“भारत के सबसे कमजोर व क्षीण हाथी को तत्काल बचाया जाए”- PETA इंडिया

Posted on by PETA

मध्य प्रदेश के छतरपुर इलाके में सड़कों पर ‘लक्ष्मी’ नामक एक कमजोर हथिनी को भीख मांगने के लिए मजबूर करने की खबर मिलने के बाद, PETA इंडिया ने स्थानीय कार्यकर्ताओं और स्वयं सेवकों के समर्थन से उस हथिनी का बचाव अभियान शुरू किया क्यूंकि उसे तत्काल पशु चिकित्सीय देखभाल और भोजन पानी की आवश्यकता थी। PETA समूह ने इंगित किया है कि शारीरिक रूप से बेहद कमजोर लक्ष्मी, जिसके शरीर की हड्डियाँ साफ दिखाई देती हैं, अस्वस्थ है व उसे भीख मांगने के लिए जबरन गर्म पक्की सड़क पर चलने के लिए मजबूर किया जा रहा है। इस तरह के कृत्य ‘वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 972, पशु क्रूरता निवारण अधीनियम, 1960 तथा केंद्र सरकार के दिशा निर्देशों का स्पष्ट उल्लंघन हैं।

 

दिनांक 1 दिसंबर को PETA इंडिया और स्थानीय स्वयं सेवकों की शिकायत पर, लक्ष्मी को बड़ा मल्हारा स्थित स्थानीय वन विभाग के कार्यालय में ले जया गया था। जांच में PETA समूह के पशु चिकित्साकों ने निष्कर्ष निकाला कि वह पुराने दर्द से पीड़ित है (धनुषाकार पीठ व आराम करने की मुद्रा में उसका अपने शरीर का वजन एक पैर से दूसरे पैर पर स्थानांतरित करना) व उसे गंभीर लंगड़ापन, पैरों की विकृति, (अपक्षयी संयुक्त रोगों के कारण होने की संभावना) और दोनों कूल्हों पर फोड़े भी हैं।

 

लक्ष्मी के साथ होने वाला दुर्व्यवहार, भारत में भीख मांगने, हाथी सवारी और प्रदर्शनों के लिए इस्तेमाल होने वाले हाथियों की दुर्दशा को उजागर करता है। इस तरह के कामों में इस्तेमाल होने वाले हाथियों को अक्सर उनके कानों व घुटनों के पीछे संवेदनशील हिस्से पर अंकुश चुभोकर व मारपीट करके नियंत्रित किया जाता है तथा पर्याप्त मात्रा में भोजन पानी एवं चिकत्सीय देखभाल से वंचित रखा जाता है। लगातार पैरों में जंजीरों की रगड़न से गंभीर घाव बन जाते हैं। अधिकांश बंदी हाथियों में गंभीर मनोवैज्ञानिक दशा देखने को मिलती है जैसे सिर को गोल गोल या फिर दाएं बाएं घुमाते रहना जो कि प्रकर्तिक वातावारण में रहने वाले स्वस्थ हाथियों में देखने को नहीं मिलती। निराशा से भरपूर ऐसे हाथी अक्सर अपने महावतों या फिर आसपास आने वाले लोगों को मार भी देते हैं।

जैसा कि भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड व राज्य वन विभाग की बहुत सी निरीक्षण रिपोर्टों से पता चलता है, देश में अधिकांश हाथियों को अवैध रूप से कैद में रखा जा है क्यूंकि वन विभाग से आवश्यक अनुमति लिए बिना उनकी हिरासत किसी अन्य को स्थानांतरित कर दी जाती है व बिना किसी अनुमोदन के उन्हें एक से दूसरे राज्य में भेज दिया जाता है।