त्रिशा कृष्णन और ‘पीपल फॉर कैटल इन इंडिया’ ने अरुप्पुकोट्टई, तमिलनाडु के मंदिरों को जीवन-आकार का मकैनिकल हाथी उपहार में दिया

Posted on by Erika Goyal

परंपरा और करुणा के सुंदर संगम की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए, अभिनेत्री त्रिशा कृष्णन और चेन्नई स्थित संगठन पीपल फॉर कैटल इन इंडिया (PFCI) ने तमिलनाडु के अरुप्पुकोट्टई स्थित श्री अष्टलिंग अथिशेष सेल्व विनायगर और श्री अष्टभुजा अथिशेष वाराही अम्मन मंदिरों को एक जीवन-आकार का यथार्थपरक मकैनिकल हाथी गाजा उपहार में दिया है। यह कदम मदुरै क्षेत्र और विरुधुनगर ज़िले में पहली बार किसी मंदिर द्वारा मकैनिकल हाथी को धार्मिक अनुष्ठानों में शामिल करने का प्रतीक बन गया है।

गाजा, जिसे बारीकी से डिज़ाइन किया गया है, अब इन मंदिरों की धार्मिक शोभायात्राओं और अनुष्ठानों में भाग लेगा, जिससे जीवित हाथियों की क्रूरता से मुक्ति मिलेगी और परंपरा को करुणा के साथ निभाया जा सकेगा। यह दक्षिण भारत में एक बढ़ती हुई प्रवृत्ति का हिस्सा है, जहाँ मंदिर परंपराओं को बनाए रखते हुए मकैनिकल हाथियों को अपना रहे हैं। भारत में मंदिर में पहली बार इस्तेमाल हुआ मकैनिकल हाथी इरिंजादपिल्ली रमन 2023 में केरल में PETA इंडिया द्वारा प्रस्तुत किया गया था।

पशु कल्याण की प्रबल समर्थक त्रिशा कृष्णन लंबे समय से PETA इंडिया और ब्लू क्रॉस ऑफ इंडिया जैसे संगठनों के साथ मिलकर पशुओं के अधिकारों की रक्षा हेतु कार्य करती रही हैं।

त्रिशा ने इस अवसर पर कहा,

“इस खूबसूरत क्षण का हिस्सा बनकर मैं बेहद रोमांचित हूं। जब भक्ति करुणा में रची-बसी हो, तभी वह सबसे अधिक प्रकाशमान होती है। हमारे मंदिर की परंपराओं में मकैनिकल हाथी को अपनाना दयालुता, नवाचार और संस्कृति का एक संयुक्त उत्सव है। यह परंपरा का ऐसा सम्मान है जो किसी को आहत नहीं करता—बल्कि समरसता लाता है। मेरी आशा है कि यह उदाहरण औरों को भी प्रेरित करेगा कि भविष्य के धार्मिक अनुष्ठानों का नेतृत्व प्रेम करे, न कि पीड़ा।”

कुंभाभिषेकम उत्सव के शुभ अवसर पर गाजा का पारंपरिक मंगल वाद्ययंत्रों के साथ मंदिर में स्वागत हुआ। इस पहल के माध्यम से मंदिरों ने जीवित हाथियों को न पालने या किराये पर न लेने के अपने संकल्प को और अधिक दृढ़ किया। यह करुणामय पूजन पद्धति की दिशा में एक प्रेरणादायक उदाहरण है, जिसमें तकनीक और परंपरा का मिलन दिखता है।

मंदिर के मुख्य स्वामी मेट्टुकुंडु ज्ञानावेली सिद्धर श्री शंकरेश्वरर स्वामीगल ने कहा,

“हमारा विश्वास सिखाता है कि सच्ची भक्ति करुणा के माध्यम से व्यक्त होती है। गाजा को हमारे अनुष्ठानों में शामिल कर हम न केवल परंपरा का सम्मान कर रहे हैं, बल्कि उन सौम्य प्राणियों की भावना का भी सम्मान कर रहे हैं जो अपने प्राकृतिक वनों में रहना चाहते हैं। यह कदम अहिंसा की भावना को दर्शाता है और यह भी दर्शाता है कि पूजा बल से नहीं, प्रेम और संवेदना से भी की जा सकती है।”

