PETA इंडिया की शिकायत के परिणामस्वरूप असम में बैलों की अवैध लड़ाई के दौरान बैलों के साथ हुई जघन्य क्रूरता के खिलाफ़ FIR दर्ज़ की गयी

Posted on by Siffer Nandi

PETA इंडिया द्वारा दर्ज़ कराई गयी शिकायत के परिणामस्वरूप, हाल ही में असम के नागांव जिले के राहा कोरोइगुड़ी और कासोमारी में आयोजित बैलों की अवैध लड़ाई के दौरान बैलों के साथ की गयी घोर क्रूरता के खिलाफ़ राहा पुलिस और नागांव सदर पुलिस द्वारा दो FIR दर्ज़ की गयी हैं। इस आयोजन की वीडियो को यूट्यूब पर भी अपलोड किया गया था जिसमें से एक के 14:33 मिनट पर एक बैल के सींग टूटने की तेज़ आवाज़ को सुना जा सकता हैं और उसका टूटा हुआ सींग भी देखा जा सकता है।  दूसरे वीडियो में (4:12 मिनट पर), लोग दो बैलों को बेरहमी से लाठियों के साथ पीट रहे हैं और उन्हें आपस में सींग लड़ाने के लिए बाध्य कर रहे हैं। इस क्रूरता के दबाव में, एक बैल दर्शकों की ओर भागने का प्रयास करती है जिसके बाद उसे फिर से मार-पीटकर नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है। PETA इंडिया द्वारा एक अंतरिम आवेदन दर्ज़ कराए जाने के बाद, गौहाटी उच्च न्यायालय ने निर्देश जारी किए थे कि अधिकारी यह सुनिश्चित करें कि असम में बैलों की लड़ाइयों को केवल 15 से 25 जनवरी के बीच आयोजित किया जाए और इस आदेश के तहत यह दोनों ही आयोजन पूर्ण रूप से अवैध हैं।

इस मामले में राहा पुलिस द्वारा पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 की धारा 3, 11(1)(ए), (बी), (एच), (एफ), (एल), (एम)(ii), एवं (एन) और भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धारा 34, 188, 289, और 429 के तहत FIR दर्ज की गई है। इसी के साथ, नागांव सदर पुलिस द्वारा इस अवैध लड़ाइयों के आयोजकों, प्रतिभागियों और पशु मालिकों के खिलाफ बैलों के साथ अत्यधिक क्रूरता करने और उन्हें लड़ने के लिए उकसाकर इंसानों की जान ख़तरे में डालने के लिए PCA अधिनियम की 3, 11(1)(ए), (एच), (एम) (ii), और (एन) और IPC की धारा 34, 188, 289, 429, और 511 के तहत मामला दर्ज़ किया गया है।

असम सरकार के बैल की लड़ाई को अनुमति प्रदान करने के निर्णय के बाद, PETA इंडिया ने गौहाटी उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर, इस प्रकार की क्रूर लड़ाइयों को फिर से प्रतिबंधित करने का अनुरोध किया है। मामले से संबंधित साक्ष्य के रूप में, PETA इंडिया ने इन लड़ाइयों की एक जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करी, जिससे पता चला कि इन लड़ाइयों के लिए डरे हुए एवं गंभीर रूप से घायल बैलों को लड़ने के लिए मजबूर किया जाता है।

 

16 जनवरी को असम के मोरीगांव जिले के अहातगुरी में हुई बैलों की लड़ाई की जांच से पता चला कि बैलों को लड़ने के लिए उकसाने हेतु, इनके मालिकों ने इन्हें बहुत मारा-पीटा, लाठी चुभाई, और इनकी नाक की रस्सी को बड़ी ही बेरहमी से खींचा गया, जिससे इनकी नथुनी फट गयी और उससे खून बहने लगा। यहाँ तक कि लड़ाई के दौरान भी कुछ मालिकों और संचालकों ने बैलों को और अधिक परेशान करने के लिए उन्हें लकड़ी के डंडों से मारा और नंगे हाथों से पीटा। इन सब से उत्तेजित होकर, बैलों ने अपने-अपने सींग आपस में फंसा लिए और लड़ने लगे जिससे उनकी गर्दन, कान, चेहरे और माथे पर बहुत से खूनी घाव हो गए एवं कई बैलों के पूरे शरीर पर चोटें आईं। यह लड़ाई तब तक जारी रही जब तक कि दो बैलों में से कोई एक अपनी हिम्मत पूरी तरह से हार न गया।

 

15 जनवरी को असम के हाजो में आयोजित बुलबुल की लड़ाई की जांच रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची II के तहत संरक्षित पक्षी रेड-वेंटेड बुलबुल को जबरन कैद करके और भोजन का लालच देकर अवैध रूप से लड़ने के लिए उकसाया गया जो कि उनकी प्राकृतिक प्रवृत्ति के बिल्कुल खिलाफ़ है। रिपोर्ट में उल्लेखित किया गया है कि इन पक्षियों को लड़ाई से कई दिन पहले ही जबरन कैद कर लिया जाता है जबकि संरक्षित जंगली पक्षियों को पकड़ना इनके शिकार का ही एक रूप माना जाता है जो कि पूर्णत अवैध है।

 

कथित तौर पर, पक्षियों को उत्तेजित करने के लिए उन्हें आमतौर पर भांग का नशा दिया जाता है और अन्य नशीली जड़ी-बूटियाँ, केले, काली मिर्च, लौंग और दालचीनी खिलाई जाती हैं, फिर लड़ाई से पहले उन्हें कम से कम एक रात के लिए भूखा रखा जाता है। लड़ाई के दौरान, भूखे पक्षियों के सामने केले का एक टुकड़ा लटका दिया जाता है, जो उन्हें एक-दूसरे पर हमला करने के लिए उकसाता है। प्रत्येक लड़ाई लगभग पांच से 10 मिनट तक चली, और संचालकों ने थके हुए पक्षियों पर बार-बार हवा मारकर उन्हें लड़ाई जारी रखने के लिए मजबूर किया।

PETA इंडिया द्वारा उच्च न्यायालय में दर्ज़ याचिका में उल्लेखित किया गया है कि बैल और बुलबुल की लड़ाई भारतीय संविधान के साथ-साथ, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960; और माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भारतीय जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड बनाम ए नागराजा  के फैसले का भी स्पष्ट उल्लंघन है। PETA इंडिया यह भी उल्लेखित करता है कि इस तरह की लड़ाइयाँ स्वाभाविक रूप से क्रूर होती हैं और इसमें भाग लेने के लिए मजबूर जानवरों को अथाह दर्द और पीड़ा का सामना करना पड़ता है। यह लड़ाइयाँ अहिंसा और करुणा के सिद्धांतों का खंडन करती हैं, जो भारतीय संस्कृति और परंपरा का अभिन्न अंग हैं। इस प्रकार के आयोजनों को जारी रखना एक प्रतिगामी कदम है जो मानव और पशु अधिकारों में लगभग एक दशक की प्रगति को नष्ट कर देगा।

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