भीख मांगने में इस्तेमाल हो रहे बंदरों का बचाव

Posted on by Surjeet Singh

2 बंदरों का शोषण रोकने हेतु PETA इंडिया, मुम्बई पुलिस एवं महाराष्ट्र वन विभाग का सयुंक्त प्रयास।

एक नागरिक से मिली सूचना पर कार्यवाही करते हुए PETA इंडिया, महाराष्ट्र वन विभाग के अधिकारी तथा मुंबई पुलिस ने दादर सेंट्रल रेलवे स्टेशन मुम्बई पर जबरन भीख मांगने पर लगाए गए 2 बंदरो का बचाव करते हुए उन्हे अपने कब्जे में ले लिया। वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 की धारा 2 के तहत संरक्षित “रिसूस माकक्यूस” नामक प्रजाति के दोनों बंदर मुम्बई रेंज वन कार्यालय में पुनर्वास हेतु भेज दिये गए थे व उनके गैरकानूनी संरक्षकों को भी गिरफ्तार किया गया था।

 

आमतौर पर बंदरों को बंदी बनाकर उन्हे भोजन का लालच तथा पिटाई का डर दिखाकर उन्हे नृत्य हेतु प्रशिक्षित किया जाता है। मदारी प्रायः उनके दाँतो को पहले ही निकाल देता है ताकि वह अपना बचाव न कर सकें। “द प्रीवेंशन ऑफ क्रूएलिटी टू एनिमल्स, एक्ट 1960” के तहत केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 1998 में एक सूचना जारी की थी जिसमे कहा गया था की बंदरों व जंगली जानवरों की अन्य कई प्रजातियों को प्रदर्शन करने वाले जानवरों के रूप में इस्तेमाल या प्रशिक्षित नहीं किया जाना चाहिए। यह अधिसूचना एक उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समिति की सिफ़ारिशों के आधार पर की गयी थी जिसमे निष्कर्ष निकाला गया था कि जंगली जानवरों को बंदी बनाने में ही क्रूरता निहित होती है। इन बंदी जानवरों को जब प्रशिक्षित कर उन्हे प्रदर्शन करने हेतु मजबूर किया जाता है तो जानवरों को पर्याप्त दर्द व पीड़ा का अनुभव होता है। वन्यजीव प्रकर्तिक स्थानो में निवास करते हैं इसलिए उन्हे पालतू जानवर की तरह कैद करना व अपने लाभ के लिए उनका शोषण करना दोनों ही नैतिक रूप से गलत है व वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 के तहत 10,000 रुपये जुर्माने का दंडनीय अपराध भी है।

जानवरों के प्रति अवैध क्रूरता की रिपोर्ट करने के लिए कृपया PETA इंडिया के आपातकालीन नंबर 98201 22602 पर काल करें।

आप जानवरों की मदद करने हेतु, उनके खिलाफ होने वाले अपराधों के लिए मजबूत दंड व्यवस्था की मांग का अनुरोध भी कर सकते हैं।

कृपया जानवरों की मदद करें