PFCI के संस्थापक अरुण प्रसन्ना ने कहा,

“मंदिर अनुष्ठानों में मकैनिकल हाथियों को शामिल करना एक ऐसा कदम है जो मंदिरों में हाथियों के कष्ट को समाप्त करने के साथ-साथ हमारी सांस्कृतिक परंपराओं की पवित्रता को भी बनाए रखता है। गाजा यह सिद्ध करता है कि श्रद्धा और सभी जीवों के लिए सम्मान साथ-साथ चल सकते हैं। हमें PETA इंडिया की इस दिशा में की गई पहल से प्रेरणा मिली।”

हाथी बुद्धिमान और सामाजिक वन्यजीव होते हैं, फिर भी उन्हें मंदिरों, सवारी और अन्य “मनोरंजन” के लिए कठोर प्रशिक्षण प्रक्रियाओं जैसे पिटाई, ज़ंजीरों में जकड़ना और ज़रूरी सुविधाओं से वंचित रखना सहना पड़ता है। कई हाथी पैर की गंभीर चोटों, कुपोषण, पशु-चिकित्सकीय देखभाल की कमी और अकेलेपन व कैद की मानसिक पीड़ा से गुजरते हैं। ऐसी पीड़ादायक परिस्थितियों में वे अक्सर आक्रामक हो जाते हैं, जिससे दुखद घटनाएं सामने आती हैं। तमिलनाडु में कई मंदिर-सम्बंधित घटनाएं इस संकट को उजागर करती हैं: नवंबर 2024 में तिरुचेंदूर के सुब्रमण्य स्वामी मंदिर में देवियानई  नामक हथिनी ने अपने महावत और उसके रिश्तेदार की जान ले ली; मई 2018 में त्रिची में मासिनी नामक हथिनी ने एक अनुष्ठान के दौरान अपने परिचारक को कुचल कर मार डाला; और सितंबर 2024 में कुंद्रकुडी मंदिर में सुब्बुलक्ष्मी नामक हथिनी की आग की दुर्घटना में जलकर दर्दनाक मौत हो गई। ये हृदयविदारक घटनाएं मंदिरों में रखे गए हाथियों की गहरी पीड़ा, मानव जीवन के लिए बढ़ते खतरे और ऐसी करुणामय, आधुनिक तकनीक-आधारित विकल्पों की तत्काल आवश्यकता को दर्शाती हैं जो पशुओं और परंपरा—दोनों का सम्मान करें।

पिछले वर्ष, पीपल फॉर कैटल इन इंडिया (PFCI) ने तमिलनाडु के श्रीविल्लिपुत्तुर स्थित ऐतिहासिक अरुल्मिगु नचियार (आंडाल) मंदिर को एक समान मकैनिकल हाथी दान करने की पेशकश की थी। इस करुणामय पहल के साथ मंदिर की हथिनी जेयमल्याथा – जिसे जॉयमाला के नाम से भी जाना जाता है – को पुनर्वास और दीर्घकालिक देखभाल के लिए एक प्रतिष्ठित अभयारण्य भेजने का औपचारिक अनुरोध भी किया गया था। जेयमल्याथा को बंदी अवस्था में प्रताड़ित किए जाने के कई वीडियो और रिपोर्ट सामने आने के बाद वह राष्ट्रीय चिंता का केंद्र बन गई है, जिससे पूरे देश में आक्रोश फैल गया और उसकी रिहाई की मांग तेज़ हो गई। हालांकि इस प्रस्ताव की गंभीरता और जेयमल्याथा की स्थिति पर बढ़ते राष्ट्रीय ध्यान के बावजूद, अब तक मंदिर प्रशासन की ओर से इस प्रस्ताव या हथिनी की देखभाल को लेकर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया या जानकारी नहीं दी गई है।