चमड़ा

चमड़ा मरी हुई खाल है

चमड़े की खरीद सीधे रूप से कष्टदायी बूचड़खाने को बढ़ावा देती हैI खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय और चमड़ा निर्यात परिषद के आंकड़ों के अनुसार, भारत दुनिया के सबसे बड़े चमड़ा निर्माताओं में से एक है।  भारत से निर्यात होने वाले चमड़े के कीमत इसके मांस निर्यात से 10 गुना अधिक हैI इसलिए यह स्पष्ट है कि पीड़ित गायों और अन्य मवेशियों का क्रूरता से उनका कत्ल किया जा रहा है ताकि चमड़ा उद्योग उनकी खाल बेचकर लाभान्वित हो सके।

मानें या न मानें, भारत में गायों के साथ दुनिया में सबसे क्रूर बर्ताव किया जाता है।  चूंकि भारत में स्वस्थ, जवान मवेशियों को मारना गैरकानूनी है, इसलिए उन्हें अक्सर जानबूझकर मारा जाता है। उनके पैर तोड़ दिए जाते हैं, या उन्हें जहर दे दिया जाता हैं, ताकि कानूनी तौर पर उन्हें कत्ल करने लायक साबित किया जा सके, लेकिन कई बूचड़खानों के कर्मचारी तो कानून की इतनी परवाह भी नहीं करते।  हमने स्वस्थ बछड़ों के साथ-साथ उन गायों को भी सरेआम कटते देखा है जो अभी भी दूध देने में सक्षम थीं।

मवेशियों को नकेल (नाक से रस्सी) से कस कर बांध लिया जाता है, और उन्हें जबरन कत्ल करने के लिए बेरहमी से पीटते हुए सैकड़ों किलोमीटर से ज्यादा पैदल ले जाया जाता है।  लंबी दूरी के लिए  उनको तप्ति धूप में छोटे ट्रकों में एक दूसरे के ऊपर बुरी तरह ढूंसकर भरा जाता है व परिवहन किया जाता है। उन्हें ले जाते वक्त इतनी ढूंसकर भरने की वजह वे सारे आपस में एक दूसरे के भार के नीचे दाब जाते है और घुटन व चोटें लगने के कारण खौफनाक तरीके से मर जाते हैं।  गायों को ले जाने वाले ट्रक टूटी हुई खराब बजरी वाली उबड़-खाबड़ सड़कों और पहाड़ी रास्तों से बड़ी तेज गति से गुजरते हैं, जिससे गायों को चोटें लगती है और उनकी मौतें हो जाती हैं।

पैदल ले जाते वक्त, भूख, थकावट, चोट और निराशा से मवेशी गिर जाते हैं।  श्रमिक हर जोड़ से उनकी पूंछ तोड़ देते हैं और उनकी आँखों में तम्बाकू, मिर्च और नमक रगड़ कर जबरदस्ती करते हैं। हर बार एक गाय पूंछ टूटने के बाद उतना ही दर्द महसूस करती है, जितना हमें हमारी उंगली टूटने पर होता है। उन्हें कभी भी भोजन या पानी की एक बूंद भी नहीं दी जाती है।

जब तक वे कत्लखाने में पहुंचते हैं, तब तक कुछ जानवर मर चुके होते हैं, और कई इतने बीमार और घायल होते हैं कि श्रमिकों को उन्हें अंदर खींचना पड़ता है और एक बार फिर उनकी भावनाओं या पीड़ा को ध्यान में रखे बिना उन्हें दर्द सहन करने के लिए मजबूर किया जाता हैI अपने साथियों को अपनी आंखो के सामने कटते हुए वो अपनी मौत को सामने से देखते हैं और यदि कोई उनकी ओर ध्यान से देखे तो उनकी आंखों में आतंक और दहशत झलक साफ रूप से दिखाई दे जाएगी। एक बार बूचड़खानों में अंदर जाने के बाद, अन्य मवेशियों के ठीक सामने उनका गला काट दिया जाता है।  इंतजार कर रहे मवेशियों को यह सब जबरदस्ती दिखाया जाता है। कुछ मवेशियों के पैर काट दिए जाते हैं, जबकि वे अभी भी जिंदा होते हैं, और कुछ की जिंदा रहते ही खाल उधेड़ दी जाती है जिससे धीमी एवं दर्दनाक मौत होती है।  श्रमिक अक्सर सूअरों के शरीर के अंदर लोहे की रॉड घुसाकर मार देते हैं।

