PETA इंडिया की अपील के बाद तेलंगाना सरकार ने क्रूर और अवैध ग्लू ट्रेप की बिक्री और उपयोग पर रोक लगाई

Posted on by PETA

PETA इंडिया की अपील के बाद, तेलंगाना सरकार ने राजकीय सर्कुलर जारी करके रोडेंट (चूहा गिलहरी आदि जैसे कतरने वाले जानवर) की जनसंख्या नियंत्रण हेतु इस्तेमाल किए जाने वाले ग्लू ट्रेप के निर्माण, बिक्री और उपयोग को प्रतिबंधित किया। समूह ने अपनी अपील में राज्य सरकार से भारतीय जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड द्वारा जारी किए गए सर्कुलरों को लागू करने के लिए तत्काल कदम उठाने का अनुरोध किया था जिससे ग्लू ट्रेप के क्रूर और अवैध उपयोग पर रोक लगाई जा सके।

पशु चिकित्सा एवं पशुपालन विभाग की निदेशक अनीता राजेंद्र द्वारा ज़ारी किए गए इस आदेश के अंतर्गत, सभी जिला पशु चिकित्सा एवं पशुपालन अधिकारियों (DVAHO) और पशुओं के प्रति क्रूरता रोकथाम हेतु बनाई गई जिला समितियों के सचिवों से राज्य सरकार और भारतीय जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड के निर्देशों का पालन करने और फील्ड स्टाफ को उचित आदेश देने को कहा गया। इसके साथ ही, DVAHOs को कानून का पालन सुनिश्चित कराने हेतु पुलिस से निर्माताओं और व्यापारियों से ग्लू ट्रेप जब्त करने का विशेष अभियान चलाने का अनुरोध करने का भी निर्देश दिया गया। DVAHOs को ग्लू ट्रेप पर लगाए गए प्रतिबंध और रोडेंट जनसंख्या नियंत्रण के मानवीय तरीकों के संबंध में जन जागरूकता नोटिस जारी करने और 15 दिनों के भीतर कार्रवाई की रिपोर्ट प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया गया।

अपने अपील में PETA इंडिया ने बताया कि भारतीय जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड द्वारा वर्ष 2011 और वर्ष 2020 में जारी सर्कुलर के अनुसार,  ग्लू ट्रेप जैसे क्रूर उपकरणों का उपयोग “पशु क्रूरता निवारण अधिनियम”, 1960 की धारा 11 के तहत एक दंडनीय अपराध है। इन्हें आम तौर पर प्लास्टिक ट्रे या गत्ते की चादरों को बेहद मज़बूत ग्लू से ढककर बनाया जाता हैं। इस प्रकार के ट्रेप में पक्षी, गिलहरी, सरीसृप, मेंढक और अन्य जानवरों भी अनचाहे में कैद हो सकते है जो “वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972” का उल्लंघन है जिसके अंतर्गत संरक्षित देसी जंगली प्रजातियों का “शिकार” पूर्ण रूप से प्रतिबंधित है। इस प्रकार के ट्रेप में फंसे चूहे या अन्य जानवर भूख-प्यास या अत्यंत पीड़ा के चलते अपनी जान गवा सकते हैं। कुछ जानवर इस ग्लू में अपनी नाक या मुंह फंस जाने के कारण दम घुटने से मर जाते हैं या अन्य आज़ादी की छटपटाहट में अपने ही अंगों को स्वयं कुतरने लगते हैं जिसके चलते खून की कमी के कारण उनकी मृत्यु हो जाती है। इतने पर भी जो जानवर जीवित पाये जाते हैं उन्हें ट्रेप सहित कूड़ेदान में फेंक दिया जाता है या इन्हें कुचलने और डूबने जैसी अधिक बर्बर मौत का सामना करना पड़ता है।

रोडेंट की जनसंख्या को नियंत्रित करने का एकमात्र दीर्घकालिक तरीका किसी क्षेत्र को उनके लिए अनाकर्षक या दुर्गम बनाना है। काउंटर की सतहों, फर्शों और अलमारियाँ को साफ रखकर उनके भोजन के स्रोतों को समाप्त करना और भोजन को च्यू-प्रूफ कंटेनरों में स्टोर करना भी एक अच्छा उपाय है। इन जानवरों को बाहर निकालने के लिए कूड़ेदानों को सील करें और अमोनिया में डूबाकर रुई या कपड़े का एक गोला रखे क्योंकि इन्हें गंध से सख्त  नफरत होती हैं। जानवरों को बाहर निकलने हेतु कुछ दिन देने के बाद, प्रवेश बिंदुओं को फोम सीलेंट, स्टील वूल, हार्डवेयर क्लॉथ या मेटल फ्लैशिंग का उपयोग करके सील करें जिससे यह वापस अंदर न आ सके। किसी भी रोडेंट को घर से निकालने हेतु मानवीय पिंजरे के जाल का उपयोग किया जाना चाहिए और उन्हें 100 गज की दूरी के भीतर छोड़ा जाना चाहिए, क्योंकि अपने प्राकृतिक क्षेत्र से बाहर स्थानांतरित होने वाले जानवरों को पर्याप्त भोजन-पानी खोजने में परेशानी होती है जिसके परिणामस्वरूप इनकी मृत्यु भी हो सकती है।

अगर आपको कोई ज़रूरतमंद पशु दिखाई देता है तो कृपया PETA इंडिया को (0) 9820122602 पर फोन करें।

 

ज़रूरतमंद पशुओं की सहायता करने के कुछ तरीक़े