COVID-19 अपील : बूचड़खानों में काम करने वाले कर्मचारियों की जब तक  जांच न हो जाए, सभी बूचड़खानों को बंद रखा जाए।

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8 June 2020

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PETA इंडिया सरकार से अनुरोध करता है कि प्रतिदिन जांच के माध्यम से इन कर्मचारियों, उनके परिवारों एवं समुदाय की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।

दिल्ली – जैसे ही अब COVID-19 में कुछ ढील दी जा रही है, पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) इंडिया ने परिवार एवं स्वास्थ कल्याण मंत्रालय को पत्र भेजकर समस्त लाइसेन्स प्राप्त बूचडखानों को कम से कम तब तक बंद रखने का अनुरोध किया है जब तक प्रतिदिन COVID-19 जांच कार्यक्रम शुरू नहीं हो जाता। PETA समूह ने भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण को भी एक पत्र भेजकर अनुरोध किया है की बूचड़खाने में श्रमिकों का प्रतिदिन COVID -19 जांच होना बूचड़खाना पंजीकरण की एक अनिवार्य शर्त होनी  चाहिए।

PETA इंडिया इस बात का संज्ञान लेता है कि बूचड़खानों के अंदर काम करने वाले लोगों के लिए बताई गयी सामाजिक दूरी बनाए रखना संभव नहीं है इसलिए विश्वभर के बूचड़खानों में COVID-19 संक्रमण के मरीज बढ़ रहे हैं। हालियाँ आंकड़े बताते हैं कि अमेरिका के 15,000 बूचड़खानों एवं माँस प्रोसेसिंग प्लांट के कर्मचारी COVID-19 से संक्रमित है व उनमे से 60 श्रमिकों की मौत भी हो चुकी है। हाल ही में यूरोप के 1,000 बूचड़खानों के कर्मचारी COVID -19 संक्रमण से प्रभावित पाये गए हैं। जैसे जैसे इन केन्द्रों पर संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है, इन कर्मचारियों से यह संक्रमण इनके परिवारों एवं समुदायों तक पहुँच रहा है। PETA इंडिया ने गैर लाइसेन्स प्राप्त बूचड़खानों को भी हमेशा के लिए बंद करवाने का अनुरोध किया है।

PETA समूह ने इंगित किया है कि भारत के बूचड़खानों में मूलभूत सुविधाएं तक नहीं होती जैसे पर्याप्त पानी, साफ सफाई, व्यवस्थित नालियां तथा वेस्ट डिस्पोसल के प्रबंधन की सुविधा का अभाव। इनमे काम करने वाले कर्मचारी बिना दस्ताने पहने एवं सावधानी बरते पूरा दिन पशुओं के खून, मलमूत्र व उनके शरीर से निकलने वाले गंदे तरल पदार्थों के बीच रहते हैं।

PETA इंडिया की वीगन आऊटरीच कोर्डीनेटर डॉ. किरण आहूजा कहती हैं – “जैसा कि अन्य देशों में सामने आया है, अगर बूचड़खानों के माध्यम से COVID-19 आग की तरह फ़ेल रहा है तो फिर यह बूचड़खानों के कर्मचारियों के द्वारा तेजी से उनके परिवारों एवं समुदायों तक पहुंचेगा। किसी को भी इस तरह के गंदे बूचड़खानों में रहने की जरूरत ही नहीं है ना कर्मचारियों को और ना ही उन डरे सहमे जानवरों को जिनका मांस के लिए बड़ी बेदर्दी से गला काट दिया जाता है”।

वैज्ञानिकों का मानना है कि COVID-19 का संक्रमण चीन के वुहान की पशु मंडियों से इन्सानों में हस्तांतरित हुआ है। इससे पहले मांस के लिए इस्तेमाल होने वाले पशुओं से SARS, स्वाइन फ़्लू, बर्ड फ़्लू नामक संक्रमण भी तबाही फैला चुके हैं। इसलिए, बूचड़खानों में काम करने वाले श्रमिकों को यह खतरा है कि वो पशुओं से पनपने वाले वाले जुनोटिक रोग जैसे ब्रूसेल्लोसिस, लेप्टोसपिरोसिस एवं क्यू बुखार का शिकार हो सकते हैं ।

PETA समूह इस बात का भी संज्ञान लेता है कि इस संक्रामक रोगों से निपटने के लिए जो भी व्यक्ति वीगन जीवनशैली अपनाता है उसमे मधुमेह, कैंसर तथा हृदय रोग की संभावना कम होती है व साथ ही साथ वह संवेदनशील पशुओं को गंभीर पीड़ा एवं मौत से बचाने में भी मदद करता है।

PETA इंडिया, जिसका एक सिद्धांत यह भी है कि जानवर हमारा भोजन बनने के लिए नहीं है’, प्रजातिवाद का विरोध करता है क्यूंकि यह एक ऐसी विचारधारा है जिसमे मनुष्य स्वयं को विश्व की अन्य प्रजातियों से ऊपर समझ कर अपने फ़ायदों के लिए उनका शोषण करता है। अधिक जानकारी के लिए कृपया हमारी वेबसाईट PETAIndia.com पर जाएँ।

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