सीतापुर: गर्भवती घोड़ी की फावड़े से बेरहम पिटाई– अभियुक्त के खिलाफ मामला दर्ज एवं घोड़ी को रेस्क्यू कर सैंक्चुरी में भेजा गया
सीतापुर में एक गर्भवती घोड़ी को उसके मालिक द्वारा बड़ी बेरहमी से कुदाल (फावड़ा) से पीटे जाने का वीडिओ सामने आने के बाद, PETA इंडिया ने स्थानीय स्वयं सेवक ऋषभ शुक्ला और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के सहयोग से इस क्रूरता के खिलाफ कड़ा कदम उठाया। ऋषभ शुक्ला और PETA इंडिया की शिकायत पर महमूदाबाद पुलिस स्टेशन में अभियुक्त के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 325 और पशु क्रूरता निवारण अधिनियम (PCA) 1960 की धारा 11(1)(a) और 11(1)(l) के तहत प्राथमिकी (FIR) दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया गाय। सीतापुर के डेप्यूटी चीफ वेटरनरी ऑफिसर ने घायल घोड़ी की चिकित्सीय जांच कर उसे आवश्यक उपचार प्रदान किया। जांच में यह पुष्टि हुई कि घोड़ी गर्भवती है, उसे गंभीर चोटें आई हैं और वह पहले से ही आंख से नेत्रहीन है। माननीय न्यायिक मजिस्ट्रेट, श्री आदित्य रंजन ने इस शोषित घोड़ी को रेस्क्यू कर इसकी अंतरिम हिरासत एनिमल राहत नामक पशु संरक्षण संगठन को सौंपने के आदेश जारी किए हैं, जिस पर तत्काल कार्यवाही करते हुए घोड़ी को जब्त कर उसे बुलंदशहर स्थित एक पशु अभयारण्य में भेज दिया गया। अब घोड़ी को सुरक्षित माहौल में आवश्यक देखभाल और पुनर्वास मिल रहा है ताकि वह अपने बीते हुए दर्दनाक अनुभवों से उबर सके। इस मामले में आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है और वर्तमान में सीतापुर जिला जेल में रखा गया है।
जिस दयालु नागरिक ने इस क्रूरता का वीडियो रिकॉर्ड किया, उसने दावा किया कि घोड़ी का मालिक इससे हर दिन काम कराने के बाद इसे बेरहमी से पीटता था।
PETA इंडिया पशु क्रूरता के अपराधियों की मनोदशा का मूल्यांकन और काउंसलिंग की सिफारिश करता है क्योंकि पशुओं के प्रति शोषण के कृत्य एक गहरी मानसिक अशांति को इंगित करते हैं। शोध से पता चला है कि जो लोग पशुओं के खिलाफ क्रूरता करते हैं, वह अक्सर आगे चलकर अन्य पशुओं व मनुष्यों को भी चोट पहुंचाने का प्रयास करते हैं। फोरेंसिक रिसर्च एंड क्रिमिनोलॉजी इंटरनेशनल जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि “जो लोग पशु क्रूरता में शामिल होते हैं, उनके अन्य अपराध करने की संभावना 3 गुना अधिक होती है, जिसमें हत्या, बलात्कार, डकैती, हमला, उत्पीड़न, धमकी और नशीली दवाओं/मादक द्रव्यों का सेवन शामिल है।”
पशु क्रूरता निवारण अधिनियम की धारा 38 के तहत बनाए गए केस विषयक पशुओं की देखरेख और भरणपोषण नियम, 2017 के नियम 3(बी) के अनुसार, मजिस्ट्रेट को जब्त किए गए पशुओं की अंतरिम देखरेख किसी पशु कल्याण संगठन को सौंपने का अधिकार प्राप्त है। माननीय सुप्रीम कोर्ट, विभिन्न उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों के कई न्यायिक निर्णयों में यह स्पष्ट किया गया है कि जब तक मुकदमे की कार्यवाही पूरी नहीं हो जाती, तब तक जब्त किए गए पशुओं की अंतरिम देखरेख किसी पशु कल्याण संगठन को सौंपी जानी चाहिए, ताकि उन्हें आगे किसी भी तरह के शोषण या दुर्व्यवहार से बचाया जा सके।
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