जीत: PETA इंडिया की शिकायत के बाद कोल्हापुर में दो अवैध घुड़दौड़ और एक मेढ़ा लड़ाई कार्यक्रम रोके गए
PETA इंडिया को जैसे ही करवीर तालुका के डोनवडे गांव में 8 मई को होने वाली एक अवैध मेढ़ा लड़ाई और गडहिंग्लज तालुका के भडगाव में 8 व 10 मई को तय की गई अवैध घुड़दौड़ और घोड़ा-बग्गी दौड़ के प्रचार पोस्टर मिले, संगठन ने तुरंत कोल्हापुर पुलिस को इसकी जानकारी दी। पुलिस ने समय पर कार्रवाई करते हुए इन क्रूर और गैरकानूनी कार्यक्रमों को रुकवा दिया।
PETA इंडिया के अनुरोध पर कार्रवाई करते हुए, गडहिंग्लज पुलिस स्टेशन ने घुड़दौड़ और घोड़ा-बग्गी रेस के आयोजकों को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 168 के तहत नोटिस जारी किया, ताकि इन गैरकानूनी गतिविधियों को रोका जा सके। वहीं, अवैध मेढ़ा लड़ाई कार्यक्रम के आयोजकों को करवीर पुलिस स्टेशन बुलाया गया, जहां उनसे यह लिखित में लिया गया कि वे यह अवैध आयोजन नहीं करेंगे।
ऐसे आयोजन, जिनमें पशुओं को जबरन लड़ाया या दौड़ाया जाता है, न केवल क्रूर और हिंसक होते हैं, बल्कि पूरी तरह से गैरकानूनी भी हैं। मेढ़ा लड़ाई और घोड़ा-बग्गी दौड़ जैसे कार्यक्रम पशुओं को गंभीर शारीरिक चोट और मानसिक तनाव देते हैं। हम कोल्हापुर पुलिस का विशेष रूप से करवीर के उप पुलिस अधीक्षक श्री सुजीतकुमार क्षीरसागर और गडहिंग्लज के उप पुलिस अधीक्षक श्री रामदास इंगवले का आभार व्यक्त करते हैं जिन्होंने यह स्पष्ट संदेश दिया कि पशुओं के खिलाफ़ किसी प्रकार की क्रूरता को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
मेढ़ा लड़ाई में दो नर भेड़ों को एक-दूसरे के खिलाफ जबरन लड़ाया जाता है जिसमें वे हिंसक रूप से टकराते हैं और कई बार यह लड़ाई खून-खराबे तक पहुंच जाती है। पशुओं को मार-पीट कर लड़ने के लिए उकसाया जाता है जब तक कि किसी एक को विजेता घोषित नहीं कर दिया जाता। इस क्रूर अभ्यास के दौरान पशुओं को गंभीर शारीरिक और मानसिक पीड़ा का सामना करना पड़ता है जिसमें हड्डियों में फ्रैक्चर, गहरे घाव और अत्यधिक तनाव जैसी समस्याएं शामिल हैं।
घुड़दौड़ में इस्तेमाल किए जाने वाले घोड़ों को तेज़ रफ्तार से दौड़ाने के लिए कोड़ों और अन्य हथियारों से मारा-पीटा जाता है। तेज़ रफ्तार में दौड़ते समय वे अक्सर चोटिल हो जाते हैं और कई बार उनके फेफड़ों से खून तक बहने लगता है। वर्ष 2016 में, राजस्थान हाईकोर्ट ने भारतीय जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड की एक रिपोर्ट की समीक्षा के बाद राजस्थान में टोंगा रेस पर प्रतिबंध लगाया था। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि घोड़ों को तेज़ आवाज़ों वाली भीड़ और शोरगुल करते वाहनों के बीच दौड़ाने से उन्हें भय और मानसिक तनाव झेलना पड़ता है, जिससे उनके साथ गंभीर क्रूरता होती है।