PETA इंडिया की अपील के बाद हिमाचल प्रदेश सरकार ने माता सूअरों को कैद में रखने वाले पिंजरों पर रोक लगाई

Posted on by Anahita Grewal

PETA इंडिया द्वारा हिमाचल प्रदेश सरकार को सूअर पालन हेतु जेस्टेशन एवं फैरोइंग क्रेट के प्रयोग पर रोक लगाने हेतु की गई अपील के बाद, हिमाचल सरकार के “पशुपालन और डेयरी विभाग” के निदेशक ने एक परिपत्र जारी कर सभी जिलों की पशु चिकित्सकीय सेवाओं के उप निदेशकों को अपने क्षेत्र में सुअर पालन केन्द्रों का निरीक्षण करके “पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960” की धारा 11(1)(e) के अंतर्गत, क्रूर पिंजरों के उपयोग पर रोक लगाने का निर्देश दिया। इस पत्र में इंगित किया गया कि जानवरों को ऐसे क्रूर एवं अवैध पिंजरों में सही से हिलने-डुलने तक का भी स्थान नहीं मिलता, जिससे उन्हें गंभीर घाव एवं बीमारियों का सामना करना पड़ता है,

इस परिपत्र में विशेषतः इंगित किया गया कि इस प्रकार के पिंजरे “पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960” की धारा 11(1)(e) का उल्लंघन हैं जिसके अंतर्गत किसी भी जानवर को ऐसे तंग पिंजरों में कैद रखना जिनमे वह सही से हिल डुल तक न सके, वह अवैध है। ‘‘भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के राष्ट्रीय शूकर अनुसंधान केंद्र द्वारा सूअरों के संबंध में यह पुष्टि की गयी है कि जेस्टेशन और फेरोईंग क्रेट जानवरों की प्रकर्तिक गतिविधियों एवं पशु कृषि संबंधी गर्भ निरोधक को बाधित करते हैं जो कि धारा 11(1)(e) का उल्लंघन होने के साथ गैरकानूनी भी है। PETA इंडिया की अपील बाद कर्नाटक, गोवा, राजस्थान और मध्य प्रदेश सरकारों द्वारा पहले ही जेस्टेशन और फैरोइंग क्रेट के उपयोग पर रोक लगाने वाले सर्कुलर जारी किए जा चुके हैं। इसी तरह का एक सर्कुलर पहले पंजाब सरकार द्वारा जारी किया गया था।

जेस्टेशन क्रेट (उर्फ गर्भवती सुअर को जकड़ने का तंग पिंजरा) जो केवल सुअर की माप के होते हैं, इनका फर्श पक्का या कंक्रीट का होता है, जिसमे जानवरों को करवट बदलने या खड़े होने में अत्यधिक कष्ट होता है। जेस्टेशन क्रेट का इस्तेमाल गर्भवती सूअरों को एक जगह रोके रखने के लिए किया जाता है, बच्चों को जन्म देने के लिए फैरोइंग क्रेट (जन्म देने का तंग पिंजरा) में भेज दिया जाता है और उन्हें वहाँ तब तक रखा जाता है जब तक कि उनके नवजात बच्चों को उनसे अलग न कर दिया जाये। ये फैरोइंग क्रेट मूल रूप से जेस्टेशन क्रेट के समान होते हैं, बस इनमे सूअर के नवजात बच्चों के लिए साइड में छोटे खांचे बने रहते हैं।

जेस्टेशन और फैरोइंग क्रेट इतने छोटे व सँकरे होते हैं कि वे मादा सूअरों को उन सभी चीज़ों से वंचित कर देते हैं जो उनके लिए प्राकृतिक और महत्वपूर्ण हैं, जैसे कि चारा खाना, अपने बच्चों के लिए घोंसला बनाना, अन्य सूअरों के साथ समूह में रहना, उनके शरीर के तापमान को नियंत्रित करने के लिए कीचड़ में लोट पोट होना। क्रेट मे बंद सूअरों को जबरन अपने ही मल-मूत्र में सने रहने के लिए मजबूर किया जाता है। अत्यधिक क्रूरता सह रहे सुअर तनाव और हताशा का शिकार होते हैं जिसके परिणामस्वरूप असामान्य व्यवहार करते हैं जैसे कि बाड़े की सलाखों को लगातार काटने का प्रयास या हवा को लगातार चबाने की कोशिश करते रहना ।

 

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