6 सबक जो हम नेटफ्लिक्स डॉक्यूमेंट्री “Seaspiracy” से सीख सकते हैं

Posted on by PETA

यदि आप सोच रहे है मछली खाना क्यूँ हानिकारक है तो फिर आप स्वयं “Seaspiracy” नामक फिल्म में देख लें। अली तबरीजी द्वारा निर्देशित इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे मछली पकड़ने वाले उद्योगों ने समुद्री पशु आबादी को तबाह किया है और अगर मनुष्य इसी तरह से मछली का उपभोग जारी रखेगा तो समुद्री परिवेश के परिणाम क्या होंगे है। यह फिल्म भी उसी टीम द्वारा बनाई गयी है जिसने Cowspiracy नामक फिल्म बनाई थी लेकिन इस बार उन्होने जमीनी सटह के नीचे की दुनिया में वैश्विक मत्स्य उद्योग द्वारा की जा रही क्रूरता की गहराई को प्रस्तुत किया है

 

Seaspiracy फिल्म में आंखे खोल देने वाले 6 सत्य-

1. मछली भी महसूस करती हैं –

प्रत्येक मछली एक जीती जागती प्राणी है जिसमे जीने की इच्छा होती है। मछली मनुष्यों की तरह दर्द का अनुभव करती है, जटिल तरीकों से संवाद (उदाहरण के लिए हेरिंग्स जो एक-दूसरे को फर्टिंग के द्वारा संकेत देती है) और डर महसूस कर सकती है।

 

जब बड़े पैमाने पर व्यावसायिक मछली पकड़ने वाले जाल उन्हें पकड़कर उनके घरों यानि समुद्रों से बाहर निकल देते हैं, उंहें इतनी कसकर पैक किया जाता है कि उनकी आंखें फटकार उनके सिर से बाहर निकलाती हैं, उनके कोमल शरीर को खींचकर समुद्र से बाहर निकाल दिया जाता है और उंहें डिकंप्रेशन से गुजरने के लिए मजबूर किया जाता है – जिसके कारण अक्सर उनका ब्लेडर फट जाता है और उनके शरीर के अंदरूनी अंग उनके मुंह से बाहर निकाल आते हैं। मछली के लिए पानी से बाहर की दुनिया एक कष्टदायी एवं भयानक दर्द के समान होती है। पानी के बाहर आने पर बाहरी वातवरन के दबाव से अगर वह बच भी जाती हैं तो मछुआरे उनके गले काटकर उंहें तड़फता हुआ छोड़ देते हैं या फिर धीमी एवं घुटन भारी मौत मरने के लिए उन्हें बर्फ में ढक देते हैं। आप नहीं चाहोगे कि कोई आपको लात मारे, इधर उधर फेंके, आपका दम घुट जाए, या फिर आपके शरीर को कांटे में फसकर तब तब लटका दिया जाए जब तक कि आपके शरीर को छोटे छोटे टुकड़ों में काट न दिया जाए, मछलियाँ भी यह नहीं चाहती।

2. भोजन के लिए मछलियों की ह्त्या करना कोई जरूरी नहीं है।

कंपनियों भ्रामक लेबल का उपयोग करके जैसे (“greenwashing”) ग्राहकों को भ्रमित करती हैं कि  मछलियों की कुछ क़िस्मों की हत्या करना “जरूरी” है, यह सब बेबुनियाद एवं भ्रामक हैं। उदाहरण के लिए, एक अनुमान के अनुसार ‘स्कॉटिश सेलमन फ़ार्मिंग’ स्कॉटलैंड की पूरी मानव आबादी से ज्यादा कार्बनिक अपशिष्ट का उत्पादन करता है, फिर भी वह मछली के मांस पर “ससटेनेबली प्रोड्यूसड़” के नाम से उसकी मार्केटिंग करता है। व्यावसायिक रूप से मछली पकड़ना oil spills से कहीं अधिक खतरनाक है -मेक्सिको की खाड़ी में मछली पकड़ने के उद्योग ने एक ही दिन में इतने जीवों की हत्या कर दी जितना oil spills से एक महीने में भी नहीं होती।

समुद्री “संरक्षण” समूहों के बीच “सस्टेनेबल” शब्द की परिभाषा पर भी सहमति नहीं है, इसलिए ऐसा कोई लेबल बहुत अधिक विश्वसनीय नहीं है। वन्यजीव आबादी को तबाह करने के लिए ये “सस्टेनेबल” शब्द का उपयोग करना कोई तरीका नहीं है। असल में इसका टिकाऊ और नैतिक विकल्प केवल एक ही है और वह यह कि मछली का सेवन छोड़ शाकाहारी जीवन जीना है।

 

 

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3यदि मछली पकड़ने की प्रवृत्ति जारी रहती है, तो महासागर 30 वर्षों से भी कम समय में समाप्त हो जाएंगे ।

