PETA इंडिया की जानवरों को क्रूर कुर्बानी से बचाने की मांग को कई सांसदों का समर्थन

Posted on by Sudhakarrao Karnal

PETA इंडिया द्वारा मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री श्री पुरुषोत्तम रूपाला जी को की गयी अपील का बहुत से सांसदों द्वारा समर्थन किया गया है। इस अपील में “पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960” की धारा 28 को हटाने की माँग की गयी है जिसके अंतर्गत “किसी भी समुदाय के धर्म/मजहब के हिसाब से किसी भी जानवर की हत्या करना इस अधिनियम में अपराध नहीं माना जाएगा।“ कुर्बानी हेतु प्रयोग किए जाने वाले जानवरों को भोजन के लिए प्रयोग होने वाले जानवरों को दी जाने वाली बुनियादी विधायी सुरक्षा से वंचित रखा जाता है।

PETA इंडिया की इस मांग को अब तक श्री धर्मबीर सिंह, सांसद भिवानी-महेंद्रगढ़, हरियाणा; श्री संतोष कुमार गंगवार, सांसद बरेली, उत्तर प्रदेश; श्री गुहाराम अजगले, सांसद जांजगीर-चांपा, छत्तीसगढ़; श्री सुनील कुमार सोनी, सांसद रायपुर, छत्तीसगढ़; श्री विजय बघेल, सांसद दुर्ग, छत्तीसगढ़; और श्री परवेश साहिब सिंह, सांसद पश्चिमी दिल्ली; और हाल ही में राज्यसभा के सदस्य रहे श्री केजे अल्फोंस का समर्थन मिल चुका है।

देश भर में, भेड़, बकरी, भैंस, मुर्गी और उल्लू सहित विभिन्न प्रजाति के जानवरों की कुर्बानी दी जाती है। इन दर्दनाक प्रथाओं में जानवरों का सिर काटना, उनकी गर्दन मरोड़ना, उनपर नुकीले उपकरणों से हमला करना, उन्हें जबरन कुचलना और पूरी तरह से होश में रहने के दौरान उनका गला काट देना जैसे क्रूर तरीके शामिल हैं।

भोजन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले जानवरों के लिए, “पशु क्रूरता निवारण (वधशाला) नियम, 2001”, और “खाद्य सुरक्षा और मानक (खाद्य व्यवसायों का लाइसेंस और पंजीकरण) विनियम, 2011”, केवल पंजीकृत या लाइसेंस प्राप्त बूचड़खानों में भोजन के लिए जानवरों के वध को अनिवार्य करता है। “पशु क्रूरता निवारण (वधशाला) नियम, 2001” के अंतर्गत भी जानवरों को मारने से पहले उन्हें बेहोश करने का आह्वान किया गया है। कुर्बानी के लिए मौत के घाट उतारे जाने वाले एवं भोजन के रूप में प्रयोग होने वाले जानवरों को उस बुनियादी विधायी सुरक्षा से वंचित किया जाता है, जो भोजन के रूप में प्रयोग होने वाले अन्य जानवरों को दी जाती है। कुर्बानी दिए गए जानवरों के मांस की किसी भी प्रकार की आधिकारिक स्वास्थ्य सुरक्षा जांच नहीं होती है।

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