फ़र

जानवरों पर अत्याचार करके उनकी खाल से कपड़े, बैग, पर्स, सेंडिल, टोपियाँ, दस्तानें, जूते एवं अन्य उत्पाद जो लैदर का समान बेचने वाली दुकानों में दिखते है का निर्माण किया जाता है। फ़र उन पशुओं से प्राप्त होता है जिनको जंगलों से पकड़ कर लाया जाता है या फिर पशु पालन केन्द्रों में प्रजनन कर तैयार किया जाता है।

जंगलों से जानवरों को पकड़ने के लिए शिकारी गुप्त तरीकों से जाल बिछाते हैं और फिर कुछ दिनों या हफ्तों के बाद जाकर देखते हैं कि उनमे जानवर फसा की नहीं। जाल बिछाने वाले शिकारी जब तक जाकर जाल की जांच करें तब तक उसमे फँसने वाले जानवर की हड्डियों टूट चुकी होती हैं वो दर्द, पीड़ा, भूख एवं प्यास से व्याकुल रहते हैं। पकड़े गए 25 फीसदी जानवर शिकारियों के द्वारा मौत के घाट उतार दिये जाते है जबकि बहुत से जानवर घबराहट, बेचैनी व कैद से भागने की छटपटाहट में खुद के शरीर को चोटिल कर लेते हैं। बिछाये गए जाल में अक्सर बिना फ़र वाले जानवर भी फस जाते हैं जिंहे इस उद्योग में “कचरा” समझा जाता है।

पशु पालन केन्द्रों में इन जानवरों को छोटे एवं तंग पिंजरों में कैद करके रखा जाता है वा बाद में उनकी खाल उतारने के लिए उन्हे बिजली के करंट देना, दम घोटना व उनके शरीर पर जलते सरिये से मुहर लगाने जैसी यातनाएं दी जाती हैं। इनमे से बहुत से तरीके 100 फीसदी प्रभावी नहीं होते व खाल उतारने के दौरान बहुत से जानवर पीड़ा एवं दर्द से जाग जाते हैं। भारत में खाल के लिए पाला जाने वाला पहला जीव खरगोश था।

फ़र का विकल्प

बहुत से उत्पाद सिंथेटिक सामग्री से बने होते है जिंका लुक एंड फील हूबहू फ़र की तरह होता है। आप इन उत्पादों को खरीदते व इस्तेमाल करते समय गर्व महसूस कर सकते हो की आप ने अपने पहनावे के लिए पशु पर क्रूरता करने वाले उद्योग का समर्थन नहीं किया है।



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