PETA साइंस कंसोर्टियम इंटरनेशनल ने जानवरों को बचाने के 10 साल पूरे होने का जश्न मनाया

Posted on by Sudhakarrao Karnal

दुनियाभर में Central Drugs Standard Control Organisation (CDSCO), Central Insecticides Board & Registration Committee (CIB&RC) जैसी विभिन्न नियामक एजेंसियों द्वारा दवाओं, कीटनाशकों, औद्योगिक रसायनों और चिकित्सकीय उत्पादों को बाजार में उतारने से पहले इनकी विषाक्तता का आकलन करने के लिए विभिन्न परीक्षणों का निर्धारण किया गया है। ऐतिहासिक रूप से इस प्रकार के विषाक्तता परीक्षण बहुत ही क्रूर ढंग से किए जाते थे लेकिन PETA Science Consortium International e.V के पिछले दस वर्षों में किए गए कई सफ़ल प्रयासों के बाद वर्तमान में बहुत से पशु-परीक्षण विकल्प उपलब्ध हैं।

Science Consortium क्या है?

Science Consortium का गठन वर्ष 2012 में किया गया था और PETA की दुनियाभर की विभिन्न शाखाओं में कार्य करने वाले 25 वैज्ञानिक इसके सदस्य हैं। यह सभी वैज्ञानिक साथ मिलकर Science Consortium के वैश्विक को पूरा करने का कार्य करते हैं जिसमें विश्वसनीय और प्रासंगिक गैर-पशु परीक्षण विधियों को बढ़ावा देना शामिल है।

Science Consortium द्वारा क्या कार्य किया जाता है?

Science Consortium द्वारा पशु परीक्षणों के अधिक आधुनिक और मानवीय विकल्पों को प्रस्तुत किया जाता है और इन विकल्पों का प्रचार-प्रसार करने हेतु अलग-अलग गतिविधियों का आयोजन किया जाता है।

Science Consortium को मिले विभिन्न पुरस्कार

Science Consortium को विभिन्न पुरस्कारों से नवाज़ा गया है जिसमें शिक्षा एवं प्रशिक्षण के माध्यम से गैर-पशु परीक्षणों को प्रोत्साहित करने हेतु 2015 Lush Prize for Training शामिल है।

इसके साथ-साथ Society of Toxicology (SOT) एक पेशेवर संगठन हैं जिसके सदस्यों की सूची में 60 अलग-अलग देशों के 8,000 से अधिक वैज्ञानिक शामिल हैं। इस संगठन की प्रेसिडेंट Dr. Amy Clippinger हैं और इन्हें इनके कुशल नेतृत्व और गैर-पशु परीक्षण विधियों के प्रचार-प्रसार हेतु 2022 Society of Toxicology Enhancement of Animal Welfare Award से भी नवाज़ा गया है। Science Consortium को SOT स्पेशलिटी सेक्शन से सर्वश्रेष्ठ पोस्टर और पेपर के लिए भी कई पुरस्कार दिए गए हैं।

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पिछले 10 वर्षों में Science Consortium की प्रमुख उपलब्धियाँ

Science Consortium की फंडिंग के द्वारा विश्व का पहला अपनी तरह का 3-D मॉडल तैयार किया गया जिसमें मानव मानव फेफड़े पर रसायनों और अन्य पदार्थों के प्रभाव का अध्ययन किया गया। अन्य गैर-पशु परीक्षण विधियों को मिलाकर, इस मॉडल में हर साल लगभग 1 मिलियन पशु परीक्षणों को बदलने की क्षमता है, जिनमें पशुओं को जहरीले पदार्थों को सांस लेने के लिए मजबूर किया जाता है।

Science Consortium की फंडिंग से diphtheria नामक ख़तरनाक बीमारी के इलाज़ हेतु एक मानव-व्युत्पन्न एंटीबॉडी का निर्माण किया गया। इस मानव-व्युत्पन्न एंटीबॉडी की ख़ोज से घोड़ों को बार-बार इंजेक्शन लगाने की 100 साल पुरानी पद्धति को समाप्त करने की दिशा में कदम उठाया गया जिसके लिए घोड़ों के खून को भारी मात्रा में निकाला जाता था।

