PETA इंडिया की अपील के बाद मिज़ोरम ने नन्हें जीवों की रक्षा हेतु सख्त कदम उठाए

Posted on by Shreya Manocha

नन्हें जीवों पर नियंत्रण लगाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली ग्लू ट्रेप पर प्रतिबंध लगाने के लिए PETA इंडिया की अपील के बाद, मिजोरम सरकार के पशुपालन और पशु चिकित्सा विभाग ने अपने सभी उपायुक्तों को एक पत्र जारी किया है कि “अपने अधिकार क्षेत्र के तहत ग्लू ट्रेप के उपयोग और बिक्री को रोकने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएं”। कानून का हवाला देते हुए कहा गया है कि गोंद जाल का उपयोग करके चूहों को पकड़ना “पशु क्रूरता निवरण अधिनियम , 1960 के साथ-साथ वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम (WPA), 1972 का उल्लंघन करता है।

समूह ने अपनी अपील में राज्य सरकार से भारतीय जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड द्वारा जारी किए गए सर्कुलरों को लागू करने के लिए तत्काल कदम उठाने का अनुरोध किया था जिससे ग्लू ट्रेप के क्रूर और अवैध उपयोग पर रोक लगाई जा सके। इससे पहले छत्तीसगढ़गोवा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मेघालयसिक्किमतमिलनाडु और तेलंगाना जैसे राज्य भी इस प्रकार के सर्क्युलर ज़ारी कर चुके हैं।

 

ग्लू ट्रेप जैसे क्रूर उपकरणों का उपयोग “पशु क्रूरता निवारण अधिनियम”, 1960 की धारा 11 के तहत एक दंडनीय अपराध है। इन्हें आम तौर पर प्लास्टिक ट्रे या गत्ते की चादरों को बेहद मज़बूत ग्लू से ढककर बनाया जाता हैं। इस प्रकार के ट्रेप में पक्षी, गिलहरी, सरीसृप, मेंढक और अन्य जानवरों भी अनचाहे में कैद हो सकते है जो “वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972” का उल्लंघन है जिसके अंतर्गत संरक्षित देसी जंगली प्रजातियों का “शिकार” पूर्ण रूप से प्रतिबंधित है। इस प्रकार के ट्रेप में फंसे चूहे या अन्य जानवर भूख-प्यास या अत्यंत पीड़ा के चलते अपनी जान गवा सकते हैं। कुछ जानवर इस ग्लू में अपनी नाक या मुंह फंस जाने के कारण दम घुटने से मर जाते हैं या अन्य आज़ादी की छटपटाहट में अपने ही अंगों को स्वयं कुतरने लगते हैं जिसके चलते खून की कमी के कारण उनकी मृत्यु हो जाती है। इतने पर भी जो जानवर जीवित पाये जाते हैं उन्हें ट्रेप सहित कूड़ेदान में फेंक दिया जाता है या इन्हें कुचलने और डूबने जैसी अधिक बर्बर मौत का सामना करना पड़ता है।

रोडेंट की जनसंख्या को नियंत्रित करने का एकमात्र दीर्घकालिक तरीका किसी क्षेत्र को उनके लिए अनाकर्षक या दुर्गम बनाना है। काउंटर की सतहों, फर्शों और अलमारियाँ को साफ रखकर उनके भोजन के स्रोतों को समाप्त करना और भोजन को च्यू-प्रूफ कंटेनरों में स्टोर करना भी एक अच्छा उपाय है। इन जानवरों को बाहर निकालने के लिए कूड़ेदानों को सील करें और अमोनिया में डूबाकर रुई या कपड़े का एक गोला रखे क्योंकि इन्हें गंध से सख्त  नफरत होती हैं। जानवरों को बाहर निकलने हेतु कुछ दिन देने के बाद, प्रवेश बिंदुओं को फोम सीलेंट, स्टील वूल, हार्डवेयर क्लॉथ या मेटल फ्लैशिंग का उपयोग करके सील करें जिससे यह वापस अंदर न आ सके। किसी भी रोडेंट को घर से निकालने हेतु मानवीय पिंजरे के जाल का उपयोग किया जाना चाहिए और उन्हें 100 गज की दूरी के भीतर छोड़ा जाना चाहिए, क्योंकि अपने प्राकृतिक क्षेत्र से बाहर स्थानांतरित होने वाले जानवरों को पर्याप्त भोजन-पानी खोजने में परेशानी होती है जिसके परिणामस्वरूप इनकी मृत्यु भी हो सकती है।

पिछले वर्ष, PETA इंडिया की अपील पर मिज़ोरम सरकार ने सुअर पालन में प्रयोग होने वाले अवैध जेस्टेशन एवं फेरोइंग क्रेट के खिलाफ भी कार्यवाही की थे।

  

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