साक्ष्य: तमिलनाडू कुत्ता प्रजनन केंद्र (डॉग-ब्रीडिंग यूनिट) में बंदी कुत्ते पीड़ा सह रहे हैं।

Posted on by Surjeet Singh

तामिलनाडू पशु पालन, डेयरी एवं मतस्य विभाग के चेन्नई में सेडापेस्ट स्थित कुत्ता प्रजनन इकाई (डॉग ब्रीडिंग यूनिट-डीबीयू) पर कुत्तों को व्यायाम एवं सामाजिक गतिविधियों से वंचित कर उन्हे बंदी बनाकर रखने व उन पर क्रूरता किए जाने के खिलाफ सबूत पेश करते हुए PETA इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा प्रस्तुत किया। एक सरकारी केंद्र होने के बावजूद, जनता को कुत्ते बेचे जाने के लिए यह केंद्र  कुत्तो का प्रजनन करता है।

PETA इंडिया की जांच रिपोर्ट में यह सामने आया है की कि मद्रास उच्च न्यायालय के 2016 के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका के बाद, डीबीयू में कुत्तों को सामान्य देखभाल न प्रदान करने तथा भारतीय पशु कल्याण बोर्ड द्वारा निर्धारित नियमों व शर्तों को पूरा न करने के लिए इन डीबीयू को बंद करने के निर्देश दिये गए थे। भारतीय पशु कल्याण बोर्ड जो कि पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन एक संवैधानिक इकाई है व प्रजननकों का पंजीकरण करती है। राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में गलत फोटोग्राफ दिखाकर यह बताने का प्रयास किया कि इन केन्द्रों में कुत्तों की देखभाल सुचारु रूप से की जा रही है।

PETA इंडिया के जांचकर्ता ने दिनांक 12 से 14 मार्च 2018 के बीच इस प्रजनन केंद्र पर जाकर यह रिकॉर्ड किया कि केंद्र के अंदर किसी भी वयस्क अथवा शिशु कुत्ते को खेलने, व्यायाम करने या फिर सामाजिक गतिविधियों में शामिल होने की इजाजत नहीं दी गयी है। हमारी जांच में पाये गए सबूत और डीबीयू द्वारा सुप्रीम कोर्ट में हलफनामे के माध्यम से दैनिक गतिविधि कार्यक्रम में दी गयी जानकारी में विरोधाभास है। इस गतिविधि चार्ट में डीबीयू ने बताया है कि केंद्र में रह रहे कुत्तों को दिन में दो बार दो-दो घंटो के लिए व्यायाम तथा सामाजिक गतिविधियों हेतु ले जाया जाता है, एक बार सुबह 7:15 से 9:15 के बीच तथा दूसरी बार दोपहर 3 बजे से साएं 5 बजे तक। कुत्तों के घूमने फिरने व सामाजिक क्रियाकलापों वाला मैदान बेहद बुरी स्थिति में था, फोटो में दिखायी दे रहा है की मुख्य द्वार तथा उस द्वार के दोनों तरफ के पौधों के कंटेनर में शराब की खाली बोतलें और ढक्कन पड़े थे, इस्तेमाल हो चुके प्लास्टिक के ग्लास, नमकीन बिस्कुट के खाली पैकेट तथा जमा सूखी पत्तियाँ यह साबित करती हैं की वहाँ संभवता अनौपचारिक गतिविधियों को छोड़कर इन ग्राउंड को कई महीनों से प्रयोग नहीं किया गया है।

2017 में तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दावा किया कि डीबीयू के कर्मचारी इस केंद्र में स्थित 3000 वर्ग फीट क्षेत्र में व्यक्तिगत रूप से प्रत्येक कुत्ते को व्यायाम कराते है व घुमाते फिराते हैं, उन्होने साक्ष्य के तौर पर कुछ फोटोग्राफ भी प्रस्तुत किए, PETA इंडिया ने पाया की वो सब फोटोग्राफ फ़ोटोशाप किए गए थे। इन फोटो की समीक्षा करने पर साफ पता चलता है इनके साथ छेड़छाड़ कर उनमे बहुत सी स्थितियों को बदलने को कोशिश की गयी थी जैसे दिखाई गयी फोटो में बाड़े का कुछ भाग गायब था, एक खंबा जो बाड़े को सहारा दे रहा है, कुत्ते के गले की रस्सी का मध्य भाग जो देखभालकर्ता के साथ चल रहे कुत्ते के शरीर के उपर दिखाया गया है तथा चमकीले हरे रंग की घास जिसे गलती से नीले रंग के खंबे के उपर दिखाया गया, यह साबित करता है की इन फोटो के साथ छेड़छाड़ कर उनमें वास्तविक तथ्यों को हटाकर गलत तथ्यों को दिखाने की कोशिश की गयी थी। हमारी जांच यह इंगित करती है की राज्य सरकार द्वारा इन गलत तस्वीरों को पेश कर डीबीयू के सच को छुपाकर अदालत को गुमराह करने की कोशिश की गयी।

डीबीयू में दस्तावेज़ किए गए कुत्तों को इस तरह से दिनभर बंदी बनाकर रखना प्रीवेंशन ऑफ क्रूएलिटी टू एनिमल्स (कुत्तों की ब्रीडिंग एवं मार्केटिंग) नियमावली 2017 के नियम 24 तथा प्रीवेंशन ऑफ क्रूएलिटी टू एनिमल्स एक्ट 1960 की धारा 11(G) का स्पष्ट उलंघन है।

भारतीय पशु कल्याण विभाग द्वारा 2013 में अधिकृत किए गए निरीक्षण में पता लगने पर कि डीबीयू में कुत्तों को उनके बाड़ों तक ही सीमित रखा जाता है उन्हें कहीं घुमाया फिराया नहीं जाता न ही सामाजिक गतिविधियों में शामिल किया जाता है, इस खुलासे के बाद PETA इंडिया ने डीबीयू के खिलाफ अदालत में मुकदमा दायर किया था। नवम्बर 2014 में मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश के उपरांत भारतीय पशु कल्याण विभाग द्वारा दूसरी बार निरीक्षण कर खुलासा किया कि डीबीयू में कुत्तों को अभी भी लगातार बांध कर रखा जा रहा है, बहुत से कुत्ते छोटे कीड़ों के काटने, तवचा रोग व खाज खुजली से पीड़ित थे। दिसंबर 2016 में उच्च न्यायालय द्वारा अगले दो माह के अंदर डीबीयू को स्थायी रूप से बंद किए जाने का आदेश दिया गया। जनवरी 2017 में राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी व फरवरी 2017 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा उच्च न्यायालय के फैंसले पर रोक लगा दी। मार्च 2017 में राज्य ने डीबीयू के क्रियाकलापों पर 13 तस्वीरों के साथ एक 18 पन्नों का हलफनामा दाखिल करते हुए दावा किया कि डीबीयू की कार्यप्रणाली भारतीय पशु कल्याण विभाग के नियमानुसार है। एक ऐसा दावा जिसे अब PETA इंडिया झूठा साबित कर रहा है।

आप कुत्तों की मदद कर सकते हैं। आप संकल्प लीजिये कि जब भी किसी कुत्ते को पालतू बनाना होगा तो आप सड़क पर बेघर घूमने वाले कुत्ते या फिर किसी पशु ग्रह से लेकर अपनाएँगे, कभी भी ब्रीडर से नहीं खरीदेंगे।

अपनाने का संकल्प लें