PETA इंडिया का नया बिलबोर्ड लोगों से ऊन और चमड़े का बहिष्कार करने का आग्रह करता है

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नवम्बर (विश्व वीगन माह) के उपलक्ष्य में पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) इंडिया द्वारा दिल्ली, बैंगलोर, चेन्नई, हैदराबाद, कोलकाता और मुंबई में बिलबोर्ड लगाए गए हैं।

हम लोगों से दयालु बनने और जानवरों के चमड़े से बनने वाले वस्त्रों का त्याग करने का आग्रह करते हैं।

PETA इंडिया और इसके अंतराष्ट्रीय साहियोगियों द्वारा दुनियाभर के 100 से ज़्यादा ऊन उद्योगों में भेड़ो के साथ होने वाले नियमित अत्याचार का पर्दाफ़ाश किया गया है। साल की शुरुआत में, भेड़ को मारने-पिटने वाला वीडियो सामने आने के बाद भेड़ों के शरीर से ऊन कतरन करने वाले व्यवसायी को जानवरों के खिलाफ क्रूरता करने हेतु दोषी ठहराया गया। इसी तरह के कई अन्य ऊन कतरन करने वाले व्यवसायियों को ऊन कतरन के दौरान  डरी सहमी भेड़ों के साथ मार पीट करते, लात घूसे मारते, उन्हें घसीटते, उनके सिर और गर्दन पर खड़े होते और यहाँ तक कि उनके अनुसार काम की ना रह जाने वाली भेड़ों के जिंदा रहते उनका गला काटते भी वीडियो पर कैद किया गया था।

मगरमच्छ, घड़ियाल, सांप, शुतुरमुर्ग, और अन्य जंगली जानवरों को उनकी चमड़ी के लिए जिन क्रूर और तंग परिस्थितियों में रखा जाता है और जिन परिस्थितियों में उनकी हत्या की जाती है, उन्हें ‘कोरोना वायरस’ जैसी भयानक महामारी का कारण माना जाता है और भविष्य में ऐसी और महामारियों का ख़तरा भी बना रहता है।

इंडिया के चमड़ा उद्योग में प्रयोग होने वाली गायों, भैंसों और अन्य जानवरों को छोटे व तंग वाहनों में ठूस ठूस कर इस प्रकार से एक साथ भरा जाता है कि परिवहन के दौरान रास्ते में ही उनकी हड्डियाँ टूट जाती हैं। कत्लखानों तक पहुचनें वाली इस दर्दनाक यात्रा के दौरान जो जानवर जिंदा बच जाते हैं, बूचड़ख़ानों में सबके सामने उनका गला काट दिया जाता है और सचेत अवस्था में होने के बावजूद उनके शरीर से उनकी खाल उतार ली जाती है। चमड़े का प्रयोग मानव स्वास्थ के लिए भी हानिकारक है क्योंकि चमड़े के कारखानों से निकलने वाले दूषित रसायनों से “जल प्रदूषण” फैलता है जो इन्सानों में कैंसर, सांस की बीमारियों और अन्य शारीरिक रोगों का कारण है।

PETA इंडिया के बिलबोर्ड निम्नलिखित स्थानों पर लगवाए गए हैं:

 

संकल्प लें की आप अपने शरीर पर केवल अपनी त्वचा ही पहनेंगे।

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