सर्वोच्च न्यायालय ने जल्लीकट्टू और बैलों की दौड़ जैसी क्रूर प्रथाओं को अनुमति देकर भारत को अंधकार युग में धकेला

Posted on by Erika Goyal

आज, भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने PETA इंडिया और अन्य पशु संरक्षण संगठनों और कार्यकर्ताओं द्वारा तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र सरकार द्वारा अनुमत जल्लीकट्टू, कंबाला और बैल की दौड़ जैसे क्रूर आयोजनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं में, उक्त आयोजनों की अनुमति देते हुए अपना निर्णय सुनाया।

वर्ष 2014 में, सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड बनाम ए नागराज और अन्य से संबंधित मामले में एक विस्तृत और सुविचारित निर्णय पारित किया था, जिसमें जल्लीकट्टू और बैल की दौड़ को असंवैधानिक और भारत के संविधान एवं पशु क्रूरता निवारण (PCA) अधिनियम, 1960 के तहत जानवरों को दिए गए अधिकारों का उल्लंघन माना गया था। हालांकि, इस निर्णय के पारित होने के बाद, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र ने क्रमश: जल्लीकट्टू, कंबाला और बैल की दौड़ को वैध करार करने के लिए PCA अधिनियम में संशोधन किया। इन तीनों  राज्य संशोधनों को PETA इंडिया द्वारा कोर्ट में चुनौती दी गई थी।

ग्लेडिएटर खेलों का आयोजन प्राचीन रोम में किया जाता था, जिनकी शुरुआत लगभग 264 ईसा पूर्व में हुई और सैकड़ों साल पहले इनका अंत भी हो गया। इस प्रकार के खेलों के दौरान अक्सर जानवरों का प्रयोग किया जाता था जिसे आज के समय में अमानवीय और असभ्य माना जाता है। इसके बावजूद, PETA इंडिया की विभिन्न जाँचों में सामने आया है कि जल्लीकट्टू और बैल की दौड़ के आयोजनों के दौरान बैलों को जान-बूझकर आतंकित किया जाता, उन्हें मारा-पीटा जाता है, उनकी नाक की रस्सियों को क्रूरता से खींचा जाता है और उनके शरीर पर नुकीले हथियारों से वार किया जाता है।

तमिलनाडु सरकार द्वारा वर्ष 2017 में जल्लीकट्टू को वैध्यता प्रदान करने के बाद से, विभिन्न समाचार रिपोर्टों के अनुसार, इन आयोजनों में हुई दुर्घटनाओं के दौरान कम से कम 33 बैल और 104 मनुष्यों की मौत हुई है और 8,388 लोग घायल हुए हैं। कई पशुओं की मौत और मानव चोटों की सूचना नहीं दी जाती है, इसलिए ये आंकड़े संभावित रूप से बहुत कम हैं।

जल्लीकट्टू क्रूर क्यों है