ठाकर्से समूह ने ई-रिक्शा पहल के ज़रिए दस परिवारों और पशुओं का जीवन संवारा
PETA इंडिया की दिल्ली मशीनीकरण परियोजना पशु-श्रम मुक्त समाज की दिशा में लगातार नए कीर्तिमान स्थापित कर रही है। पहले, असम टिंबर मार्केट, नांगलोई को पूरी तरह से पशु-मुक्त ज़ोन बनाकर और 150वें पशु को कठोर श्रम से मुक्त करके इस अभियान ने ऐतिहासिक बदलाव लाए हैं। इस महत्वपूर्ण क्षण का गवाह बनने के लिए आम आदमी पार्टी की पार्षद शिवानी पंचाल भी मौजूद थीं।
अब, ठाकर्से समूह के सहयोग से यह अभियान एक और मील का पत्थर छू चुका है। 10 बैल और घोड़ों को बोझा ढोने की ज़िंदगी से छुटकारा दिलाकर उन्हें एक शांत और सुरक्षित अभयारण्य में बसाया गया है, जहाँ वे अब चैन की साँस ले सकते हैं। उनके मालिकों को नए ई-रिक्शा सौंपे गए, जिससे वे बिना किसी पशु-शोषण के अपनी आजीविका चला सकें। पहले से लाभान्वित लोगों ने बताया कि ई-रिक्शा अपनाने से उनकी आय, जीवनशैली और समाज में सम्मान में भारी सुधार आया है।
पशु अब जिएंगे सम्मान के साथ
PETA इंडिया द्वारा बचाए गए बैल, घोड़े और अन्य पशु अब सुरक्षित अभयारण्यों में रहते हैं, जहाँ वे न केवल अच्छा भोजन और पानी पाते हैं, बल्कि उन्हें रोज़ाना स्वास्थ्य जांच और पशु चिकित्सा देखभाल भी मिलती है। वहाँ का माहौल पूरी तरह उनके स्वाभाविक व्यवहार को अपनाने के अनुकूल बनाया गया है—वे अब बेफिक्र होकर अपने साथियों से मेलजोल कर सकते हैं, खुले मैदान में घूम सकते हैं, घास चर सकते हैं और अपनी ज़िंदगी सुकून से जी सकते हैं।
एक महत्वपूर्ण बदलाव की ओर क़दम
यह पहल सिर्फ कुछ घोड़ों और बैलों को राहत देने तक सीमित नहीं है—यह एक बड़े सामाजिक बदलाव का हिस्सा है। दिल्ली की सड़कों पर सैकड़ों बैल और घोड़े आज भी भारी गाड़ियाँ और टोंगे खींचने को मजबूर हैं, जिससे न सिर्फ यातायात बाधित होता है, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण भी प्रभावित होते हैं।
दिल्ली नगर निगम ने 4 जनवरी 2010 को प्रस्ताव संख्या 590 पारित करके घोड़ा-गाड़ी (टोंगा) पर रोक लगा दी थी, लेकिन इसके बावजूद यह क्रूरता अभी भी जारी है। PETA इंडिया की दिल्ली मशीनीकरण परियोजना को गिविंग इकोनॉमी चेंजमेकर्स अवार्ड से नवाज़ा गया है, जो इस पहल की सकारात्मकता और प्रभावशीलता को दर्शाता है।
हाल ही में, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (NRCE) ने आज़ादपुर मंडी, दिल्ली में अवैध रूप से चलने वाले टोंगों में इस्तेमाल किए जा रहे तीन घोड़ों में ग्लैंडर्स बीमारी की पुष्टि की। यह एक खतरनाक संक्रामक रोग है, जो इंसानों के लिए भी जानलेवा हो सकता है।
घोड़े और बैल अकसर बीमार या घायल होने के बावजूद जबर्दस्ती काम करवाए जाते हैं। उनके मालिक उन पर चाबुक बरसाते हैं, नाक में दर्दनाक रस्सियाँ डालते हैं और लोहे की कांटेदार लगामें पहनाते हैं ताकि वे और अधिक बोझ उठाने के लिए मजबूर हों। गर्मी में जलते सूरज के नीचे बिना पानी और छाया के ये मासूम प्राणि काम करते रहते हैं। अधिकतर पशु बिना किसी चिकित्सा देखभाल के तब तक काम करवाए जाते हैं, जब तक कि वे मर न जाएँ।
अब बदलाव की बारी हमारी है!
अगर आप भी पशुओं के प्रति इस क्रूरता को खत्म करना चाहते हैं और उन्हें सम्मानपूर्वक जीवन जीने में मदद करना चाहते हैं, तो PETA इंडिया के साथ जुड़ें और इस आंदोलन को और मज़बूत करें!