भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड ने किला रायपुर में होने वाली दौड़ों को अवैध कहा

PETA एवं भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड ने अवैध घुड़दौड़, खच्चर गाड़ी एवं कुत्तों की रेस को रोकने की कवायद शुरू की ।

चंडीगढ़- किला रायपुर में आगामी 8 से 10 मार्च को होने वाले खेलकूद जिनमें घोड़ागाड़ी, खच्चर, व कुत्तों की दौड़ होने की योजना है जबकि पशु संरक्षण कानून के अनुसार यह जानवरों की दौड़ प्रतियोगिता भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड के तहत पंजीकृत नहीं है, यह जानने के बाद PETA इंडिया ने भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड के सचिव, ज़िला कलेक्टर एवं लुधियाना के पुलिस आयुक्त को तत्काल पत्र लिखकर इन क्रूर दौड़ों को रोकने का आग्रह किया है। PETA इंडिया की शिकायत का जवाब देते हुए भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड ने बताया कि उन्होने भी हाल ही में पंजाब सरकार को एक पत्र भेजकर इन अवैध दौड़ों के आयोजन पर रोक लगाने की मांग की है।

“प्रदर्शनकारी पशु (पंजीकरण) नियम” एवं “प्रदर्शनकारी पशु (पंजीकरण) संशोधन नियम, 2001” के तहत “भारतीय पशु कल्याण बोर्ड” के अधीन पंजीकृत किए बिना पशुओं को किसी भी प्रकार के प्रशिक्षण, प्रदर्शन या अभिनय हेतु इस्तेमाल करना गैरकानूनी है। इस प्रकार के आयोजन “पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960” तथा “पशु परिवहन (संशोधन) नियम, 2001” का भी प्रत्यक्ष उलंघन है।

PETA इंडिया के चीफ एडवोकेसी ऑफिसर प्रकाश साशा कहते हैं- “इस प्रकार की दौड़ों के लिए जानवरों को पीटा जाता है, नाक में रस्सी डालकर घसीटा जाता है, नुकीली छड़ चुभोई जाती है, मुंह में नुकीली काँटेदार लगाम से खींचकर उनको दौड़ के समापन बिन्दु तक जबरन दौड़ने के लिए मजबूर किया जाता है। कामगर पशु जैसे बैल, घोड़े या खच्चरों की जिंदगी पहले से ही बदहाल है इनको और प्रताड़ित करके दौड़ों में शामिल करने की जरूरत नहीं”।

PETA इंडिया जो इस सरल सिद्धांत के तहत कार्य करता है कि “जानवर किसी भी प्रकार से हमारा दुर्व्यवहार सहने या मनोरंजन करने के लिए नहीं है” इस बात का संज्ञान लेता है कि कुत्तों को बहुत छोटे पिंजरों में रखा जाता है, उनकी सामान्य उम्र लगभग 16 वर्ष तक की होती है किन्तु महज़ 4 वर्ष उम्र में उनको ऐसी दौड़ो में प्रतिभाग कराया जाता है और अगर वो दौड़ में अच्छा प्रदर्शन न कर पाये तो उनको कठिन दंड यहां तक की मार भी दिया जाता है। अभ्यास सत्रों के दौरान इन कुत्तों को अक्सर भूखा रखा व अन्य जानवर जैसे खरगोश को उसके चारे के लिए इस्तेमाल किया जाता है ताकि वो खरगोश को देखकर तेजी से उसकी तरफ भाग सके। पहले से दौड़ों में घायल हुए घोड़े एवं खच्चर पर्याप्त चिकित्सीय देखभाल के अभाव के चलते पैरों की समस्याओं से जूझ रहे हैं तथा इस प्रकार की दौड़ें उनकी पुरानी चली आ रही समस्याओं को बढ़ाती हैं व जानवरों की पीड़ा में हिजाफ़ा करती हैं। दौड़ों में इस्तेमाल होने वाले घोड़े अक्सर गंदे अस्तबलों में अपने ही मल मूत्र में सने खड़े रहते हैं व उनको उनको पर्याप्त भोजन, पानी एवं चिकित्सीय देखभाल से वंचित रखा जाता है। वह अक्सर घायल, बीमार या गंभीर रूप से कुपोषित होते हैं।

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