खेलकूद आयोजनों में जानवरों के इस्तेमाल क्यों गलत है ?

फुटबॉल, क्रिकेट, कबड्डी ये सब खेलकूद हैं। किन्तु जल्लीकट्टू जैसे आयोजनों में दौड़ के लिए जानवरों का इस्तेमाल करना और यातनाएं देकर जबरन दौड़ने के लिए मजबूर करना किसी खेलकूद प्रतियोगिता के अंदर नहीं आता। जानवरों के लिए ये खेल नहीं बल्कि दुर्व्यवहार, प्रताड़ना या फिर मौत का प्राय है।

जल्लीकट्टू
तमिलनाडु के कई जिलों में जल्लीकट्टू के आयोजन होते हैं, जिसमें पुरुषों के दल बैलों को डराते हैं, उनका पीछा करते हैं, इस उत्तेजित भीड़ से बैल डरकर व घबराकर बचने के प्रयास में तेज़ी से भागते हैं व अक्सर दोनों ओर लगे बाड़े या दर्शकों से टकरा जाते हैं। उनकी हड्डियाँ टूट जाती है, घायल हो जाते हैं। भागते बैलों को काबू करने के लिए जो इंसान इन बैलों पर कूदते है या इनके रास्ते में आते है वह भी अक्सर गंभीर चोटों के शिकार होते है व बहुत से लोग तो मर भी जाते हैं।

क्यूंकि बैल भीड़ की ओर भागने में हिचकते हैं, इसलिए उन्हे नाक में बंधी रस्सियों से खींचकर उस तरफ जाने के लिए मजबूर किया जाता है, उन्हे नुकीली छड़े चुभोई जाती हैं, उन्हें दरांती और भाले नोचा जाता है व प्रतिभागियों द्वारा उनकी पूंछ पर काटकर उन्हे दौड़ने के लिए उत्तेजित किया जाता है।

PETA इंडिया ने इस क्रूरता के खिलाफ लंबे समय तक अभियान चलाया है और जल्लीकट्टू आयोजनों पर बहुत सी जाँचे भी की हैं।

वर्ष 2017 में तमिलनाडू राज्य सरकार ने एक अध्यादेश पारित कर राज्य में जल्लीकट्टू आयोजन की फिर से शुरू करने की अनुमति प्रदान कर दी जो की पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत इन जानवरों को संरक्षित करने की खिलाफत है। जब से जल्लीकट्टू दुबारा शुरू हुआ है तब से अब तक दर्जनों दर्शक व बैल इस क्रूर आयोजनों में मारे जा चुके हैं।

PETA इंडिया सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से इन घटनाओं पर रोक लगाने के लिए लड़ाई जारी रखेगा।

बैल दौड़
PETA इंडिया द्वारा महाराष्ट्र में बैल दौड़ पर की गयी एक जांच में खुलासा हुआ की महाराष्ट्र में दौड़ के लिए मजबूर होने वाले बैलों को आम तौर पर भोजन, पानी और छाया से वंचित किया रखा जाता है और नाक की रस्सियों से पकड़कर खींच जाता है जिससे उनकी नाक से खून बहता है। प्रतिभागी इन बैलों की पूंछ को अपने दांतों से काटते एवं मरोड़ते हैं और उनके मुह में ज्वलनशील पदार्थ डालते है ताकि चिड़चिड़ाहट से ये बैल और तेज़ी से दौर सकें। दौर के दौरान प्रतिभागी इन बैलों को लगातार कील-लगी छड़ें व चाबुक से मारते हैं व उनकी पूंछ को मरोड़ मरोड़ कर तोड़ देते हैं, बैलों के लिए यह उतना ही दर्दनाक होता जितना की इन्सानों के लिए उनकी उंगली का टूटना।

तमिलनाडु में हुई जांच के दौरान प्रतिभागी बैलों को बिजली के करंट लगाते व डंडे के मुंह पर लगे कील चुभोते भी रिकॉर्ड किए गए। यह सब अत्याचार बैल को उत्तेजित कर अपना मनोरंजन करने के लिए है।

https://www.youtube.com/watch?v=x0NP9obvrkA

दौड़ जैसी गतिविधियों में बैलों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध है। यदि आप आगामी होने वाली किसी बैल दौड़ के बारे में जानते हैं तो कृपया PETA इंडिया से संपर्क करें