जी हां, आपने सही पढ़ा। अगर हमने अभी इस बारे में सही कदम नहीं उठाए तो महासागर 2048 तक खाली हो जाएंगे और समुद्र में बहुत सारी मछलियां नहीं हैं । हमें लालची और क्रूर मत्स्य उद्योग का समर्थन करना बंद कर देना चाहिए, जो हर साल 2.7 ट्रिलियन मछलियों को मार देदेता है। मछली महासागर के पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, और उनके बिना, कोरल, व्हेल, डॉल्फिन और समुद्री पक्षियों सहित अन्य जानवरों – भूखे और मर जाएंगे।

 

 

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4. “प्लास्टिक स्ट्रॉ” पर बहस से ज्यादा गंभीर कुछ और भी है-

एक कछुए की नाक में प्लास्टिक का स्ट्रॉ फस जाने वाले वीडियो ने कई होटलों एवं रेस्तरां को प्लास्टिक की जगह कागज या जूट के स्ट्रॉ इस्तेमाल करने के लिए राजी कर लिया है। यह एक अच्छी बात है, लेकिन यह सागर में एक बूंद के समान है-प्लास्टिक का कचरा एवं स्ट्रॉ हर साल विश्व स्तर पर 1000 समुद्री कछुए की मौत का कारण बंता है। लेकिन अकेले अमेरिका में, मछली पकड़ने वाले जहाजों पर हर साल तकरीबन 250,000 समुद्री कछुओं को दर्दनाक तरीकों से मौत के घाट उतार दिया जाता है।

शायद ही कोई इस व्यक्ति या संस्था इस अत्याचार पर बात कर रही है: समुद्र में प्लास्टिक के स्ट्रॉ केवल कुल कचरे के.03% ही हैं जबकि ग्रेट पैसिफिक में पाये जाने वाले कुक कचरे का आधा हिस्सा मछली पकड़ने वाले जाल का है, यह आपके अनुमान से भी परे होगा शायद।

5. व्यावसायिक मछली पकड़ने से “डॉल्फिन सुरक्षित” नहीं है।

ट्यूना के डिब्बे पर लगा “डॉल्फिन सुरक्षित” का लेबल देखकर ग्राहक राहत महसूस करते हैं लेकिन उसकी सत्यता उस कागज की कीमत से भी कम है जिस पर यह लेबल छापा हुआ है। हर साल मछली पकड़ने के जाल में फंसने के बाद 300,000 डॉल्फिन और व्हेल मारे जाते हैं और क्योंकि अधिक मछली पकड़ने के कारण मछलियों की बहुत सारी आबादी समाप्त हो गयी है इसलिए कुछ क्षेत्रों में मछुआरों आपसी “प्रतियोगिता” के चलते नियमित रूप से डॉल्फिन की हत्या भी करते हैं। ट्यूना-मछली पकड़ने के एक ऐसे जहाज ने जो “डॉल्फिन-सुरक्षित” होने का दावा करता है, ने आठ ट्यूना को पकड़ने के लिए 45 डॉल्फिन की हत्या कर दी और कोई ट्यूना भी “ट्यूना-सुरक्षित” नहीं है!

आप कैसे कह सकते हैं आप जो भी खाते हैं उससे किसी जानवर की जान नहीं जा रही। इसका एक ही उपाय है की आप वीगान बनें।

6. मछली खाने के लिए कोई भी सफाई देने का कोई औचित्य नहीं है ।

मछली खाने से समुद्री जानवरों, पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है और हां, यहां तक कि आपके लिए भी हानिकारक है। एक प्लेट मछली के मांस के साथ अनेक विषाक्त भारी धातुएं, डायोक्सिन, प्लास्टिक यौगिक, और अन्य प्रदूषक पदार्थ भी आते हैं। और जहां तक मछली सेवन से ओमेगा-3 फैटी एसिड आने की की बात है तो मछली उन्हें भी नहीं बनाती है। वे शैवाल है जिनको वह खाती है और इनसे ओमेगा-3s मिलता है-और यह हम शैवाल वाला तेल लेकर या वीगन समुद्री भोजन लेकर भी प्राप्त कर सकते हैं ।

“Seaspiracy के निर्देशक अली तबरिज़ी कहते हैं- “मैंने महसूस किया है कि हर रोज इन सामुद्री जीवों की मदद करने के सबसे बेहतरीन उपाय यही है कि इन्हें खाना बंद कर दें।”

पूरे सागर को नष्ट करने वाले उद्योगो से इन मछलियों एवं समुद्रों को बचाने के लिए अभी भी समय है इसकी सुरक्षा की शुरुवात करें।

 

आज से ही वीगन जीवनशैली की शुरुवात करें

 

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