PETA इंडिया की शिकायत के बाद, माता गाय को मारने वाले डेयरी कर्मियों के खिलाफ़ FIR दर्ज़ की गई

Posted on by Sudhakarrao Karnal

हाल ही में एक वीडियो सामने आया जिसमें एक डेयरी कर्मी द्वारा गाय को बांस के मोटे डंडे से बेहद क्रूरतापूर्ण ढंग से पीटते देखा गया और इस वीडियो में मार खाने वाली गाय के छोटे बछड़े को भी उसके बगल में बेबस खड़े देखा जा सकता है। इस वीडियो साक्ष्य के आधार पर पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA), इंडिया की टीम मेम्बर डॉ. किरण आहूजा द्वारा तात्कालिक कार्यवाही करते हुए खमतराई पुलिस स्टेशन में एक औपचारिक शिकायत दर्ज़ कराई गई। इस शिकायत के आधार पर, पुलिस द्वारा भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धारा 511 (धारा 429 के साथ पढ़ी गयी), एवं पशु क्रूरता निवारण (PCA) अधिनियम, 1960 के अंतर्गत FIR दर्ज़ की गई है।

सभी प्रजातियों के लिए माँ और बच्चे के बीच का प्यार एक पवित्र बंधन है। क्रूर डेयरी उद्योग द्वारा बछड़ों को जन्म के 12 से 24 घंटों के बाद ही अपनी शोषित माताओं से जबरन दूर कर दिया जाता है ताकि इंसानों द्वारा उनके दूध का सेवन किया जा सके। प्राकृतिक रूप से, बछड़ों द्वारा जन्म के एक वर्ष तक अपनी माँ के दूध का सेवन किया जाता है।

गाय अपने बछड़े के जन्म के केवल पांच मिनट के भीतर एक मजबूत मातृ बंधन विकसित कर लेती हैं और नीचे दी गयी घटना में उनके जीवनभर के प्यार का उदहारण देखा जा सकता है। उत्तर कन्नड़ में एक गाय चार साल से हर दिन उसी बस ड्राइवर का रास्ता रोकती है जिसने ट्रैफिक दुर्घटना में उसके बच्चे को मार डाला था। इस बस चालक द्वारा अपनी बस का रंग भी बदल लिया गया लेकिन फिर भी यह गाय अपने बच्चे की याद में हर दिन ऐसा करती है। इस गाय द्वारा सड़क पर किसी और गाड़ी का रास्ता नहीं रोका जाता है। अब कल्पना कीजिए कि किसी डेयरी फार्म पर गाय को कैसा लगता होगा जब वह साल-दर-साल कृत्रिम रूप से गर्भाधान करती है और अपनी संतान को कभी देख भी नहीं पाती है।

शोध से पता चला है कि जो लोग जानवरों के खिलाफ क्रूरता करते हैं, वह आगे चलकर जानवरों या मनुष्यों को भी चोट पहुंचाने का प्रयास करते हैं। घरेलू हिंसा पीड़ितों पर किए गए एक अध्ययन में 60% महिलाओं ने माना कि उनके अत्याचारी पार्टनरों ने उनके कुत्तों या अन्य जानवरों को भी नुकसान पहुंचाया या मार दिया। IPC 1860 में सख्त दंड का प्रावधान है, लेकिन PETA इंडिया देश के ‘पशु क्रूरता निवारण अधिनियम’, 1960 को मजबूत करने के लिए भी लंबे समय से अभियान चला रहा हैं। यह कानून और इसके दंड प्रावधान बहुत पुराने और अप्रासंगिक है,  जैसे इसके अंतर्गत पहली बार जानवरों पर अपराध का दोषी पाये जाने पर महज़ 50 रुपये के जुर्माने का प्रावधान है।

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