“जब गायों को लादा जा रहा था, तो मैं एक गाय को अपना खून बहते देख कहारते हुए सुन रहा थाI उसकी नाक में बेढंग तरीके से रस्सी बांधी गई थी, और क्रूर श्रमिकों द्वारा बार-बार रस्सी खींचने और अपने साथी मवेशियों के साथ बंधा होने, 12 घंटे तक चलने के कारण उसकी नाक को बुरी तरह कट चुकी थी वा उसके चेहरे से लगातार खून नीचे गिर रहा थाI” – PETA इंडिया के जांचकर्ता

डेयरी उद्योग की भूमिका

अहिंसक जूता उद्योग के लिए डेयरी उद्योग खाल प्राप्त करने का एक आम स्रोत है। चूंकि डेयरी उद्योग में नर बछड़ों से कोई फायदा नहीं होता है, इसलिए उन्हे कत्लखानों में कटने के लिए बेच दिए जाता है जबकि कुछ को जानबूझकर मौत के घाट उतारा जाता है ताकि उनकी खाल को जूता बनाने वाली कंपनियों को बेचा जा सके।

डेयरी उद्योग न सिर्फ क्रूर है बल्कि इससे इंसानों में बीमारियां भी फैलती हैंI

वास्तव में, यह स्पष्ट है कि दूध स्वास्थ्य वर्धक भोजन नहीं है:

  • दूध से पेट से संबंधित क्रोहन रोग होता हैं, जो सैकड़ों हजारों लोगों को प्रभावित करता हैI इसके मुख्य लक्षण थकान, तत्काल दस्त और वजन घटना हैंI इस बीमारी के कारण सूजन, गहरे अल्सर और आंतों में घाव भी हो जाते हैंI
  • डेयरी उत्पादों से हृदय रोग, कुछ प्रकार के कैंसर, मधुमेह, एलर्जी, अस्थमा और ऑस्टियोपोरोसिस जैसी बिमारियां भी हो सकती हैंI कई जानकार डॉक्टर और पोषण विशेषज्ञ डेयरी उत्पादों के उपभोग करने के खिलाफ बोल रहे हैंI विश्व प्रसिद्ध स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉI जॉन मैकडॉगल दूध को “तरल मांस” बताते हैं क्योंकि उनका मानना ​​है कि यह जानवरों के मांस की तरह ही अस्वस्थ हैI चाइल्ड केयर पर अमेरिका के प्रमुख अधिकारी स्वर्गीय डॉI बेंजामिन स्पॉक ने कहा था कि शिशुओं को कभी भी पशु का दूध नहीं पीलाना चाहिए क्योंकि इससे एनीमिया, एलर्जी और इंसुलिन पर निर्भर मधुमेह जैसे रोग हो सकते हैंI

केवल मवेशी ही ऐसे जानवर नहीं हैं, जिन्हें उनकी खाल के लिए मारा जाता है

अधिकांश चमड़े के उत्पाद मवेशियों और बछड़ों की खाल से बनाए जाते हैं, मगर इसके साथ ही उन घोड़ों, भेड़ों, मेमनों, बकरियों और सूअरों की खाल से भी चमड़ा बनाया जाता है, जो मांसाहार के लिए मार दिए जाते हैंI इन जानवरों में से कई गंभीर भीड़, बेहोश किए बिना नपुंसक बनाए जाने, ब्रांडिंग, पूंछ काटे जाने और सींग उखाड़े जाने की भयावहता का शिकार होते हैंI ज़ेबरा, बाइसन, बोअर्स, हिरण, कंगारू, हाथी, ईल, शार्क, डॉल्फ़िन, सील, वालरस, मेंढक, मगरमच्छ, छिपकली और साँप सहित अन्य प्रजातियां भी विशेष रूप से उनकी खाल के लिए मार दी जाती हैंI चूहों, बिल्लियों और आवारा कुत्तों को उनकी खाल के लिए भी मार दिया जाता है, लेकिन लोग आमतौर पर इन जानवरों से बने उत्पादों को खरीदने के लिए अनिच्छुक होते हैं, इसलिए उनकी खाल पर अक्सर “चमड़े” का लेबल लगाकर बेच दिया जाता हैI मगरमच्छ जैसे वन्यजीवों से प्राप्त होने वाला बहुत सारा चमड़ा, असल में अवैध रूप से शिकार किए गए लुप्त होते जानवरों की खाल से बना होता हैI जब आप चमड़ा खरीदते हैं, तो आप यह सुनिश्चित नहीं कर सकते हैं कि यह किस प्रकार के जानवर की खाल से बना हैI