PETA इंडिया के वैज्ञानिकों ने एक पर्सनल लुब्रिकांत कंपनी के साथ मिलकर कार्य किया और FDA द्वारा कंपनी के उत्पादों को गैर-पशु परीक्षण परिणामों के आधार पर अनुमोदित करने हेतु मदद की। इसकी चलते लुब्रिकांत निर्माण हेतु खरगोशों और गिनी सूअरों के ऊपर किए जाने वाले क्रूर परीक्षाओं को समाप्त किया जा सका। FDA के इस निर्णय ने अन्य कंपनियों को भी इस प्रकार के दयालु विकल्प अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया।

Science Consortium और U.S. Environmental Protection Agency (EPA) ने साथ मिलकर एक पेपर प्रकाशित किया जिसके परिणामस्वरूप एक नई EPA नीति का गठन किया गया। इसके कारण ऐसे लाखों जानवरों को मौत के घाट उतरने से बचाया गया जिन्हें मरने से पहले कीटनाशक युक्त भोजन का सेवन करने हेतु बाध्य किया जाता है। शोधकर्ताओं द्वारा इस पेपर का प्रकाशन पिछले 20 वर्ष के डाटा का अध्यन्न करने के बाद किया गया जिसके बाद खुलासा हुआ कि क्रूर पक्षी परीक्षणों के बिना भी पर्यावरण की रक्षा की जा सकती है।

PETA वैज्ञानिकों ने सरकार, उद्योग जगत और शिक्षा जगत के वैज्ञानिकों के सहयोग से एक प्रगतिशील परियोजना का नेतृत्व किया जिसमें कैंसर की पहचान हेतु रसायनों के परीक्षण से संबंधित निष्कर्षों का वैज्ञानिक पत्रिका में प्रकाशन किया गया। इन निष्कर्षों का प्रयोग लाखों चूहों को दर्दभरे जीवन से बचाने के लिए किया जाएगा जिसमें उनको जीवनभर कीटनाशकों का सेवन करने के लिए जबरन बाध्य किया जाता था ताकि उनके अंदर विभिन्न प्रकार के ट्यूमर के विकास का परीक्षण किया जा सके।

PETA वैज्ञानिकों के वर्षों के प्रयासों के बाद, U.S. Department of Transportation (DOT) ने संक्षारक सामग्री का परीक्षण करने हेतु गैर-पशु परीक्षण विधियों को पूरी तरह से स्वीकार कर लिया। DOT द्वारा इस अनिवार्य मापदंड का निर्धारण किया गया है कि देशभर में ट्रकों, ट्रेनों, नावों और हवाई जहाजों के ज़रिये परिवाहित होने वाले सभी प्रकार के रसायनों का परीक्षण किया जाए जिससे उनकी त्वचा को नुकसान पहुंचाने की क्षमता को प्रकाशित किया जा सके। PETA द्वारा सुजाए गए प्रगतिशील विकल्प से हजारों खरगोशों को ऐसे परीक्षणों से बचाया जा सकेगा जिसके लिए उनके शरीर पर सभी प्रकार के ख़तरनाक रसायनों को बेहद क्रूरता से रगड़ा जाता था जिससे इनके दुष्प्रभावों को प्रकाशित किया जा सके।

PETA वैज्ञानिकों के प्रोत्साहन से भारत में दवाइयों हेतु मानक संस्थान Indian Pharmacopoeia Commission (IPC) ने दवाइयों में बुखार संबंधी तत्वों का परीक्षण करने हेतु गैर-पशु परीक्षण विधियों के प्रयोग को मंजूरी प्रदान की जिसका दयालु परिणाम लाखों संवेदनशील पशुओं पर पड़ा। इसके साथ ही, PETA इंडिया के वैज्ञानिकों के सुझावों के आधार पर IPC द्वारा वैक्सीन के विषाक्तता परीक्षण हेतु आवश्यक पशु परीक्षणों को हटाया गया जिससे प्रति वर्ष हजारों सूअरों को जबरन टीकाकरण से मुक्ति मिली। इसके साथ PETA इंडिया के शोधकार्य के परिणामस्वरूप भारत में मानकीकृत उत्पाद परीक्षण विधियों के मानक संस्थान  भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा विभिन्न प्रकार की आधुनिक और गैर- पशु परीक्षण विधियों को बदलने की मंजूरी दी गयी।

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हम Science Consortium को पिछले दस वर्षों में प्राप्त की गयी विभिन्न जीतों के लिए बधाई देते हैं और आने वाले सालों में भी उनकी सफलता की कामना करते हैं।

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