“अर्थ डे” के उपलक्ष्य में PETA इंडिया द्वारा लगवाए गए यह विशेष समुद्री बिलबोर्ड प्लास्टिक फिशिंग गियर का शिकार होने वाले समुद्री जीवों की पीड़ा को उजागर करते हैं

Posted on by Anahita Grewal

अर्थ डे (22 अप्रैल) को हाइलाइट करते हुए PETA इंडिया ने जेन डिजिटल मीडिया के साथ मिलकर समुद्र में जागरुक्ता बिलबोर्ड लगाए। इन होर्डिंग में प्लास्टिक के जाल में फंसे एक कछुए को दिखाते हुए यह संदेश दिया गया है कि मछली को मारने वाले जाल सिर्फ मछलियों को ही नहीं बल्कि अन्य समुद्री जीवों की भी जान लेते हैं। हर साल महासागरों में 1 मिलियन टन तक मछली पकड़ने का पुराना समान जैसे जाल या अन्य सामग्री समुद्र में फेंक दी जाती है और इन्हें सड़ने में 600 साल लग सकते हैं। हर साल लगभग 250,000 से अधिक कछुए इस प्लास्टिक में फस जाते हैं या मारे जाते हैं।

PETA इंडिया के यह बिलबोर्ड जुहू बीच और बांद्रा-वर्ली सी लिंक पर देखे जा सकते हैं। इनके अलावा समुद्र तटों पर बसे शहरों जैसे चेन्नई, गोवा, कोच्चि और कोलकाता में भी इस तरह के होर्डिंग लगाए गए हैं।

मछली पकड़ने के उद्योग में “बाईकैच” के नाम से जानी जाने वाली यह फिशिंग नेट सामग्री मछलियों के अलावा हर साल गैर लक्षित 720,000 समुद्री पक्षियों, 300,000 व्हेल और डॉल्फ़िन, 345,000 सील और समुद्री शेर और 100 मिलियन शार्क की मौत का कारण बनती है। PETA इंडिया ने संज्ञान लिया कि मछली पकड़ना समुद्री वन्यजीवों के लिए सबसे बड़ा खतरा है।

अन्य सभी जानवरों की तुलना में प्रत्येक वर्ष भोजन के लिए सबसे अधिक मछलियाँ ही मारी जाती हैं। मछलियों को उतना ही दर्द होता है जितना कि स्तनधारियों को होता है। मछलियों लंबी समय तक यादों को जिंदा रख सकती हैं, वह पानी के अंदर गुनगुनाती हैं, भावनाओं को महसूस कर सकने वाली इन संवेदनशील मछलियों को सचेत अवस्था में होने के बावजूद उन्हें कुचलकर, दम घुटकर, उबलते पानी के बर्तनों में डालकर या अंगों को काटकर दर्दनाक मौत मरने के लिए मजबूर किया जाता है।

समुद्री जीवों की मदद करने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप उनका मांस खाना बंद कर दें।