PETA इंडिया ने गौहाटी उच्च न्यायालय से बैल और बुलबुल की लड़ाई पर प्रतिबंध लगाने की गुहार लगाई

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1 February 2024

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गुवाहाटी – असम सरकार के बैल और बुलबुल नामक पक्षियों की लड़ाई को अनुमति प्रदान करने के निर्णय के बाद, पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) इंडिया ने गौहाटी उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर, इस प्रकार की क्रूर लड़ाइयों को फिर से प्रतिबंधित करने का अनुरोध किया है। मामले से संबंधित साक्ष्य के रूप में, PETA इंडिया ने इन लड़ाइयों की एक जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करी, जिससे पता चला कि इन लड़ाइयों के लिए डरे हुए एवं गंभीर रूप से घायल बैलों और भूख एवं नशे में धुत बुलबुल को भोजन का लालच देकर लड़ने के लिए मजबूर किया जाता है। PETA इंडिया की याचिका में इन आयोजनों के संचालन में केंद्रीय कानून के कई उल्लंघनों का हवाला दिया गया है। PETA इंडिया द्वारा गौहाटी उच्च न्यायालय से मामले की सुनवाई के दौरान, बैल और बुलबुल की लड़ाई पर अंतरिम रोक लगाने की मांग भी करी गयी है।

 PETA इंडिया की जांच में सामने आई तस्वीरें और वीडियो फुटेज मांगे जाने पर उपलब्ध करायी जाएंगी।

16 जनवरी को असम के मोरीगांव जिले के अहातगुरी में हुई बैलों की लड़ाई की जांच से पता चला कि बैलों को लड़ने के लिए उकसाने हेतु, इनके मालिकों ने इन्हें बहुत मारा-पीटा, लाठी चुभाई, और इनकी नाक की रस्सी को बड़ी ही बेरहमी से खींचा गया, जिससे इनकी नथुनी फट गयी और उससे खून बहने लगा। यहाँ तक कि लड़ाई के दौरान भी कुछ मालिकों और संचालकों ने बैलों को और अधिक परेशान करने के लिए उन्हें लकड़ी के डंडों से मारा और नंगे हाथों से पीटा। इन सब से उत्तेजित होकर, बैलों ने अपने-अपने सींग आपस में फंसा लिए और लड़ने लगे जिससे उनकी गर्दन, कान, चेहरे और माथे पर बहुत से खूनी घाव हो गए एवं कई बैलों के पूरे शरीर पर चोटें आईं। यह लड़ाई तब तक जारी रही जब तक कि दो बैलों में से कोई एक अपनी हिम्मत पूरी तरह से हार न गया।

इनके मालिकों और संचालकों ने बैलों की संवेदनशील नाक में रस्सियाँ डालकर उन्हें घसीटा। इस झटके के कारण कुछ पशुओं की नाक से खून बहने लगा और कई बैलों ने दर्द से राहत पाने के प्रयास में बार-बार अपनी नाक को चाटा। लड़ाई के दौरान इन सभी पशुओं के लिए, किसी प्रकार की छाया, भोजन-पानी या पशुचिकित्सकीय सुविधा उपलब्ध नहीं कराई गयी, जो असम सरकार द्वारा बैलों की लड़ाई के लिए जारी मानक संचालन प्रक्रियाओं का स्पष्ट उल्लंघन है।

कुछ बैल मालिकों ने जानवरों को दर्शक स्टैंड में एक अलग और अव्यवस्थित लड़ाई में भाग लेने के लिए मज़बूर किया गया, जबकि आधिकारिक लड़ाई मैदान में आयोजित की गई थी। इन अवैध लड़ाइयों से बैलों द्वारा दर्शकों को घायल करने या कुचलने का खतरा बढ़ जाता है।

15 जनवरी को असम के हाजो में आयोजित बुलबुल की लड़ाई की जांच रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची II के तहत संरक्षित पक्षी रेड-वेंटेड बुलबुल को जबरन कैद करके और भोजन का लालच देकर अवैध रूप से लड़ने के लिए उकसाया गया जो कि उनकी प्राकृतिक प्रवृत्ति के बिल्कुल खिलाफ़ है।

रिपोर्ट में उल्लेखित किया गया है कि इन पक्षियों को लड़ाई से कई दिन पहले ही जबरन कैद कर लिया जाता है जबकि संरक्षित जंगली पक्षियों को पकड़ना इनके शिकार का ही एक रूप माना जाता है जो कि पूर्णत अवैध है।

कथित तौर पर, पक्षियों को उत्तेजित करने के लिए उन्हें आमतौर पर भांग का नशा दिया जाता है और अन्य नशीली जड़ी-बूटियाँ, केले, काली मिर्च, लौंग और दालचीनी खिलाई जाती हैं, फिर लड़ाई से पहले उन्हें कम से कम एक रात के लिए भूखा रखा जाता है। लड़ाई के दौरान, भूखे पक्षियों के सामने केले का एक टुकड़ा लटका दिया जाता है, जो उन्हें एक-दूसरे पर हमला करने के लिए उकसाता है। प्रत्येक लड़ाई लगभग पांच से 10 मिनट तक चली, और संचालकों ने थके हुए पक्षियों पर बार-बार हवा मारकर उन्हें लड़ाई जारी रखने के लिए मजबूर किया।

PETA इंडिया के एडवोकेसी एसोसिएट तुषार कोल ने कहा, “बैल और बुलबुल बेहद संवेदनशील पशु होते हैं जिन्हें इंसानों की तरह डर एवं दर्द का एहसास होता है और इन्हें उत्तेजित करने वाली भीड़ के सामने खूनी झगड़ा करने का कोई शौक़ नहीं है। PETA इंडिया को उम्मीद है कि गौहाटी उच्च न्यायालय पशुओं के खिलाफ़ इस प्रकार की क्रूरता को केंद्रीय कानून का स्पष्ट उल्लंघन मानते हुए इन हिंसक झगड़ों पर रोक लगाएगी।”

PETA इंडिया द्वारा उच्च न्यायालय में दर्ज़ याचिका में उल्लेखित किया गया है कि बैल और बुलबुल की लड़ाई भारतीय संविधान के साथ-साथ, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960; और माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भारतीय जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड बनाम ए नागराजा  के फैसले का भी स्पष्ट उल्लंघन है। PETA इंडिया यह भी उल्लेखित करता है कि इस तरह की लड़ाइयाँ स्वाभाविक रूप से क्रूर होती हैं और इसमें भाग लेने के लिए मजबूर जानवरों को अथाह दर्द और पीड़ा का सामना करना पड़ता है। यह लड़ाइयाँ अहिंसा और करुणा के सिद्धांतों का खंडन करती हैं, जो भारतीय संस्कृति और परंपरा का अभिन्न अंग हैं। इस प्रकार के आयोजनों को जारी रखना एक प्रतिगामी कदम है जो मानव और पशु अधिकारों में लगभग एक दशक की प्रगति को नष्ट कर देगा।

PETA इंडिया जो इस सिद्धांत में विश्वास रखता है कि “पशु हमारे मनोरंजन हेतु इस्तेमाल होने या किसी भी अन्य प्रकार का दुर्व्यवहार सहने के लिए नहीं हैं”, प्रजातिवाद का विरोध करता है। प्रजातिवाद एक ऐसी धारणा है जिसके तहत इंसान स्वयं को इस संसार में सर्वोपरि मानकर अन्य प्रजातियों का शोषण करना अपना अधिकार समझता है। अधिक जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट PETAIndia.com पर जाएँ और हमें X (पहले Twitter)Facebook, तथा Instagram पर फॉलो करें।

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