PETA इंडिया की अपील के बाद, अंडमान एंड निकोबार द्वीपसमूह ने पशुओं के हित में दो अहम फैसले लिए

Posted on by Erika Goyal

PETA इंडिया की अपील के परिणामस्वरूप, अंडमान एंड निकोबार के पशुपालन और पशु चिकित्सकीय सेवा निदेशालय ने सर्कुलर जारी करके सुअर पालन हेतु माता सूअरों को कैद में रखने वाले पिंजरों के निर्माण, बिक्री एवं उपयोग को प्रतिबंधित करने के साथ-साथ ग्लू ट्रेप जैसे क्रूर उपकरणों पर भी रोक लगा दी है। इस सर्कुलर में, सभी नागरिकों से पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के विभिन्न प्रावधानों के संबंध में जानकारी प्राप्त करने और जानवरों की पीड़ा को कम करने में अपना सक्रिय योगदान देने का भी आग्रह किया गया है।

PETA इंडिया की अपील के बाद, अंडमान एवं निकोबार पशुपालन और पशु चिकित्सकीय सेवा निदेशालय ने सभी क्षेत्रीय अधिकारियों और वरिष्ठ पशु चिकित्सकीय अधिकारियों को घोड़ों को नियंत्रित करने के लिए इस्तेमाल होने वाली काँटेदार लगामों की बिक्री, निर्माण और व्यापार पर रोक लगाने का निर्देश दिया है। भेजे गए सर्कुलर में ‘पशु क्रूरता निवारण’ की जिला सोसायटी और पुलिस अधीक्षक को भी शामिल किया गया हैं। घोड़ों को नियंत्रित करने हेतु प्रयोग होने वाली काँटेदार लगामें घोड़ों के मुँह में गहराई तक धंस जाती हैं और उनके होंठ और जीभ काट देती हैं, जिससे पशुओं को अत्यधिक दर्द और आजीवन क्षति का सामना करना पड़ता है।

जेस्टेशन क्रेट (उर्फ गर्भवती सुअर को जकड़ने का तंग पिंजरा) जो केवल सुअर की माप के होते हैं, इनका फर्श पक्का या कंक्रीट का होता है, जिसमे जानवरों को करवट बदलने या खड़े होने में अत्यधिक कष्ट होता है। जेस्टेशन क्रेट का इस्तेमाल गर्भवती सूअरों को एक जगह रोके रखने के लिए किया जाता है, बच्चों को जन्म देने के लिए फेरोइंग क्रेट (जन्म देने का तंग पिंजरा) में भेज दिया जाता है और उन्हें वहाँ तब तक रखा जाता है जब तक कि उनके नवजात बच्चों को उनसे अलग न कर दिया जाये। ये फेरोइंग क्रेट मूल रूप से जेस्टेशन क्रेट के समान होते हैं, बस इनमे सूअर के नवजात बच्चों के लिए साइड में छोटे खांचे बने रहते हैं।

जेस्टेशन और फेरोइंग क्रेट इतने छोटे व सँकरे होते हैं कि वे मादा सूअरों को उन सभी चीज़ों से वंचित कर देते हैं जो उनके लिए प्राकृतिक और महत्वपूर्ण हैं, जैसे कि चारा खाना, अपने बच्चों के लिए घोंसला बनाना, अन्य सूअरों के साथ समूह में रहना, उनके शरीर के तापमान को नियंत्रित करने के लिए कीचड़ में लोट पोट होना। क्रेट मे बंद सूअरों को जबरन अपने ही मल-मूत्र में सने रहने के लिए मजबूर किया जाता है। अत्यधिक क्रूरता सह रहे सुअर तनाव और हताशा का शिकार होते हैं जिसके परिणामस्वरूप असामान्य व्यवहार करते हैं जैसे कि बाड़े की सलाखों को लगातार काटने का प्रयास या हवा को लगातार चबाने की कोशिश करते रहना ।

ग्लू ट्रेप आमतौर पर प्लास्टिक ट्रे या कार्डबोर्ड की शीट से बने होते हैं जिनपर ग्लू फैला दिया जाता है अक्सर इस जानलेवा उपकरण में पक्षी, गिलहरी, सरीसृप और मेंढक जैसे गैर-लक्षित पशु भी चिपक जाते हैं जिससे उनकी दर्दनाक मृत्यु हो जाती है। इस प्रकार के ट्रेप में फंसे चूहे या अन्य जानवर भूख-प्यास या अत्यंत पीड़ा के चलते अपनी जान गवा सकते हैं। कुछ जानवर इस ग्लू में अपनी नाक या मुंह फंस जाने के कारण दम घुटने से मर जाते हैं या अन्य आज़ादी की छटपटाहट में अपने ही अंगों को स्वयं कुतरने लगते हैं जिसके चलते खून की कमी के कारण उनकी मृत्यु हो जाती है। इतने पर भी जो जानवर जीवित पाये जाते हैं उन्हें ट्रेप सहित कूड़ेदान में फेंक दिया जाता है या इन्हें कुचलने और डूबने जैसी अधिक बर्बर मौत का सामना करना पड़ता है।

चूहों व छुछुंदरों की जनसंख्या को नियंत्रित करने का एकमात्र दीर्घकालिक तरीका किसी क्षेत्र को उनके लिए अनाकर्षक या दुर्गम बनाना है। काउंटर की सतहों, फर्श और अलमारियाँ को साफ रखकर उनके भोजन के स्रोतों को समाप्त करना और भोजन को च्यू-प्रूफ कंटेनरों में स्टोर करना भी एक अच्छा उपाय है। इन जानवरों को बाहर निकालने के लिए कूड़ेदानों को सील करें और अमोनिया में डूबाकर रुई या कपड़े का एक गोला रखे क्योंकि इन्हें गंध से सख्त  नफरत होती हैं। जानवरों को बाहर निकलने हेतु कुछ दिन देने के बाद, प्रवेश बिंदुओं को फोम सीलेंट, स्टील वूल, हार्डवेयर क्लॉथ या मेटल फ्लैशिंग का उपयोग करके सील करें जिससे यह वापस अंदर न आ सके। किसी भी नन्हें जीव को घर से निकालने हेतु मानवीय पिंजरे का उपयोग किया जाना चाहिए और उन्हें ऐसी जगह पर छोड़ना चाहिए जहाँ उन्हें भोजन-पानी और शेल्टर ढूंढने में परेशानी न हो जिससे वह अपना जीवन यापन कर सके।

PETA इंडिया की अपील के बाद, अंडमान एवं निकोबार पशुपालन और पशु चिकित्सकीय सेवा निदेशालय ने सभी क्षेत्रीय अधिकारियों और वरिष्ठ पशु चिकित्सकीय अधिकारियों को घोड़ों को नियंत्रित करने के लिए इस्तेमाल होने वाली काँटेदार लगामों की बिक्री, निर्माण और व्यापार पर रोक लगाने का निर्देश दिया है। भेजे गए सर्कुलर में ‘पशु क्रूरता निवारण’ की जिला सोसायटी और पुलिस अधीक्षक को भी शामिल किया गया हैं। घोड़ों को नियंत्रित करने हेतु प्रयोग होने वाली काँटेदार लगामें घोड़ों के मुँह में गहराई तक धंस जाती हैं और उनके होंठ और जीभ काट देती हैं, जिससे पशुओं को अत्यधिक दर्द और आजीवन क्षति का सामना करना पड़ता है।

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