जासूसी के लिए इस्तेमाल किए जाने के संदेह में कबूतर को आठ महीने तक मुंबई के अस्पताल में रखा गया, PETA इंडिया के हस्तक्षेप के बाद रिहा किया गया

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01 February 2024

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मुंबई – यह जानने के बाद कि एक कबूतर को परेल के बाई सकरबाई दिनशॉ पेटिट हॉस्पिटल फॉर एनिमल्स (BSDPHA) में आश्चर्यजनक रूप से आठ महीने तक केस प्रॉपर्टी के रूप में रखा गया था, पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) इंडिया ने पक्षी की सुरक्षा के मद्देनजर उसे आजाद करवाने के लिए कार्रवाई की। PETA इंडिया के एक प्रतिनिधि ने राष्ट्रीय केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स (आरसीएफ) पुलिस स्टेशन के अधिकारियों से संपर्क कर उनसे मामले का संज्ञान लेने और बिना किसी देरी के अस्पताल को कबूतर छोड़ने की औपचारिक अनुमति देने का अनुरोध किया। BSDPHA के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक कर्नल (सेवानिवृत्त) डॉ. बी.बी. कुलकर्णी द्वारा कल पक्षी को अस्पताल परिसर से आजाद कर दिया गया।

मई 2023 में, आरसीएफ पुलिस स्टेशन को एक कबूतर मिला जिसके पंखों पर कुछ अस्पष्ट लिखा हुआ था, जिससे जासूसी का संदेह हुआ और पुलिस ने पक्षी को जब्त कर लिया, जिसे जांच के हिस्से के रूप में चिकित्सा परीक्षण के लिए BSDPHA में भेजा गया था। हाल ही में, अस्पताल ने पुलिस को सूचित किया कि कबूतर अभी भी उनकी हिरासत में है और उसने पक्षी को छोड़ने की अनुमति मांगी क्यूंकि पक्षी एकदम स्वस्थ है और इसलिए अनावश्यक रूप से पिंजरे में रखना अनुचित है। अस्पताल को उचित प्रतिक्रिया न  मिलने पर, PETA इंडिया ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए पुलिस से संपर्क किया और हमारे अनुरोध पर पुलिस ने तुरंत अस्पताल को अनापत्ति प्रमाण पत्र दिया, जिससे पक्षी की रिहाई की अनुमति मिल गई।

कबूतर को छोड़े जाने की तस्वीरें और वीडियो यहाँ देखे जा सकते हैं

PETA इंडिया क्रूरता प्रतिक्रिया समन्वयक सलोनी सकारिया कहती हैं, – “PETA इंडिया इन 8 महीनों में पक्षी की देखभाल के लिए BSDPHA का आभार व्यक्त करता है। PETA इंडिया आरसीएफ पुलिस स्टेशन की भी उसके अनुरोध को स्वीकार करने, अस्पताल को तुरंत अनुमति देने और पक्षी को मुक्त कराने में मदद करने के लिए सराहना करता है।”

माननीय गुजरात उच्च न्यायालय ने 12 मई 2011 को अब्दुलकादर मोहम्मद आज़म शेख बनाम गुजरात राज्य और अन्य में अपने फैसले में कहा कि पक्षियों को खुले आकाश में स्वतंत्र रूप से रहने का मौलिक अधिकार है और कहा कि उन्हें पिंजरे में कैद नहीं किया जाना चाहिए। दिल्ली के माननीय उच्च न्यायालय ने भी 15 मई 2015 के अपने आदेश में पक्षियों के उड़ने के मौलिक अधिकार को स्वीकार किया और फैसला सुनाया कि व्यवसाय या अन्य उद्देश्यों के लिए उन्हें पिंजरे में बंद करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

PETA इंडिया – जो इस सिद्धांत के तहत कार्य करता है कि “जानवर हमारे मनोरंजन हेतु इस्तेमाल होने के लिए नहीं हैं” – प्रजातिवाद का विरोध करता है क्यूंकि यह एक ऐसी धारणा है जिसमे इंसान इस संसार में स्वयं को सर्वोपरि मानकर अन्य समस्त प्रजातियों का शोषण करना अपना अधिकार समझता है। अधिक जानकारी के लिए, कृपया PETAIndia.com पर जाएं या X (formerly Twitter), Facebook, या Instagram पर हमें फॉलो करें।

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