PETA इंडिया के सुझाव के बाद ‘भारतीय मानक ब्यूरो’ ने जानलेवा “गिनी पिग परीक्षणों” को समाप्त किया

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2 February 2021

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परीक्षण के बेहतर परिणाम पाने एवं जानवरों की जान बचाने हेतु संशोधित मानक में “पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन” परीक्षणों को जोड़ा गया जो की DNA के छोटे खंडों द्वारा जांच करने की तकनीक है।

नई दिल्ली- पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) इंडिया द्वारा दिए गए सुझावों पर गौर करते हुए ”   भारतीय मानक ब्यूरो’ की पशुपालन, चारा एवं उपकरण समिति जो पशुपालन, उनके चारे तथा उनके उपकरण के मानक स्थापित करने हेतु राष्ट्रीय समिति है, ने रोगजनक तत्वों की पहचान करने हेतु “गिनी पिग” पर होने वाले क्रूर जानलेवा परीक्षणों को बदल दिया है। इस प्रकार के चारे का सेवन जानवरों के लिए उपयुक्त नहीं होता। “उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं जन वितरण प्रणाली मंत्रालय” के अंतर्गत आने वाले “खाद्य और कृषि प्रभाग परिषद” ने “पशु आहार और भरण सामग्री” हेतु मानक परीक्षण तरीकों के भाग 3 में “माइक्रोबायोलॉजिकल तरीके” को अपनाने की मंजूरी प्रदान की है।

इस नए संशोधित मानक के प्रलेख में कहा गया हैं कि, “मानक में शामिल किए गए यह नए तरीके “पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन” पर आधारित हैं और यह सटीक एवं संवेदनशील होने के साथ-साथ प्रयोगशालाओं मेंगिनी पिग परीक्षणों” की आवश्यकता को भी समाप्त करते हैं।”

PETA इंडिया की साइंस पॉलिसी एडवाइजर डॉ. दिप्ति कपूर ने कहा- “सरकार के इस कदम से अनगिनत संवेदनशील जीवों को क्रूर एवं जानलेवा परीक्षणों से निजात  मिल सकेगी।PETA इंडिया इस प्रगतिशील और संवेदनशील बदलाव हेतु राष्ट्रीय मानक निकाय का आभार व्यक्त करता हैं और हम भविष्य में भी इनके साथ मिलकर देश में सभी तरह के जानवरों पर होने परीक्षणों को कई बेहतर गैर-पशु परीक्षण विधियों  से बदलने हेतु प्रयासरत रहेंगे।“

PETA इंडिया इस सिद्धांत में विश्वास रखता है ― “जानवर किसी भी तरह से हमारे परीक्षण करने के लिए नही हैं”, प्रजातिवाद का विरोध करता है। प्रजातिवाद एक ऐसी विचारधारा है जिसमे इंसान स्वयं को इस दुनिया में सर्वोपरि मानकर अपने फायदे के लिए अन्य प्रजातियों का शोषण करना अपना अधिकार समझता है। यह समझना ज़रूरी है कि “निर्णायक परीक्षणों” हेतु जानवरों के अंदर जिन सैम्पल पदार्थों को इंजेक्ट किया जाता हैं अगर उनमें बेसीलस एन्थ्रेसिस  नामक जीवाणु या इसके बीजाणु प्रस्तुत हैं तो इनसे “एंथ्रेक्स” नाम की ख़तरनाक बीमारी का जन्म हो सकता है जो जानवरों से मनुष्यों में फैलती है। इस बीमारी के कारण जानवरों के पेट या लिवर जैसे अंदरूनी शारीरिक अंगों में खून का रिसाव शुरू हो जाता है और लगभग 48 घंटों के लंबे अंतराल के बाद जानवरों की तड़प-तड़पकर दर्दनाक और भयानक मृत्यु होती है।

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