स्त्रीवादियों को अंडा क्यों नहीं खाना चाहिए

Posted on by PETA

क्या आप अंडे का सेवन करके स्वयं को स्त्रीवादी मान सकती हैं?

कुछ लोग जीवित मादा प्रजातियों की पीड़ा को ठीक उसी प्रकार कोई महत्व नहीं देते जिस प्रकार से महिलाओं को गैरज़रूरी, नासमझ और आयोग्य समझा जाता हैं। हालांकि यह पूरी तरह से गलत है लेकिन लोगों ने जिस तरह के आधारहीन तर्क देकर महिलाओं के साथ होने वाले शोषण को उचित साबित किया है, ठीक उसी तरह से लोग मुर्गियों के अधिकारों की अवहेलना करते हुए उनकी पीड़ा को नजरंदाज करके व बेकार के तर्क देकर उनके साथ होने वाले शोषण को सही साबित करते हैं हालांकि यह पूरी तरह से बेबुनियाद व गलत अवधारणा है।

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मुर्गियां जिज्ञासु होने के साथ-साथ जटिल मानसिक कार्यों को भी पूरा कर सकती हैं। उनमें व्यापक आत्म-नियंत्रण क्षमता होती हैं और वह भविष्य की चिंता करती हैं और अपने आने वाली पीड़ी को सांस्कृतिक ज्ञान देती हैं। कई बार उनकी संज्ञानात्मक क्षमता बिल्लियों, कुत्तों और यहां तक कि नर वानरों से भी अधिक होती है। अन्य सभी जानवरों (मनुष्यों सहित) की तरह, वे अपने परिवारों से प्यार करती हैं और अपने स्वयं के जीवन को महत्व देती हैं। वे अपने समूह में अपने रिश्तेदारों और अन्य मुर्गियों की तलाश करती हैं। उनके पास मनुष्यों की तरह जटिल सामाजिक संरचनाएं, अच्छी तरह से विकसित संचार कौशल, और विशिष्ट व्यक्तित्व हैं। अगर आपने कभी “पेकिंग ऑर्डर,” “हेन फेस्ट,” या “मदर हेन” के बारे में बात की है, तो आप उस व्यवहार का वर्णन कर रहे थे, जो हमने मुर्गियों में देखा है।

लेकिन मुर्गियाँ निश्चित ही इस दुनिया में सबसे ज़्यादा दुर्व्यवहार सहने वाली जानवर हैं।

भारत में हर चार घंटों पर, लगभग 10 लाख संवेदनशील और बुद्धिमान मुर्गियों को भोजन के लिए मार दिया जाता है। जब तक उन्हें क्रूरतापूर्ण ढंग से मौत के घाट नहीं उतार दिया जाता तब तक अधिकांश मुर्गियाँ अपना पूरा जीवन गहन कारावास में बिताती हैं। । वह न तो कभी घास पर चल पाती हैं न ही सूरज की गर्मी महसूस कर पाती हैं या ताजी हवा में सांस ले पाती हैं। वे दिन-रात अपने और अपने साथियों के मलमूत्र मे सने मुर्गीपालन केन्द्रों में जिंदगी गुजारती हैं,  उनके कई मृत और मरणासन्न साथी और परिवार के सदस्य फर्श पर पड़े होते हैं। उन्हें इतने गंदे और तंग पिंजरे में कैद किया जाता है जिसमें वह अपने पंख भी नहीं फैला पाती। मुर्गियों को इस प्रकार की गंदी और भीड़ भरी परिस्थितियों में रखने के कारण बहुत से ख़तरनाक संक्रमणों और बीमारियों का भी जन्म हो सकता हैं जिनमें बहुत तेज़ी से फ़ैलने वाला बर्ड फ़्लू एक है।

मुर्गीपालक मालिकों द्वारा मुर्गियों का कई प्रकार से शोषण किया जाता है जिनमें से प्रमुख है- अप्राकृतिक संख्या में अंडों का उत्पादन करने हेतु बाध्य करना। इसके कारण कई बार मुर्गियों को अल्सर, ख़तरनाक संक्रमण, प्रजनन ट्यूमर, बच्चेदानी का कैंसर जैसी कई खतरनाक बीमारियों का सामना करना पड़ता है और कई बार उनके अस्वस्थ शरीर में बड़ी संख्या में अंडे एकत्र हो जाते हैं। लगातार अंडे देते रहने से कैल्शियम की कमी के चलते उनकी हड्डियाँ कमजोर होकर टूट जाते हैं।

फार्मों में मुर्गियों के साथ जीवित संवेदनशील प्राणी की तरह व्यवहार नहीं किया जाता और उन्हें अंडा उत्पादन करने वाली मशीन समझा जाता है। पैसे के लालच में मुर्गियों की प्राकृतिक प्रजनन क्षमता को नज़रअंदाज़ कर उनकी क्षमता से कहीं अधिक अंडे देने के लिए मजबूर किया जाता है।

एक स्वस्थ मुर्गी प्रकर्तिक रूप से 10 साल तक जीवित रह सकती है लेकिन फार्मों पर वह केवल  2 साल ही जीवित रह पाती हैं। जब उनकी अंडा देने की क्षमता कम हो जाती है तो उन्हें बेकार मानकर अन्य मादाओं से भरी गाड़ी में लादकर मरने के लिए बूचड़खाने या मांस बाजार में भेज दिया जाता है जहां मांस प्राप्त करने के लिए उनके सचेत अवस्था में रहते उनकी गला काट कर हत्या कर दी जाती है।

PETA इंडिया सभी से अनुरोध करता है कि वह मादा प्रजातियों के साथ हो रहे व्यवस्थित शोषण के खिलाफ़ आवाज़ उठाए। उनके प्रति दयालू बनने से उन्हें पीड़ा नहीं पहुँचती बल्कि उनके उस दुख और पीड़ा का अंत होता है जो इंसान खुद की प्रजाति को ऊंचा व उनकी प्रजाती को कमजोर मानकर उनके शोषण के फलस्वरूप उन्हे देता है।

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