PETA इंडिया द्वारा विश्व जल दिवस से पहले बेंगलुरु में बिलबोर्ड लगवाकर लोगों को वीगन जीवनशैली अपनाकर पानी के संकट से निपटने हेतु प्रेरित किया गया

Posted on by Erika Goyal

PETA इंडिया द्वारा अमेरिका की ‘नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज’ की प्रसिद्ध पत्रिका प्रोसीडिंग्स द्वारा प्रकाशित एक पेपर में प्रस्तुत निष्कर्षों के आधार पर विश्व जल दिवस से पहले पानी की गहन समस्या झेल रहे बेंगलुरु में बिलबोर्ड लगवाकर लोगों को वीगन जीवनशैली अपनाकर पानी के संकट से निपटने हेतु प्रेरित किया गया। इन बिलबोर्ड पर लिखा गया है, “मांस, अंडा और दूध उत्पादन हेतु पशुओं को पालने के लिए दुनिया के साफ़ पानी का 1/3 उपयोग होता है। कृपया वीगन जीवनशैली अपनाएँ।“

Koramangala BDA Complex bus stop, near Sony World Junction, Koramangala, Bengaluru, Karnataka

मांस, अंडा एवं डेयरी उद्योग द्वारा पशुओं को पालने हेतु फसल उगाने, सालाना अरबों जानवरों के लिए पीने का पानी उपलब्ध कराने और खेतों, ट्रकों और बूचड़खानों की सफाई के लिए काफी बड़ी मात्रा में पानी का उपयोग किया जाता हैं, जिससे वैश्विक जल आपूर्ति पर दबाव पड़ता है। वॉटर फुटप्रिंट नेटवर्क के मुताबिक, एक किलो सब्जियां पैदा करने में 322 लीटर पानी खर्च होता है जबकि इसके विपरीत, 1 किलोग्राम दूध के लिए 1020 लीटर, 1 किलोग्राम अंडे के लिए 3265 लीटर, 1 किलोग्राम पोल्ट्री मांस के लिए 4325 लीटर, 1 किलोग्राम सूअर के मांस के लिए 5988 लीटर और 1 किलोग्राम मटन के लिए 8763 लीटर पानी की आवश्यकता होती है, जबकि 1 किलोग्राम गोमांस के लिए 15,415 लीटर की आवश्यकता होती है।

मांस और डेयरी उद्योग वैश्विक प्रदूषण का एक बड़ा कारक है और दुनिया के शीर्ष पांच मांस और डेयरी कार्पोरेशन ExxonMobil, Shell, या BP नामक ऑइल कंपनियों से भी अधिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं जिससे जलवायु परिवर्तन के संकट में व्यापक बढ़ौतरी होती है। इस प्रकार के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का प्रमुख स्त्रोत भोजन के लिए उपयोग किए जाने वाले मवेशियों और अन्य जुगाली करने वाले जानवरों से उत्सर्जित मीथेन होता है। वर्तमान में, भारत में 224.3 मिलियन लोग अल्पपोषित हैं और देश के 91 मिलियन लोग साफ़ पानी की कमी की समस्या से जूझ रहे हैं, जिसके बावजूद मांस, अंडा और डेयरी उत्पादन हेतु दुनिया के साफ़ पानी के संसाधनों का एक तिहाई और दुनिया की उर्वर भूमि का एक तिहाई उपयोग होता है। इन सभी अमूल्य प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग पशुओं की जगह मनुष्यों हेतु खेती करने के लिए भी किया जा सकता है।