पुरस्कार विजेता अभिनेता और निर्देशक अदिवी सेश ने की तेलंगाना की पालामूर बायोसाइंसेस लैब में ज़हर दिए गए बीगल कुत्तों और अन्य पशुओं को बचाने की अपील – PETA इंडिया की रिपोर्ट के बाद उठाई आवाज़
तेलुगु फिल्म अभिनेता और निर्देशक अदिवी सेश ने भारत सरकार की पशु प्रयोग नियंत्रण और निगरानी समिति (CCSEA) के चेयरमैन डॉ. अभिजीत मित्रा को पत्र लिखा है। उन्होंने आग्रह किया है कि तेलंगाना की पालामूर बायोसाइंसेस लैब में बंद बीगल कुत्तों और अन्य पशुओं को बचाकर अच्छे घरों और सुरक्षित स्थानों पर भेजा जाए, और इस कंपनी को आगे पशुओं की ब्रीडिंग (पालन) या प्रयोग करने से रोका जाए। अदिवी सेश को कई पुरस्कार मिल चुके हैं, जैसे कि फिल्म क्षणम के लिए बेस्ट स्क्रीनप्ले का आईफा और नंदी पुरस्कार, और फिल्म मेजर के लिए क्रिटिक्स बेस्ट एक्टर का SIIMA अवॉर्ड।
पिछले हफ्ते, PETA इंडिया ने एक व्हिसलब्लोअर (सूचना देने वाले व्यक्ति) की मदद से एक चौंकाने वाली रिपोर्ट जारी की। इसमें बताया गया कि पालामूर बायोसाइंसेस, जो कि एक सरकारी रजिस्टर्ड लैब है, पशुओं पर दवाएं, कीटनाशक और मेडिकल डिवाइस का परीक्षण करती है – वह भी कई बार विदेशी ग्राहकों के लिए। यह कंपनी खुद को भारत की सबसे बड़ी प्रीक्लीनिकल सेवा देने वाली कंपनियों में से एक बताती है।
अदिवी सेश ने अपने पत्र में लिखा:
“मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि पालामूर बायोसाइंसेस को पशुओं का इस्तेमाल और पालन बंद करने को कहा जाए और जो जानवर बचे हैं उन्हें अच्छे घरों और आश्रयों में भेजा जाए। पूरी दुनिया अब पशुओं पर प्रयोग करने के तरीके से हट रही है और आधुनिक, बिना पशुओं वाले तरीकों की ओर बढ़ रही है – हमें भी यही करना चाहिए।”
PETA इंडिया से संपर्क करने वाले व्हिसलब्लोअरों के अनुसार, यह लैब — जो आम तौर पर बीगल और अन्य पशुओं को ज़हर देती है — ने पशुओं को बहुत ही बुरी स्थिति में रखा है। कभी उन्हें भीड़भाड़ वाले पिंजरों में ठूंस-ठूंस कर रखा गया, तो कभी अकेलेपन में, जिससे उन्हें चोटें, संक्रमण और आखिर में तब दर्दनाक मौत मिली, जब कंपनी को लगा कि अब ये पशु “काम के नहीं रहे” तो उन्हें मार दिया गया।
व्हिसलब्लोअरों के अनुसार, पशुओं के साथ की गई क्रूरता में शामिल हैं:
- लैब में 1500 बीगल कुत्तों को ऐसे पिंजरों में रखा गया जो केवल 800 कुत्तों के लिए बने थे। कई बार 3-4 कुत्तों को एक छोटे पिंजरे में रखा गया। इससे झगड़े हुए, कान और शरीर पर चोटें आईं, लेकिन कंपनी ने कोई इलाज नहीं कराया।
- स्टाफ ने कुत्तों को पीटा, पिंजरे के दरवाजे में उनका पैर फसा दिया जिससे हड्डियाँ टूट गईं।
- कुछ परीक्षणों में, कुत्तों को स्किन के नीचे इंजेक्शन दिए गए, जिनसे इन्फेक्शन और फोड़े हो गए। दर्द में तड़पते ये पशु खाना पीना छोड़ देते थे और उनका वजन गिरने लगता था।
- कुछ कुत्तों के मुँह और आंतों में घाव (अल्सर) हो गए। रिपोर्ट में बताया गया कि कुछ कुत्ते खून में पड़े हुए पाए गए।
- थायोपेंटोन नामक दवा से कुत्तों को मारा जाता था, लेकिन उन्हें पहले बेहोश नहीं किया जाता था, जिससे उनकी मौत बहुत तकलीफदेह होती थी।
- लैब ने डेनमार्क से Göttingen नस्ल के मिनीपिग्स (सूअर) खरीदे, लेकिन इनके लिए ब्रीडिंग की अनुमति नहीं थी। जब एक पिग ने बच्चे दिए, तो उन्हें दर्दनाक तरीके से मार दिया गया।
- पिग्स को खेलने का मौका देने की नीति होते हुए भी, यह सिर्फ तब लागू की जाती थी जब ग्राहक दौरे पर होते थे। बाकी समय उन्हें पिंजरों में ही बंद रखा जाता था।
- लैब ने राजस्थान से पकड़े गए बंदर (रिसस मकाक) भी खरीदे। कुछ बंदर संक्रमण (जैसे मंकीपॉक्स) से पीड़ित पाए गए, लेकिन कंपनी ने यह बात छुपा ली और बंदरों को चुपचाप मार डाला, जिससे वहां काम कर रहे लोगों को भी खतरा हुआ।
PETA इंडिया ने यह रिपोर्ट CCSEA, CDSCO और NGCMA को भेज दी है और कंपनी की पंजीकरण रद्द करने, कानूनी कार्रवाई करने और बचे हुए पशुओं को पुनर्वास (rehabilitate) करने की माँग की है।
अब समय आ गया है कि पालामूर बायोसाइंसेस को बंद किया जाए और पशुओं को बचाया जाए।