‘मल्हार सर्टिफिकेशन’ विवाद के बीच PETA इंडिया के बिलबोर्ड पर बकरी का संदेश – ‘मैं एक जीव हूँ, माँस नहीं”!’
माँस हेतु ‘मल्हार सर्टिफिकेशन’ को लेकर हिन्दू कसाईन्यों के बीच छिड़ी बहस के बीच PETA इंडिया ने पुणे में एक नया जागरूकता अभियान शुरू कर एक प्रभावशाली बिलबोर्ड लगाया गया है, जिसमें एक बकरी की तस्वीर के साथ लिखा है – “मैं एक जीव हूँ, माँस नहीं!” हमारे प्रति नजरिया बदलें, वीगन बनें।” यह अभियान लोगों से यह सोचने का आग्रह करता है कि चाहे हत्या किसी भी धर्म या तरीके से हो, पशु भी दर्द और डर महसूस करते हैं, और मरना नहीं चाहते। इसलिए सबको माँस का त्याग करके क्रूरता-मुक्त वीगन जीवनशैली अपननी चाहिए।
आज के मांस, अंडा और डेयरी उद्योगों में करोड़ों पशुओं को गंदे पशुपालन केंद्रों पर क्रूर परिस्थितियों में पाला जाता है। बकरियों और मुर्गियों का गला पूरी तरह होश में रहते हुए काट दिया जाता है, गायों और भैंसों को उनके बछड़ों से अलग कर दिया जाता है, सूअरों को दिल में छुरा घोंपकर मारा जाता है, और मछलियों को जिंदा ही तड़पा-तड़पा कर उनका पेट चीरा जाता है। नर चूजे आगे चलकर अंडे नहीं दे सकते इसलिए पॉल्ट्री फार्म पर उन्हें बेकार मानकर दर्दनाक मौत दी जाती है, उन्हें अक्सर जला दिया जाता है, पानी में डुबोकर मारा जाता है, कुचल दिया जाता है, जिंदा ही मछलियों को खिला दिया जाता है या अन्य क्रूर तरीकों से मार दिया जाता है। इसी तरह, डेयरी फार्मस पर जो नर बछड़े जन्म लेते हैं वह आगे चलकर दूध नहीं देंगे इसलिए उन्हें जन्म के तुरंत बाद उनकी मांओं से अलग कर दिया जाता है और उन्हें भूखा रखा जाता है, सड़कों पर छोड़ दिया जाता है या फिर मांस और चमड़े के लिए मरने हेतु बूचड़खानों में भेज दिया जाता है। बूचड़खानों तक ले जाने के लिए उन्हें ऐसे ठूस-ठूस कर गाड़ियों में भरा जाता है कि परिवहन के दौरान कई पशु दम घुटने से मर जाते हैं, और जो बचते हैं, उन्हें कसाई बूचड़खानों में एक-दूसरे के सामने ही बेरहमी से काट देते हैं।
PETA इंडिया इंगित करता है कि बकरियां न केवल बुद्धिमान होती हैं, बल्कि बेहद चंचल और जिज्ञासु भी होती हैं। वे अपने समूह के साथ गहरे रिश्ते बनाती हैं, चीजों को समझने और सुलझाने में माहिर होती हैं, यहां तक कि दरवाजे तक खोल सकती हैं। उनकी याददाश्त भी कमाल की होती है, जिससे वे लोगों और जगहों को लंबे समय तक याद रख सकती हैं।