PETA इंडिया ने ‘पशु क्रूरता निवारण (अंडे देने वाली मुर्गियाँ) नियम 2023’ को अमानवीय करार देते हुए इसकी निंदा की

Posted on by Erika Goyal

यह नियम मुर्गी पालन केन्द्रों पर मुर्गियों की वर्तमान पीड़ा को कम करने के बजाय, देश में अंडा देने वाली मुर्गियों को पिंजरों में रखने की अनुमति देते हैं जिसमें उन्हें अपनी प्राकृतिक गतिविधियों के लिए केवल 550 वर्ग सेंटीमीटर की जगह मिलती है जो कि केवल एक टाइपिंग पेपर जितनी है। इसमें उल्लेखित नए पिंजरे के आकार की आवश्यकताएं इतनी प्रतिबंधात्मक हैं कि इन्हें “बैटरी केज” माना जाएगा, जो यूरोपीय संघ (EU) द्वारा लंबे समय से अवैध घोषित हैं। पशु क्रूरता निवारण अधिनियम (अंडे देने वाली मुर्गियाँ) नियम, 2023 में यह भी उल्लेखित किया गया है कि फार्मों को 2029 तक नए पशु कल्याण दिशानिर्देशों को लागू करने की आवश्यकता नहीं है।

यह पिछड़े नियम ऐसे समय पर प्रकाशित किए गए हैं जब छह साल पहले जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड द्वारा एक सर्कुलर जारी कर सभी राज्यों को वर्ष 2017 तक बैटरी केज को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के संबंध में सलाह दी गई थी। बैटरी केज को पशु क्रूरता निवारण (PCA) अधिनियम, 1960  का उल्लंघन माना जाता है, जिसके अनुसार पिंजरों में कैद पशुओं को उनकी प्राकृतिक गतिविधियों हेतु उचित अवसर प्रदान किया जाना आवश्यक है।

इस नए नियमों के तहत अंडे देने वाली मुर्गियाँ को अपने पंख को फड़फड़ाने और घूमने में सक्षम होने की आवश्यकता केवल एक छलावा मात्र है, क्योंकि मुर्गियों को अपने पंखों को फैलाने के लिए लगभग 893 वर्ग सेंटीमीटर, अपने पंखों को फड़फड़ाने के लिए 1876 वर्ग सेंटीमीटर और मुड़ने के लिए 1272 वर्ग सेंटीमीटर की आवश्यकता होती है लेकिन इस नियम के तहत पिंजरे का जो आकार निर्धारित किया गया है वह बिल्कुल पर्याप्त नहीं है।

पशु क्रूरता निवारण (अंडे देने वाली मुर्गियाँ) नियम, 2023 के तहत ‘मोलटिंग करना’ यानि मुर्गियों से जबरन अंडे लेने के लिए उनके शरीर से छेड़छाड़ करना और मुर्गियों को मरे हुए चिकन के अवशेष खिलाकर उन्हें नरभक्षी बनाना जैसी गतिविधियों पर रोक लगाई गयी है। हालांकि वर्ष 2011 में यानि आज से 12 वर्ष पहले, AWBI ने एक अधिसूचना जारी कर यह कहा था कि जबरन मोलटिंग करना PCA अधिनियम 1960 का उल्लंघन है और इस हेतु समस्त राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा जाता है कि वह अपने क्षेत्रों में जबरन मोलटिंग जैसी प्रक्रियों को समाप्त करें।

नए नियमों में यह भी आवश्यक है कि “विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन द्वारा दिये गए निर्देशानुसार” नर चूजों को मार दिया जाए। बावजूद इसके, जैसा कि PETA ने खुलासा किया है कि मुर्गीपालन केन्द्रों पर चूजों को जला कर, डुबोकर, कुचलकर, जिंदा ही मछलियों का चारा बनाकर या फिर अन्य क्रूर तरीकों से उनकी हत्याएँ की जा रही है।

अनचाहे चूजों को मारने के तरीकों को व्यवस्थित किया जाएगा लेकिन यह काम वर्ष 2029 से पहले नहीं हो सकेगा। ऑस्ट्रिया, फ्रांस, जर्मनी, और लक्ज़मबर्ग नर चूजों की हत्याओं पर रोक लगा रहे हैं। PETA इंडिया भी कोशिश कर रहा है कि भारत के अधिकारी ‘OVO’ तकनीक का इस्तेमाल शुरू करें इस तकनीक के द्वारा जीवित जीवों की हत्या करने की बजाय अंडे के प्रारम्भिक चरण यानि भ्रूड में ही उसके लिंग का पता चल जाता है इसलिए इसे वही नष्ट किया जा सकता है। अब, नौ यूरोपियन देश के संघ अंडा उद्योग में नर चूजों की हत्याओं पर पूरे यूरोप में प्रतिबंध लगाए जाने की मांग कर रहे हैं।

इस दौरान, यूरोप के अधिकांश हिस्सों जिसमे UK भी शामिल है, में वर्ष 2012 से ही बेट्री केज (छोटे पिंजरे) पर रोक लगा दी थी। कनाडा, इज़राइल और मेक्सिको ने भी इन पिंजरों पर प्रतिबंध लगा दिया है और कई अन्य देश भी इसी का अनुसरण कर रहे हैं। डेनमार्क और फ्रांस ने अंडे देने वाली मुर्गियों के लिए पिंजरों के इस्तेमाल को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए कदम उठा रहे हैं।

अंततः, इन नए नियमों का उल्लंघन करने पर “पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960” की धारा 38 (3) के तहत न्यूनतम सज़ा का कोई प्रावधान नहीं है और अधिकतम सज़ा के तहत महज़ 100 रुपये जुर्माने या तीन माह की कैद की सज़ा है।

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