सूअरों को जल्लीकट्टू में और खरगोश को जुलूस में इस्तेमाल करने वाले लोगों के खिलाफ़ केस दर्ज़

Posted on by PETA

PETA इंडिया की शिकायतों के बाद, थेनी पुलिस द्वारा सूअरों का प्रयोग करके अवैध जल्लीकट्टू का आयोजन करने करने वाले आयोजकों और प्रतिभागियों के खिलाफ़ FIR दर्ज़ कर ली गई है और धर्मपुरी के वन विभाग द्वारा एक खरगोश को पकड़कर गाँव के जुलूस में इस्तेमाल करने वाले लोगों के खिलाफ़ POR दर्ज़ कर ली गई है। थेनी पुलिस द्वारा सूअरों का जल्लीकट्टू हेतु प्रयोग करने के जुर्म में 11 लोगों को गिरफ़्तार किया गया और जिन्हें बाद में ज़मानत पर रिहा कर दिया गया। वन अधिकारियों ने खरगोश को पकड़ने और प्रयोग करने के जुर्म में पाँच आरोपियों के ऊपर 5,000 रुपये का जुर्माना लगाया।

pigs used for jallikattu and hare for village procession

जल्लीकट्टू हेतु सूअर का प्रयोग करने वाली गैरकानूनी घटना हेतु पुलिस द्वारा दर्ज की गई FIR में “भारतीय दंड संहिता, 1860” की धारा 143 और 289 और “पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960” की धारा 11 (1) (m) (ii) के उल्लंघन का आरोप शामिल किया गया है। वन विभाग द्वारा खरगोश को कैद करने हेतु दर्ज़ की गई POR में “वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972” की धारा 2(16), 9, और 54 के अंतर्गत POR दर्ज़ की गई है।

PETA इंडिया को विभिन्न खबरों और एक वीडियो के माध्यम से इस घटना के खिलाफ़ कई शिकायतें मिल रही थी। इस वीडियो में अवैध रूप से जल्लीकट्टू आयोजित करने वाले प्रतिभागियों ने सूअरों की पुंछ एवं पैर से खींचकर उन्हें पीछे घसीटा व एक अन्य घटना में ग्रामीणों ने खरगोश के पैर और कान पकड़कर उसे जबरन जुलूस में ले गए और बाद में झाड़ियों में छोड़ दिया।

इस अवैध आयोजन में प्रयोग की गई सूअर की प्रजाति का प्रयोग अक्सर मांस हेतु किया जाता है। इन जानवरों को तंग पिंजरों में कैद करके पाला जाता है और सचेत अवस्था में रहते हुए इनके गले में चाकू घोंप दिया जाता है या सिर पर हथौड़ा मारकर मौत के घाट उतार दिया जाता है। पशु क्रूरता निवारण अधिनियम के तहत एक सूअर को इंसान के साथ लड़ने के लिए उसे उकसाना संज्ञेय अपराध है और भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 2014 के अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि अधिनियम के इस प्रावधान का निष्ठापूर्वक पालन किया जाना चाहिए।

जिस प्रकार गाँव के लोगों ने जुलूस के लिए इस खरगोश को जबरन पकड़ा खींच कर ले गए, उससे इनके सोचने-समझने और निर्णय लेने की क्षमता पर काफी असर पड़ता है जिस कारण छोटी उम्र से ही इनके शिकार होने का खतरा बढ़ जाता है। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972, के अंतर्गत खरगोश (Hare) संरक्षित प्रजाति है और इनका शिकार करना प्रतिबंधित हैं। (“शिकार” शब्द का तात्पर्य किसी जंगली जानवर को पकड़ना, डराना, फंसाना, स्थानांतरित करना, उत्पीड़न करना या ऐसा प्रयास करने से है।) धारा 51 के अंतर्गत किसी खरगोश का शिकार करने पर तीन साल तक की जेल की सज़ा और 25,000 तक के जुर्माने या दोनों का प्रावधान है। इस घटना का साक्ष्य वीडियो के रूप में प्रस्तुत हैं, इसलिए इस अपराध का अधिनियम की धारा 54 के तहत शमन नहीं किया जाना चाहिए, जैसा कि वन विभाग द्वारा किया गया है, क्योंकि यह “उचित संदेह” (जो कि एक शमनीय अपराध की कसौटी है) का मामला नहीं है।

कृपया जानवरों पर होने वाले शोषण के खिलाफ़ कठोर दंड की मांग करें