शरीर को पृथ्वी के रंग से रंगकर PETA इंडिया के स्वयं सेवकों ने G20 वर्किंग ग्रुप से वीगन जीवनशैली अपनाकर जलवायु आपदा से लड़ने की अपील की

Posted on by Sudhakarrao Karnal

PETA इंडिया के एक महिला और एक पुरुष सदस्य ने पृथ्वी जैस दिखने के लिए शरीर को नीले और हरे रंग में रंगकर जी20 पर्यावरण और जलवायु स्थिरता कार्य समूह के प्रतिभागियों से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और अन्य पर्यावरणीय संकटों को दूर करने के लिए जनता से आग्रह करने के लिए बेंगलुरु की सड़कों पर प्रदर्शन किया। इन दोनों ने, जिन पर “जी20: गो वीगन फॉर द सेक ऑफ अर्थ ” लिखा हुआ था, स्लोगन लिए आते जाते राहगीरों को सूचित किया कि मांस, अंडा और डेयरी उत्पादन से पृथ्वी ग्रह को नुकसान पहुंचता है।

मांस, अंडा, और डेयरी उत्पादन प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है और इसके परिणामस्वरूप महासागर मृत क्षेत्र में तब्दील हो रहे हैं, जमीन पर से रहने वाले स्थानों का विनाश हो रहा है जिसके परिणामस्वरूप, प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं। मांस हेतु होने वाले पशुपालन पर दुनिया के एक तिहाई मीठा पानी खर्च होता है और कुछ अनुमानों के अनुसार, दुनियाभर की सभी परिवहन प्रणालियों की तुलना में अधिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन भी इसी उद्योग के चलते होता है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया कि वीगन बनने वाला हर व्यक्ति अपने कार्बन फुटप्रिंट को 73% तक कम कर देता है, जिससे यह ग्रह पर किसी व्यक्ति के प्रभाव को कम करने का सबसे बड़ा तरीका है।

वीगन होने से मानव स्वास्थ्य को भी सीधा लाभ होता है। माना जाता है कि COVID-19 ने सबसे पहले जीवित जानवरों की मांस मंडियों के माध्यम से मनुष्यों को संक्रमित किया था। इसी तरह, सार्स, स्वाइन फ्लू, बर्ड फ्लू और अन्य बीमारियां भी भोजन के लिए जानवरों को कैद करने और मारने से ही मनुष्यों में आई थी। और एकेडमी ऑफ न्यूट्रिशन एंड डायटेटिक्स के अनुसार, वीगन लोगों को हृदय रोग, टाइप -2 मधुमेह, उच्च रक्तचाप, कुछ कैंसर और मोटापे सहित खतरनाक स्वास्थ्य स्थितियों का खतरा कम होता है।

वीगन भोजन से पशुओं को भी मदद मिलती है। जैसा कि PETA इंडिया ने अपने वीडियो “ग्लास वाल” के द्वारा खुलासा किया है, कि अंडे के लिए इस्तेमाल होने वाली मुर्गियां इतने छोटे व तंग पिंजरों में कैद करके रखा जाता हैं कि वे अपने पंख भी नहीं फैला सकती। गायों और भैंसों को इतनी बड़ी संख्या में वाहनों में ठूस ठूस कर भरा जाता है कि कत्लखाने तक ले जाने से पहले उनकी हड्डियाँ अक्सर टूट जाती हैं, और सूअरों को मारने के लिए सीधे उनके दिल में छुरा भोंक दिया जाता है। मछलियों को समुद्र से बाहर निकाल कर नावों के डेक पर फेंक दिया जाता है जहां बिना पानी के वह तड़फती रहती हैं और उनका दम घुट जाता है या जीवित रहते हुए उनके शरीर के टुकड़े टुकड़े कर दिये जाते हैं। नर चूजे आगे चलकर अंडे नहीं देंगे इसलिए अंडा उद्योग में उन्हें बेकार मानकर जिंदा चूजों को जमीन में दफना दिया जाता है, जला दिया जाता है, पीसकर या कुचलकर मछलियों का चारा बना दिया जाता है। उसी तरह से डेयरी उद्योग में नर बछड़े दूध नहीं देंगे तो उन्हे बेकार समझकर आमतौर पर छोड़ दिया जाता है व भूखा प्यासा मरने के लिए त्याग दिया जाता है।

क्या आपको पृथ्वी की परवाह है ? तो फिर कार्यवाही करें :

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