PETA इंडिया की डायरेक्टर ने बकरी और सुअर के शवों के साथ “हम सब पशु हैं” का संदेश दिया
भारत की राजधानी में पशु अधिकारों के संबंध में प्रभावशाली संदेश देने के लिए PETA इंडिया की डायरेक्टर पूर्वा जोशीपुरा जंतर मंतर पर एक हुक से लटकी नजर आई। वह खाल जैसे दिखने वाले बॉडीसूट में थी, जिस पर “खून” लगा होगा, और उनके पास “सुअर” और “बकरी” के शव भी टंगे थे। इस झकझोर देने वाले प्रदर्शन ने PETA इंडिया की 25 सालों की पशु अधिकारों की लड़ाई को दिखाया और लोगों को यह सोचने के लिए विवश किया कि अगर हम किसी इंसान के शव को इस तरह लटकते नहीं देख सकते, तो पशुओं के साथ ऐसा क्यों स्वीकार करते हैं? PETA इंडिया का संदेश साफ़ है—”हम सभी पशु हैं,” और सिर्फ स्वाद के लिए किसी भी जीव को मारना या काटना गलत है।
सुअर और बकरियां न केवल सामाजिक और बुद्धिमान होते हैं, बल्कि वे भावनात्मक रूप से भी संवेदनशील जीव हैं जिनका हमारे साथ रहने वाले कुत्ते और बिल्लियों की तरह अपना अनूठा व्यक्तित्व होता है। सुअर सपने देख सकते हैं, अपना नाम पहचानते हैं और अपने साथियों की खुशी या तकलीफ को महसूस कर सकते हैं। वहीं, बकरियां जिज्ञासु और चतुर होती हैं। वे पहेलियां सुलझाने और दरवाजे खोलने में माहिर होती हैं और उनकी याददाश्त तेज़ होती है।
इसके बावजूद, आज के मांस, अंडा और डेयरी उद्योगों में पशुओं को बड़ी संख्या में गंदे और तंग पशुपालन केंद्रों में अमानवीय परिस्थितियों में पाला जाता है। बकरियों के होश में रहते हुए उनका गला काट दिया जाता है, सूअरों को दिल में छुरा घोंपकर तड़पा-तड़पाकर मारा जाता है, मुर्गियों को उनके साथियों के सामने ही बेरहमी से काट दिया जाता है, और मछलियों को दम घोंटकर तड़पाया जाता है व उनके जीवित रहते हुए उनका पेट चीरा जाता है। अंडा उद्योग में, मुर्गियों को छोटे और तारों से बने पिंजरों में कैद कर दिया जाता है कि वे एक पंख भी नहीं फैला सकतीं। डेयरी उद्योग में, गायों और भैंसों को जबरन गर्भवती किया जाता है और उनके बछड़ों को जन्म के तुरंत बाद उनसे अलग कर दिया जाता है। नर बछड़े, जो दूध नहीं दे सकते, उन्हें भूखा रखा जाता है, सड़कों पर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है या फिर मांस और चमड़े के लिए बूचड़खानों में भेज दिया जाता है। पॉल्ट्री फार्मों में, नर चूजों को अंडे देने में अयोग्य मानकर क्रूर तरीकों से मारा जाता है—उन्हें जलाकर, पानी में डुबोकर, कुचलकर या जिंदा ही मछलियों को खिला दिया जाता है। इसी तरह, बूचड़खानों तक ले जाने के लिए पशुओं को वाहनों में इतनी निर्दयता से ठूंस दिया जाता है कि परिवहन के दौरान रास्ते में उनकी हड्डियां टूट जाती हैं और कई तो दम घुटने से मर जाते हैं। जो जीवित बचते हैं, उन्हें बूचड़खानों में एक-दूसरे के सामने ही बेरहमी से काट दिया जाता है।
हर साल, एक वीगन व्यक्ति लगभग 200 पशुओं की जान बचाता है, साथ ही अपने स्वास्थ्य को भी लाभ पहुंचाता है। शोध बताते हैं कि वीगन आहार हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के जोखिम को कम करने में मदद करता है। इसके अलावा, मांस और डेयरी उद्योग जल और भूमि संसाधनों के अत्यधिक दोहन के साथ-साथ जल प्रदूषण का भी एक प्रमुख कारण है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु संकट के भयावह प्रभावों को रोकने के लिए वैश्विक स्तर पर वीगन आहार को अपनाना आवश्यक है। यदि आप इस बदलाव के लिए तैयार हैं, तो PETA इंडिया आपकी सहायता के लिए एक मुफ्त वीगन स्टार्टर किट प्रदान करता है।
पूर्वा जोशीपुरा की नवीनतम पुस्तक Survival at Stake: How Our Treatment of Animals Is Key to Human Existence, जिसे हार्पर कॉलिन्स इंडिया ने प्रकाशित किया है, इस बात को उजागर करती है कि पशुओं के प्रति हमारा व्यवहार मानव कल्याण पर गहरा प्रभाव डालता है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि भोजन के लिए पशुओं के उपयोग से भविष्य में महामारी फैलने का खतरा बढ़ सकता है। उनकी पहली पुस्तक For a Moment of Taste: How What You Eat Impacts Animals, the Planet, and Your Health यह स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि हमारी भोजन संबंधी पसंद के व्यापक प्रभाव होते हैं—यह न केवल पशुओं बल्कि संपूर्ण पर्यावरण और हमारे स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है।