कंबला
PETA इंडिया की एक नयी जांच में खुलासा हुआ है की कर्नाटक में कंबाला (भैंस दौड़) के आयोजनों के दौरान भैंसों के साथ बड़े पैमाने पर क्रूरता हो रही है। उन्हें लकड़ी के डंडों से पीटा जाता है, थप्पड़ व घूंसों से मारा जाता है तथा उनकी पूंछ तोड़ दी जाती है। बहुत सी भैंसो शरीर पर गंभीर पिटाई के जख्म दिखे जिनसे खून बह रहा था। जो जानवर दौड़ने के इच्छुक नहीं थे उन्हें उनकी नाक की रस्सियों से खींचकर दौर प्रारम्भ होने वाले स्थान तक जाया गया। इन भैंसों की नाक के छेदों में बहुत सी रस्सियाँ डाली गईं, जो बेहद दर्दनाक थी। दौड़ पूरी करने वाले भैंसे जोर ज़ोर से सांस ले रहे थे व उनके मुंह झाग निकल रही थी।

https://www.youtube.com/watch?v=raG0hVF1_WM

TAKE ACTION TO HELP

डॉग फाइट (कुत्तों की लड़ाई)
पंजाब और भारत के अन्य हिस्सों में डॉग फाइट का चलन है जो एक क्रूर और अवैध खूनी खेल है जिसमे दो कुत्तों को आपस में तब तक लड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है जब तक कि लड़ते लड़ते थककर, खून से लथपथ होकर गिर न जाए। झगड़े के बाद, “हारने” वाले कुत्तों को अक्सर उनके विरोधियों द्वारा पीड़ित किया जाता है, गोली तक मार दी जाती है या फिर बिना किसी चिकित्सा के उन्हे मरने के लिए छोड़ दिया जाता है।

मुर्गे लड़वाना
भारत में मुर्गे लड़वाना गैरकानूनी है। लड़ाई के लिए पाले-पोसे गए इन मुर्गों को लड़ाई से पहले लंबे समय तक पिंजरों में बंदी बनाकर रखा जाता है। लड़ाई के दौरान उनके पैरों में दो छोटे नुकीले चाकू पहनाए जाते हैं ताकि झगड़े को और अधिक “रोमांचक” (यानी खूनी) बनाया जा सके। लड़ाई के दौरान मुर्गे लहू लुहान हो जाते हैं, उनके पंख टूट जाते हैं, पैर व शरीर के अन्य बुरी तरह जख्मी हो जाते हैं, रीढ़ की हड्डी टूट जाती है व आँखें निकल कर बाहर आ जाती हैं। इस खूनी लड़ाई में जो मुर्गे बच जाते हैं उन्हे फिर से लड़ने या मारे जाने के लिए मजबूर किए जाता है।

कुत्तों की दौड़
कानून ये कहता है की, भारतीय पशु कल्याण बोर्ड के साथ प्रदर्शन पशु (पंजीकरण) नियम, 2001, और प्रदर्शन पशु (पंजीकरण) संशोधन नियम, 2001 के तहत पंजीकृत किए बिना किसी भी पशु को प्रशिक्षण, प्रदर्शनी या आयोजनों के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है, लेकिन अक्सर कुत्तों की दौड़ गैर कानूनी तरीकों से आयोजित की जाती है।

दौड़ के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कुत्तों को एक मशीन की तरह से पाला जाता है, इनमे से अधिकांश कुत्तों का पूरा जीवन तंग व दर्दरनाक पिंजरो में कैद होकर गुजरता है। दौड़ के दौरान तेज़ी से दौड़ने के कारण यह कुत्ते अनेकों स्वास्थ्य समस्याओं का शिकार होते हैं जिसमे उनकी टांगों एवं पंजों का टूटना, हीटस्ट्रोक और दिल के दौरे मुख्य हैं। एक दौड़ में मिली चोटों से वह पूरी तरह उबर भी नहीं पाते कि उन्हें पुनः अगली दौड़ के लिए तैयार किया जाता है। चोटिल पंजों से दुबारा दौड़ने के कारण बहुत से कुत्तों के पैर हमेशा हमेशा के लिए टूट जाते हैं।

घुड़ दौड़
घोड़ों की दौड़ दुनिया भर में मशहूर है, घुड़ दौड़ उद्योग में घोड़ों को नशीली दवाएं दी जाती हैं जिससे ब्वह अक्सर गंभीर चोटों का शिकार होते हैं। अनेकों घोड़े जब इस तरह कि दौड़ के लायक नहीं रेह जाते तो उनको मरने के लिए कत्लखानों में भेज दिया जाता है। भारत में इस तरह कि दौड़ के बाद बचे घोड़ों को विशरोधक एवं विषनाशक दवाएं बनाने वाली कंपनियों को बेच दिया जाता है। इन कंपनियों के अंदर का जीवन किसी बुरे सपने से कम नहीं क्यूंकि जहां आजीवन इन घोड़ो के शरीर से खून निकाल कर दवाएं बनाई जाती है।



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