घड़ियाल जैसे विदेशी जानवरों को उनकी खाल के लिए फैक्टरी फार्मों में पाला जाता हैंI घड़ियाल के फार्मों में, एक छोटी सी इमारत में 600 जानवरों को रखा जा सकता हैI ये इमारतें बासी मांस, घड़ियासों के मल और गंदे स्थिर पानी की वजह से सड़ रही होती हैंI हालांकि प्राकृतिक रूप से घड़ियाल कभी-कभी 60 साल के हो जाते हैं, मगर इन फार्मों पर उन्हें आमतौर पर 4 साल की उम्र से पहले ही मार दिया जाता हैI

इन फार्मों पर घड़ियालों को अक्सर हथौड़ों से पीटा जाता है, जिन्हें कभी-कभी मरने में दो घंटे तक लग जाते हैंI सांप और छिपकलियों की जिंदा ही खाल उधेड़ ली जाती है, क्योंकि इस उद्योग में यह प्रचलित है कि जीवितों की खाल उधेड़ने से निर्मित चमड़ा अधिक कोमल होता हैI दस्ताने बनाने के लिए कभी-कभी बकरियों के बच्चों को जिंदा उबाला जाता है, और जानबूझकर किए गए गर्भपात और कत्ल की गई गर्भवती गायों और भेड़ों से प्राप्त होने वाले अजन्मे बछड़ों और मेमनों की खालों को विशेष रूप से “शानदार” माना जाता हैI

हाल ही में प्रकाशित हुई अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, थाईलैंड के एक प्रांत में, कुत्तों को बंदी बनाया जाता है और उनमें से 50 से अधिक कुत्तों को भोजन या पानी के बिना एक ही डिक्की में कैद कर दिया जाता है, सिर्फ ब्रीफकेस, कार-सीट कवर, एक फैंसी कोट की सजावट या दूसरे कुत्तों के चबाने के लिए फैंसी रॉहाइड बनाने के लिए बर्बरता से उन कुत्तों को मार दिया हैI

उपभोक्ता आमतौर पर इन उत्पादों की उत्पत्ति से अनजान होते हैं क्योंकि इन वस्तुओं पर अक्सर “मेमना”, “बछड़ा” या “बकरी” का ठपा लगाकर गुमराह किया जाता हैI ऐसा होने के बावजूद भी, यूरोपीय संघ में भी कुत्ते की खाल बेचना या आयात करना अवैध नहीं हैI

“मुंबई में देवनार बूचड़खाने में, भेड़, बकरियां और मवेशी अत्यधिक भीड़ और हड्डी टूटने जैसी स्थितियों में पड़े रहने के लिए मजबूर किए जाते हैंI जब तक वे कटने के लिए खरीद नहीं लिए जाते या मर नहीं जाते, तब तक वे अपने अनुपचारित चोटों और घावों को लिए गंदी जमीन पर पड़े रहते हैंI उन जानवरों को मारने से पहले उन्हें अपने साथियों को मरते हुए देखने के लिए मजबूर किया जाता हैI”

– PETA इंडिया के जांचकर्ता

चमड़े के पर्यावरणीय प्रभाव

चमड़े के कारखाने पर्यावरण पर कहर बरपाते हैंI गंगा के चारों ओर चमड़े के कारखानों को नदी में क्रोमियम जैसी जहरीली धातुएं गिराने के लिए तलब किया गया हैI हर तरह के क्रोमियम वेस्ट को खतरनाक माना जाता हैI चमड़ा कारखानों के कचरे में प्रोटीन, बाल, नमक, चूना, कीचड़, सल्फाइड और एसिड जैसे अन्य प्रदूषक भी बड़ी मात्रा में होते हैंI कारखानों के आसपास भूजल में सीसा, सायनाइड और फॉर्मलाडेहाइड की मात्रा बढ़ी हुई पाई गई हैI

कारखानों के पास काम करने वाले और रहने वाले लोग जहरीले रसायनों के लगातार संपर्क में आने से होने वाली बीमारियों से मर रहे हैंI चमड़ा कारखानों द्वारा गंगा में डाले जाने वाले प्रदूषण को बीमारी के प्रकोप के एक प्रमुख कारण के रूप में चिन्हित किया गया है और इसे समुद्री जानवरों की मौतों का भी मुख्य कारण माना गया हैI ‘यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन’ ने पाया कि एक कारखाने के पास के निवासियों में ल्यूकेमिया का संक्रमण अमेरिकी औसत से पांच गुना अधिक थाI

