PETA इंडिया के प्रयासों के बाद ‘फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया’ ने क्रूर “जबरन तैराकी परीक्षण” (Forced Swim Test) की समीक्षा का आदेश दिया
दिल्ली – पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) इंडिया द्वारा “जबरन तैराकी परीक्षणों” (Forced Swim Test) की क्रूरता और वैज्ञानिक रूप से इनके आधार हीन होने के तर्क को उजागर करते हुए एक विस्तृत समीक्षा प्रस्तुत किए जाने के बाद, ‘फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया’ ने इस विवादास्पद पशु प्रयोग को लेकर बड़ा कदम उठाया है। परिषद ने अपने अधीन आने वाले सभी संस्थानों और एजेंसियों को निर्देश दिया है कि वे इस पुराने और अब अविश्वसनीय माने जा चुके परीक्षण के उपयोग की समीक्षा करें और आवश्यकता अनुसार उचित कार्रवाई करें।
“जबरन तैराकी परीक्षण” एक क्रूर और पीड़ादायक प्रयोग है, जिसमें चूहों, छुछुंदरों, और अन्य छोटे जीवों को पहले केमिकल की खुराक दी जाती है, और फिर उन्हें आधे पानी से भरे लंबे गिलास नुमा बर्तनों में डाला जाता है जिनसे बाहर निकलना असंभव होता है। स्वयं को पानी में डूबने से बचाने के लिए यह जीव लगातार हाथपैर चलाकर तैरते रहने के लिए मजबूर किए जाते हैं। चूहों पर होने वाला यह परीक्षण है इंसानों के मानसिक तनाव व डिप्रेशन हेतु दवाओं के असर को जाँचने से संबंधित होता है। लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि यह न केवल अमानवीय है, बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी गुमराह करने वाला है। उनके अनुसार, जब कोई पशु तैरना बंद करता है, तो यह निराशा का नहीं बल्कि ऊर्जा बचाने और नए वातावरण के अनुरूप ढलने का संकेत होता है। कई शोध यह भी दर्शाते हैं कि डिप्रेशन रोधी दवाओं की प्रभावशीलता जांचने के लिए यह पद्धति इतनी अविश्वसनीय है कि इसके नतीजे उतने ही अनिश्चित हो सकते हैं जितना हम एक सिक्का उछाल कर टॉस करते समय होते हैं।
PETA से जुड़ी संस्थाओं की ओर से लगातार उठाए गए सवालों के बाद, कई सरकारी एजेंसियों, विश्वविद्यालयों और दुनिया की अग्रणी दवा कंपनियों ने यह संकल्प लिया है कि वे “जबरन तैराकी परीक्षणों” को न तो मंज़ूरी देंगे, न अपने यहाँ कराएंगे और न ही इसके लिए किसी प्रकार का वित्तीय सहयोग देंगे। इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए PETA इंडिया अब Committee for Control and Supervision of Experiments on Animals सहित अन्य सभी नियामक और मान्यता देने वाली संस्थाओं से अपील कर रहा है कि वे भी इस क्रूर और अविश्वसनीय परीक्षण को बंद करने के लिए ठोस कदम उठाएं और पशु-मुक्त एवं वैज्ञानिक दृष्टि से विश्वसनीय अनुसंधान को प्राथमिकता दें।
निर्दोष जीवों को अपनी जान बचाने के लिए जबरन तैरने पर मजबूर करना बंद करें।!