PETA इंटरनेशनल साइंस कंसोर्टियम लिमिटेड, बिना घोड़ों को कष्ठ दिये दवाओं के निर्माण हेतु वैज्ञानिक शोध को वित्तीय सहायता देगा

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भारत में व अन्य स्थानों पर डिप्थीरिया के इलाज हेतु घोड़ों के इस्तेमाल को समाप्त करने की दिशा में पहला कदम उठाने वाली परियोजना सफल रही है।

happy horse photo by Aneesh Sankarankutty used in diptheria progress blogAneesh Sankarankutty

PETA इंटरनेशनल साइंस कंसोर्टियम लिमिटेड द्वारा वित्त पोषित परियोजना जो जर्मनी के Technische Universität Braunschweig में जैव रसायन, जैव प्रौद्योगिकी और जैव सूचना विज्ञान संस्थान में क्रियान्वित की गयी। इस परियोजना में एक मानव-व्युत्पन्न एंटीबॉडी बनाई गयी जो पूरी तरह से उस विषैले ज़हर को रोकने में सक्षम है जो डिप्थीरिया का कारण बनता है। शोध के परिणाम सिर्फ साइंटिफिक रिपोर्ट्स (नेचर पब्लिशिंग ग्रुप द्वारा प्रकाशित एक शोध पत्रिका) में प्रकाशित किए गए और 17 जनवरी को विज्ञान पर प्रकाशित के एक लेख में भी इसे कवर किया गया।

डिप्थीरिया एक घातक संक्रामक बीमारी है जो गंभीर श्वसन संकट और महत्वपूर्ण अंगों को नुकसान पहुंचाती है। इस बीमारी के इलाज़ हेतु एंटीटॉक्सिन बनाने के लिए पिछले 100 सालों से भी अधिक समय से घोड़ों के शरीर से भारी मात्रा खून निकाल कर एंटीटॉक्सिन बनाया जाता है जिस हेतु घोड़ों के शरीर में बार बार सूईयां चुभोई जाती हैं। घोड़ों के शरीर से लिए गए खून से बनी एंटीटॉक्सिन से मानव रोगियों में गंभीर एलर्जी होने का खतरा भी होता है तथा वैश्विक स्वास्थ्य अधिकारी भी मानते हैं कि इस दवा के द्वारा डिप्थीरिया के प्रकोपों से शीघ्र निपटने में कठिनाई होती है।

horses used for anti-toxins diptheria blog

एंटीटॉक्सिन का उत्पादन करने के लिए जिन सुविधा केन्द्रों पर घोड़ों को रखा जाता है उन केन्द्रों पर किए गए एक निरीक्षण में घोड़ों के पालन पोषण में अनेकों खामियाँ पायी गयी। उन केन्द्रो पर घोड़ों को गंदी, बदबुदार, भीड़-भाड़ वाले बाड़ों में रखा गया था व अनेकों घोड़े एनीमिया, रोगग्रस्त खुरों, आंखों की असामान्यताएं, संक्रमण, परजीवी, और कुपोषण से पीड़ित पाये गए थे।

बिना घोड़ों के खून से डिप्थीरिया रोधी दवा के निर्माण हेतु किए गए शोध में शोधकर्ताओं ने मानव -व्युत्पन्न एंटीबॉडी उत्पन्न करने के लिए मानव रक्त कोशिकाओं का उपयोग किया जो डिप्थीरिया के ज़हर को फैलने से रोकती हैं। साइंस कंसोर्टियम अब अपने शोधकर्ताओं के साथ काम कर रहा है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बिना किसी पशु का इस्तेमाल किए एंटीटॉक्सिन दवा विकसित हो, जिसका उपयोग इस बीमारी का अधिक मज़बूती से और सुरक्षित रूप से इलाज करने के लिए किया जा सके व एक भी घोड़े को अपना खून न देना पड़े। साइंस कंसोर्टियम पहले से ही अपने अगले लक्ष्य पर काम कर रहा है जिसमे काली मकड़ी के काटने के इलाज के लिए घोड़ों के उपयोग की जगह अन्य विधियों को ईज़ाद करने के कवायद चल रही है और यह शोध तब तक जारी रहेंगे जब तक बिना किसी जानवर के इस्तेमाल से इन बीमारियों के इलाज़ हेतु अन्य तरीके खोज नहीं लिए जाते।

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