फेयर ट्रेडमार्क कनाडा के अनुसार, भारत की कई नदियाँ चमड़ा कारखानों के कचरे की वजह से जहरीली हो गई हैंI समूह का कहना है कि पलार नदी के आसपास के क्षेत्र में, 35,000 हेक्टेयर खेत चमड़ा कारखानों के कचरे से प्रभावित हुए हैंI कचरे ने उपजाऊ भूमि की उपज को आधे से कम कर दिया हैI किसानों को अक्सर फसल के नुकसान का कोई मुआवजा नहीं मिलता हैI नतीजतन, उनमें से कई खेती छोड़ने और अपनी जमीन को चमड़ा फैक्टरियों को बेचने के लिए मजबूर हैंI स्थानीय आबादी में, कारखाने की गंदगी से प्रदूषित पानी पीने से स्वास्थ्य समस्याओं की घटनाओं में बहुत अधिक वृद्धि हुई हैI इन स्थितियों में जठरांत्र संबंधी रोग, अस्थमा, बच्चों में वृद्धि संबंधी विषमताएं और माताओं के स्तनों के जहरीले दूध के कारण होने वाले एक प्रकार के दस्त से शिशु प्रभावित हैंI स्थानीय आबादी भी क्षय रोग के प्रति अधिक संवेदनशील हो गई हैI खुद कारखाना कर्मचारी ही चर्म रोगों, बुखार, आंखों की सूजन, फेफड़ों के कैंसर और बांझपने से पीड़ित हैंI फेयर ट्रेडमार्क कनाडा के अनुसार, जब एक एनजीओ ने चमड़ा कारखाने के रसायनों से प्रभावित 13 गांवों की मिट्टी और पानी के नमूनों का परीक्षण किया, तो लगभग हर मामले में, नमूने भारतीय कानून द्वारा दी गई अनुमति सीमा से अधिक पाए गएI कभी अपनी कृषि और फूलों की खेती के लिए प्रसिद्ध रहे गांव, अब उत्पादन नहीं कर पाते हैंI

चमड़ा कारखानों के जहरीले रसायनों के खिलाफ पर्यावरणविदों और नागरिकों का विरोध

भारत में सबसे बड़े चमड़ा कारखानों के गढ़ कानपुर में पर्यावरण कार्यकर्ताओं और ग्रामीणों ने हाल ही में एक साथ मिलकर गंगा में जहरीली गंदगी छोड़ने वाले एक चमड़ा कारखाने के नाले को बंद कर दियाI

इस तथ्य से यह संकेत मिलता है कि चमड़ा कारखानों से निकलने वाले अपशिष्ट को क्रोमियम और चमड़ा शोधन में उपयोग किए जाने वाले अन्य रसायनों से प्रदूषित होने के बावजूद, “उपचारित” और खेतों में सिंचाई लायक बताकर प्रचारित किया जाता हैI लेकिन प्रदूषित पानी ने फसलों को बर्बाद कर दिया है और लगातार मिट्टी को बंजर बना रहा हैI

इस पानी के संपर्क में आने वाले ग्रामीणों को खुजली, चर्म रोग, सुन्नता और पक्षाघात की शिकायत होती हैI पानी पीने वाले पशुधन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा हैI पर्यावरणविदों को डर है कि कारखानों के अपशिष्ट जहरीले रसायन फूड चेन का हिस्सा बन रहे हैं और रिपोर्ट है कि कुछ ग्रामीणों में पहले से ही विषाक्तता के लक्षण दिखाई दे रहे हैंI

चमड़े के विकल्प

उच्च-गुणवत्ता, क्रूरता-मुक्त जूते और सहायक सामान खोजना आसान है जो स्टाइलिश और सस्ते हैंI बस कहीं भी आप खरीदारी करते हैं, आप बिना चमड़े के बनी जैकेट, जूते और सहायक सामानों की विस्तृत रेंज पा सकते हैं, जो कपास, लिनन, रेमी, जूट, कैनवास और सिंथेटिक्स जैसे मैटिरियलों से बनी हैंI शीर्ष डिजाइनर स्पून ग्लास, पॉलीविनाइल क्लोराइड और पीलेदर का भी उपयोग कर रहे हैंI

 



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