नयी जाँच में कलकत्ता के घोड़ों की दयनीय स्थिति का खुलासा हुआ और PETA इंडिया ने कलकत्ता उच्च न्यायालय में घोड़ा गाड़ियों पर रोक लगाने की मांग जारी रखी

Posted on by Sudhakarrao Karnal

17 जनवरी 2023 को, PETA इंडिया ने माननीय कलकत्ता उच्च न्यायालय के समक्ष कई महत्वपूर्ण रिपोर्टें पेश कीं, जिसमें उल्लेखित किया गया कि शहर में पर्यटकों की गाड़ियों को खींचने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले घोड़ों की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है, यह सभी जानवर काम करने के लिए कानूनी रूप से अयोग्य हैं, और उन्हें अवैध आवासों में रखा जा रहा है। इनमें से कई घोड़ागाड़ियों के मालिकों के पास, अपेक्षित लाइसेंस और पंजीकरण भी नहीं हैं।

इस संदर्भ में अदालत के पिछले निर्देशों के अनुसार, याचिकाकर्ता PETA इंडिया और CAPE फाउंडेशन के प्रतिनिधि, पशु चिकित्सकीय विशेषज्ञ डॉ. नरेश चंद्र उप्रेती ने 20 अक्टूबर 2022 और 21 दिसंबर 2022 को पशु संसाधन विकास विभाग (ARDD) द्वारा आयोजित दो स्वास्थ्य शिविरों में भाग लिया। डॉ. नरेश चंद्र उप्रेती द्वारा इस संदर्भ में एक विस्तृत रिपोर्ट भी तैयार की गयी। इस रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि कोलकाता में प्रयोग होने वाले घोड़ों में से कम से कम 90% घोड़ों के शरीर की स्थिति बहुत खराब थी, क्योंकि वे बेहद पतले, कमजोर और दुर्बल थे; कम से कम 75% घोड़ों के दोनों पैरों पर चोट के निशान थे; कम से कम 95% घोड़ों के दोनों पैरों और जोड़ों में सूजन थी; और कम से कम 75% जानवरों के होवस में असामान्यताएं देखी गई। इनमें से कई घोड़े नेत्रहीन भी हैं। डॉ उप्रेती ने बताया कि पैर की ये स्थिति अपरिवर्तनीय है और यह लगातार खड़े रहने और कंक्रीट पर काम करने के कारण होती है।

इसके अलावा, रिपोर्टें यह भी प्रदर्शित करती हैं कि ARDD द्वारा घोड़ों की केवल सतही रूप से जाँच की गई, यह पशुचिकित्सक न तो घोड़े के विशेषज्ञ थे और न ही घोड़ों के संबंध में कल्याणकारी मुद्दों में पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित थे। उन्हें दवाओं की उपयुक्त जानकारी भी थी और ज्यादातर मामलों में, बिना किसी जाँच के दवाएँ दी गई।

PETA इंडिया ने हाल ही में गाड़ियों को ढोने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले घोड़ों को बांधने या रखने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली साइटों की जांच की और पाया कि वे कोलकाता नगर निगम अधिनियम, 1980 के तहत लाइसेंसिंग आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते थे। जांच से पता चला कि यहाँ घोड़ों को कई घंटों तक बांधकर रखा जाता था। यह सभी जानवर ख़तरनाक परिस्थितियों में अपने मल-मूत्र में खड़े रहने के लिए मज़बूर थे और यहाँ टेटनस और ग्लैंडर्स जैसी बीमारियों के फैलने का व्यापक ख़तरा है। यह दोनों बीमारियाँ जानवरों से मनुष्यों में भी फैल सकती हैं।

PETA इंडिया की पिछली रिपोर्ट में भी साबित किया गया है कि शहर में सवारी के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले 100 से अधिक घोड़ों में खून की कमी है; यह सभी जानवर फ्रैक्चर सहित गंभीर चोटों से पीड़ित हैं; और गंदी परिस्थितियों में रहने को मजबूर हैं, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य को खतरा है।

गाड़ी की सवारी के लिए घायल और कुपोषित घोड़ों का उपयोग करना पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 का उल्लंघन है। इसके अलावा, कलकत्ता हैकनी-कैरिज अधिनियम, 1919 में घोड़ा-गाड़ी, घोड़ों और ड्राइवरों को पुलिस द्वारा लाइसेंस प्राप्त करना अनिवार्य है। इस प्रकार की अनिवार्य शर्तों का उल्लंघन करना, कानूनी रूप से अवैध है।

PETA इंडिया द्वारा कोलकाता में इन घोड़ों से जुड़ी कई सड़क दुर्घटनाओं की एक फैक्टशीट तैयार की है, जिसमें पर्यटकों को खींचने के लिए इनका इस्तेमाल करने के खतरों को दर्शाया गया है। इस तरह की दुर्घटनाओं से जानवरों को दर्द और पीड़ा होती है और यात्रियों के लिए सुरक्षा जोखिम पैदा होता है।

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