया जाता है. इतना ही नहीं, मेंढकों को जंगलों से पकड़कर बंदी बना लिया जाता है, जोकि एक स्थानीय इकोसिस्टम पर कहर बरपाने ​​वाली प्रथा है. कई अन्य प्रजातियों का उपयोग कक्षाओं में अभ्यासों के लिए भी किया जाता है, लेकिन जैसा कि भारत में कई शिक्षण संस्थानों और अन्य जगहों पर इस बात की जागरूकता है कि छात्रों को पढ़ाने के कई बेहतर तरीके मौजूद हैं.

आज उन्नत तकनीक मौजूद हैं. जानवरों के विच्छेदन और उनपर क्रूर प्रयोग करने जैसे क्रूर और रूढ़िवादी तरीके छात्रों को विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ने से रोकते हैं. यही कारण है कि दुनिया भर के शिक्षण संस्थान शैक्षणिक रूप से छात्रों को प्रशिक्षित करने के लिए जानवरों को इस्तेमाल करने की बजाय वर्चुअल विच्छेदन, कंप्यूटर लर्निंग, क्लीनिकल ​​अभ्यास और ह्युमन-पेसेंट सिम्युलेटर जैसे बेहतर उपकरणों को अपना रहे हैं.

पशु विच्छेदन और प्रयोग पर मौजूदा प्रतिबंध

2012 में, पर्यावरण और वन मंत्रालय के तत्कालीन सचिव ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया के लिए एक ऐतिहासिक निर्देश जारी किया था, जिसमें स्नातक और स्नातकोत्तर छात्रों द्वारा पशु विच्छेदन और प्रयोग को अनिवार्य रूप से खत्म करने और पशुओं को इस्तेमाल किए बिना बेहतर अध्यापन विधियों के उपयोग को बढ़ावा देने की बात कहा गई थी. मंत्रालय ने माना कि पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 की धारा 17 (2) (डी), विशेष रूप से यह सुनिश्चित करती है कि “जहाँ कहीं भी संभव हो वहाँ जानवरों पर प्रयोग करने से बचा जाए. उदाहरण के लिए, मेडिकल स्कूलों, अस्पतालों, कॉलेजों और उन जैसे संस्थानों में क्रूर परीक्षणों की जगह अन्य शिक्षण उपकरण जैसे किताबें, मॉडल, फिल्मों का उपयोग किया जा सकता है.”

इस ऐतिहासिक फैसले के बाद डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया ने एक साल बाद स्नातक और स्नातकोत्तर डेंटल छात्रों को प्रशिक्षित करने के लिए जानवरों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की. साल 2014 में, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने स्नातक और स्नातकोत्तर जीव विज्ञान और जीवन विज्ञान पाठ्यक्रमों में पशु विच्छेदन और प्रयोग (प्रशिक्षण उद्देश्यों के लिए) पर प्रतिबंध लगाने वाली एक अधिसूचना जारी की. इसके अलावा फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया ने भी स्नातक और स्नातकोत्तर दोनों पाठ्यक्रमों में शिक्षण उद्देश्यों के लिए जानवरों के उपयोग को समाप्त कर दिया.

मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने स्नातक पाठ्यक्रमों में पशुओं की चिरफाड़ करने और प्रयोग करने पर रोक लगा दी है और अन्य प्रशिक्षण उद्देश्यों के लिए कुछ प्रजातियों (जैसे बिल्लियों, कुत्तों और बंदरों) के उपयोग को प्रतिबंधित कर दिया है. लेकिन निराशाजनक रूप से, कुछ स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम अभी भी कक्षा अभ्यास के लिए जानवरों के उपयोग करने के लिए कहते हैं.

केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने 2001 में अपने सीनियर सैकेंडरी स्कूल के व्यावहारिक जीव विज्ञान पाठ्यक्रम से पशु विच्छेदन को हटा दिया, जिसके अनुसार सभी संबंधित संस्थानों के प्रमुख शिक्षकों को निर्देश दिया गया. इससे पहले केवल उच्च स्तर की कक्षाओं में ही व्यावहारिक प्रशिक्षण के लिए पशु विच्छेदन का उपयोग किया जा रहा था.

मानवीय शिक्षा उपकरण

यह सुनिश्चित करने के लिए कि छात्रों को सबसे उन्नत शिक्षा प्राप्त हो, शिक्षकों को उपलब्ध सर्वोत्तम शिक्षण साधनों का उपयोग करना चाहिए, जोकि जानवर नहीं हैं. व्यापक रूप से उपलब्ध गैर-पशु शिक्षण विधियां अकादमिक रूप से बेहतर हैं और जानवरों की चिरफाड़ करने या उन पर प्रयोग करने की तुलना में अधिक लागत प्रभावी साबित हुई है. शिक्षक क्रूरता-मुक्त शिक्षण विधियों को पंसद करते हैं, क्योंकि वे छात्रों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अभ्यासों को अनुकूलित और दोहरा सकते हैं, और वे जानवरों की चिरफाड़ या नुकसान पहुंचाने के संकट का अनुभव किए बिना छात्रों को कुशल और आत्मविश्वासी बनने में मदद कर सकते हैं.

पशु शरीर रचना विज्ञान और शरीर विज्ञान के अध्ययन के लिए उपयुक्त कई सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं. जिनके कुछ उदाहरणों में मेंढ़क और केंचुए के लिए डिजिटल फ्रॉग 2.5, टैक्टस टेक्नोलॉजी के त्रिआयामी वी-मेंढक, ग्लेनको के मेंढक और केंचुए के पारस्परिक विच्छेदन और मछली, मेंढक, ट्रांसजेनिक मक्खियों, सूअरों के भ्रूणों, बिल्लियों और अकशेरुकी जीवों की विशेषता वाले बायोलैब कार्यक्रम शामिल हैं.

हाल ही में, गुजरात की एक कंपनी डिज़ाइनमेट ने वर्चुअल मेंढक विच्छेदन ऐप Froggipedia बनाया है, जिसे ऐप्पल ने 2018 के शीर्ष iPad ऐप घोषित किया और PETA यूएस द्वारा एक पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया. एप्लिकेशन छात्रों को मेंढकों के साथ-साथ जानवरों को नुकसान पहुंचाए बिना दूसरी अन्य प्रजातियों की संरचनात्मक और शारीरिक विशेषताओं के कई विकास चरणों को समझने में सक्षम बनाता है.

ह्युमन-पेसेंट सिम्युलेटर का फार्माकोलॉजी, फिजियोलॉजी, और क्रिटीकल पुनरुत्थान स्किल्स सिखाने के लिए व्यापक रूप से मेडिकल छात्र प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में उपयोग किया जाता है, और चिकित्सा प्रशिक्षण में सर्जिकल सिम्युलेटरों का सबसे ज्यादा उपयोग किया जाता हैं. इसके अलावा, तंत्रिकाओं के बारे में सीखने वाले डेंटल छात्र जानवरों को चोट पहुंचाने के बजाय वर्चुअल फिजियोलॉजी के सिम्मसल (SimMuscle) सॉफ्टवेयर का लाभ ले सकते हैं.



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