PETA इंडिया “पशु क्रूरता निवारण अधिनियम” के संशोधन में प्रजातिवाद विरोधी थीम शामिल किए जाने का अनुरोध करता है

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23 April 2021

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प्रस्तावित संशोधन में पक्षियों को पिंजरों में कैद करने पर रोक लगाने, सर्कस में जानवरों के इस्तेमाल को प्रतिबंधित करने तथा जानवरों को वस्तुओं की बजाए जीवित प्राणियों की तरह पहचान दिया जाना शामिल है।

दिल्ली – आज, पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) इंडिया ने “पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960” के संशोधन में विचार करने हेतु अपने प्रस्तावों को ‘भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड’ (AWBI) को सौंप दिया। इन प्रस्तावों में PETA इंडिया ने जानवरों को सामान या वस्तु की जगह जीवित प्राणियों के रूप में पहचान दिये जाने की दिशा में पहले कदम के रूप में उन्हें ‘वह’ (It) की जगह स्त्री या पुरुष संकेतक सर्वनामों के साथ संबोधित किए जाने की सिफ़ारिश की है। PETA इंडिया का उद्देश्य है कि इस कानून के वर्तमान स्वरूप को देखते हुए इसमे ऐसे संशोधन किए जाएँ कि जानवरों की विभिन्न नस्लों के साथ होने वाले प्रजातिवाद (जानवरों का शोषण) को कम से कम किया जा सके।

PETA इंडिया द्वारा की गयी अन्य सिफ़ारिशों में जानवरों के प्रति क्रूरता की सज़ा एवं जुर्माने को बढ़ाकर 25 हज़ार रुपये से लेकर एक लाख रुपये तक के जुर्माने व पाँच वर्ष तक के कारावास की सज़ा का प्रावधान करने का सुझाव दिया गया है। PETA समूह यह भी सिफ़ारिश करता है कि संज्ञेय अपराध का दोषी पाये जाने वालों या दूसरी बार अपराध का दोषी पाये जाने वालों से जानवर को जब्त कर लिया जाएँ व उनके द्वारा दुबारा जानवर रखने या जानवरों के साथ काम करने पर पाबंधी लगाई जाए। इसके अलावा आज़ाद परिंदों को पिंजरों में कैद किए जाने पर प्रतिबंद, जानवरों को सर्कसों में इस्तेमाल किए जाने पर रोक, छात्रों के शिक्षण एवं प्रशिक्षण के दौरान जानवरों के अंग-विच्छेदन को निरस्त करने, कैदी हाथियों को प्रदर्शनों हेतु इस्तेमाल करने पर रोक लगाने, जानवरों की बलि/कुर्बानी पर रोक लगाने की मांग की है। अन्य सुधारों के साथ साथ जानवरों को अनावश्यक रूप से मिलने वाली यातनाओं एवं पीड़ाओं को रोकने तथा जानवरों के साथ होने वाले यौन शोषण की घटनाओं को पशु क्रूरता की सूची में शामिल किए जाने की सिफ़ारिशे भी शामिल हैं।

PETA इंडिया के CEO डॉ. मणिलाल वालियते कहते हैं- “60 साल पुराने कानून में पहली बार संशोधन हेतु विचार किया जा रहा है तो इसमे नए जमाने की सोच भी झलकनी चाहिए। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि इस कानून को आज के समाज की उस नयी सोच के अनुसार अपडेट करने का प्रयास किया जा रहा है जिसमे यह माना जाता है कि जानवर भी हमारी तरह सोचने एवं भावनाओं को महसूस करने वाले प्राणी है जो कभी भी पिंजरों या जंजीरों में कैद होना, दुर्व्यवहार सहना या फिर मौत का शिकार होना नहीं चाहते।

दिनांक 15 अप्रेल को AWBI ने समस्त स्टेकहोल्डेर्स के साथ ऑनलाइन बैठक का आयोजन कर जानवरों के प्रति क्रूरता की बढ़ती घटनाओं और उनके शोषण के खिलाफ वर्तमान में प्रस्तावित दंड प्रावधानों को बढ़ाए जाने हेतु ‘पशु क्रूरता निवारण अधिनियम’ में संशोधन के बारे में सुझाव मांगे थे।  वर्तमान में पशुओं के प्रति अपराध का प्रथम दोषी पाये जाने पर महज़ 50 रुपये दंड का प्रावधान है। कई संसद सदस्यों ने इस पुराने कानून में संशोधन के लिए अनुरोध किया है और संसद में दो निजी बिल भी पेश किए जा चुके हैं तथा माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस कानून को संशोधित किए जाने की आवश्यकता महसूस की है। AWBI द्वारा दिये गए प्रस्तुतीकरण से ऐसा स्पष्ट होता है कि माननीय सर्वोच न्यायालय के निर्देशानुसार सरकार इस कानून में पशु क्रूरता के दंड प्रावधानों, अपराधों की पहचान एवं राज्य जीव जन्तु कल्याण बोर्डों की स्थापना करने जैसे मुख्य विचारों पर गौर कर रहा है। AWBI ने सभी स्टेकहोल्डर्स से दिनांक 25 अप्रेल तक अपनी सिफ़ारिशे, यदि कोई हों तो जमा करने का अनुरोध किया है।

PETA इंडिया प्रजातिवाद का विरोध करता है क्यूंकी यह मनुष्य की खुद को सर्वशक्तिमान मानने वाली सोच है। अधिक जानकारी के लिए आप हमारी वेबसाइट PETAIndia.com पर विजिट करें या फिर हमें TwitterFacebook, अथवा Instagram पर भी फॉलो कर सकते हैं।

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