खास खबर : बड़ी फार्मा कंपनी GlaxoSmithKline ने जीवों पर किए जाने वाले जबरन तैराकी परीक्षणों पर रोक लगाई

Posted on by PETA

खुशखबरी! PETA US एवं PETA UK द्वारा बातचीत किए जाने के बाद मल्टीनेशनल फार्म कंपनी GlaxoSmithKline ने अब यह पुष्टि कर दी है कि उसने चूहों एवं अन्य जीवों पर किए जाने वाले जबरन तैराकी परीक्षणों को समाप्त कर दिया है।

PETA US और PETA UK के वैज्ञानिकों ने GlaxoSmithKline कंपनी को साक्ष्य सौंपे थे जो यह साबित करते थे कि जीवों पर किए जाने वाले यह परीक्षण सटीक परिणाम नहीं देते। इसके उपरांत कंपनी ने जीवों पर किए जाने वाले परीक्षण ना करने निर्णय लिया और उनके द्वारा यह दयालु और महत्वपूर्ण कदम उठाने हेतु हम इस दिग्गज फार्मास्युटिकल कंपनी को बधाई देते हैं।

GlaxoSmithKline (GSK) आर्थिक दृष्टिकोण से दुनिया की अग्रणी 10 दवा कंपनियों में से एक है। PETA US और PETA UK के वैज्ञानिकों के साथ बातचीत के बाद जीवों पर परीक्षण किए जाने पर रोक लगानी वाली विश्व की 14 वीं तथा फार्मास्युटिकल की सूची में 12वीं कंपनी कंपनी बन गई है। इस रोक के साथ ही GlaxoSmithKline भी जीवों पर परीक्षण न करने वाली कंपनियों की उस सूची में शामिल हो गयी है जिसमे पहले से ही Pfizer, Johnson & Johnson, Bayer, AbbVie, Roche, and AstraZeneca कंपनियाँ शामिल हैं। मजबूर तैराकी परिक्षण क्या है ?

मानवीय तनाव का स्तर जाँचने हेतु नन्हें जीवों पर किए जाने वाले इस क्रूर परीक्षण की व्यापक रूप से आलोचना होती है। तनाव का स्तर जाँचने हेतु चूहों की विभिन्न प्रजातियों जैसे छुछुंदरों, गिनी पिग्स, हेमस्टर्स और गेरबिल्स पर यह परीक्षण किया जाता है जिस हेतु उन्हें बचकर ना भाग सकने वाले पानी से आधे भरे पात्र (बीकर) में डाल दिया जाता है। आप इस वीडियो में स्वयं देख सकते हैं कि यह नन्हें जीव क्या अनुभव करते हैं –

पानी में डूब जाने के डर से घबराए जीव बीकर से बाहर आने की कोशिश करते हैं, वे उचक-उचक कर बीकर के किनारों पर चढ़ने का प्रयास करते हैं, पानी के अंदर गोता लगाकर निकास ढूँढने की कोशिश करते हैं। स्वयं को बचाने हेतु वह अपने सिर को पानी से ऊपर रखने के प्रयास में वह लगातार अपने पैरों को पैडल की तरह चलाते रहते हैं।

प्रयोगकर्ता इन जीवों के संघर्ष समय के अनुसार तनाव के स्तर की जांच करते हैं जैसे कितने समय में इन जीवों ने हाथ पैर मारना बंद कर दिया व उनका शरीर पानी पर तैरने लगा ? जो जीव कम समय तक तैरते हैं वह अधिक “तनाव” के शिकार होते हैं।

मजबूर तैराकी परिक्षण गलत वैज्ञानिक आधार है

जीवों पर किए जाना वाला यह परीक्षण मात्र उन्हें भयभीत करने के अलावा कुछ भी नहीं है। मानवीय अवसाद एवं तनाव के उपचार हेतु जिन दवाओं की हमें बेहद सख्त आवश्यकता हैं, उनके निर्माण हेतु इन आधारहीन परीक्षणों की वजह से देरी होती है।

2002 और 2018 के बीच GSK के कर्मचारियों ने कम से कम 29 पेपर प्रकाशित किए थे जिसमें जबरन तैराकी परीक्षणों में कम से कम 1,327 चूहों और 447 छछूंदरों को इस्तेमाल किए जाने का वर्णन है। कर्मचारियों ने यह पता लगाने की भी कोशिश कि, कुछ यौगिकों (कंपाउन्ड्स) या आनुवंशिकों के फेरबदल से जीवों के “तनाव स्तर” में अंतर आया है या नहीं।हालांकि, मजबूर तैराकी परिक्षण के दौरान जीवों के व्यवहार और उनकी मनोदशा को इंसानों के तनाव से जोड़ कर देखना या फिर मनुष्य के तनाव के इलाज हेतु  एक यौगिक (कंपाउंड) की उपयोगिता जाँचने के लिए जीवों पर जबरन तैराकी परीक्षण कराने का हमेशा से ही विरोध किया गया है।

कुछ वैज्ञानिकों ने इन परीक्षणों की आलोचना भी की है उनका कहना है कि, तैरना तनाव या निराशा का संकेत नहीं है बल्कि अपनी ऊर्जा का संरक्षण करने, एक नए वातावरण के साथ ताल मेल बिठाने और सीखने का एक सकारात्मक संकेत है।अंततः, इस परीक्षण का निष्कर्ष बेबुनियाद है और यह स्पष्ट नहीं करता कि इसके परिणामों के आधार पर बनाई गयी दवा इंसानों के तनाव के इलाज के लिए काम करेगी या नहीं।

*****

Eli Lilly से अनुरोध करें की वो भी इस तरह के परीक्षणों पर प्रतिबंध लगाए।

दिग्गज फार्मास्युटिकल कंपनी Eli Lilly ने इन तर्कहीन परीक्षणों को बंद करने से नकार दिया है। आप इस कंपनी को बताएं की आप इन नन्हें जीवों के विषय में क्या सोचते हैं- कंपनी को अपना संदेश अभी भेजें।

कृपया इन क्रूर तैराकी परीक्षणों पर रोक लगाएँ