PETA इंडिया सरकार से आग्रह करता है कि TB का संक्रमण हस्तांतरित कर सकने वाले हाथियों को भी प्रतिबंधित वन्यजीवों की सूची में शामिल किया जाए।

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कोरोना वायरस जैसे जूनोटिक रोग जो पशुओं से मनुष्यों में फैलते हैं, इसके बढ़ते खतरे के मद्देनजर, पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) इंडिया ने केंद्रीय मत्स्य पशुपालन और डेयरी उद्योग मंत्री श्री गिरिराज सिंह जी को आग्रह पूर्ण पत्र लिखा है कि वे एक केंद्रीय सूचना जारी कर, भारत में प्रदर्शन और प्रशिक्षण के लिए प्रतिबंधित जंगली जानवरों की सूची में हाथियों को भी शामिल करें। ट्यूबरक्युलोसिस (TB) तेज गति से फ़ैलनेवाला रोग है जो हाथियों से मनुष्यों में भी संक्रमित होता है और इस रोग को देशभर के हाथियों में पाया गया है। 1998 में, केंद्र सरकार ने भालू, बंदर, बाघ, पैंथर और शेरों द्वारा मनोरंजनात्मक प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगा दिया था।हालाँकि, हाथियों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची 1 के तहत संरक्षित किया गया है किन्तु फिर भी उन्हें इस सूची से बाहर रखा गया है।

PETA इंडिया ने इंगित किया है कि बंदी हाथियों पर किए गए परीक्षण में जयपुर के आमेर के किले पर हाथियों को सक्रिय TB संक्रमण से संक्रमित पाया गया है व जो हाथी सर्कस, फिल्मों, टी.वी कार्यक्रमों, त्योहारों और परेडों के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं उनकी वजह से जनता के स्वास्थ्य को  खतरे में डाला जा रहा है। इस तरह से संक्रमित हाथियों का इस्तेमाल जारी रखने से सार्वजनिक स्वास्थ्य, पर्यटन और समग्र अर्थव्यवस्था के लिए भविष्य में गंभीर परिणाम हो सकते हैं, जैसा कि आज देश मौजूदा महामारी के चपेट में आकर सीख रहा है।

केंद्र सरकार के संवैधानिक निकाय ‘भारतीय जीवजन्तु कल्याण बोर्ड (AWBI)’ द्वारा जयपुर में बंदी हाथियों पर अप्रैल 2018 में बनी एक मूल्यांकन रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि जयपुर के पास हाथीसवारी और पर्यटकों के मनोरंजन हेतरु अन्य गतिविधियों में इस्तेमाल हो रहे हाथियों की रैपिड सर्जिकल स्वास्थ जांच में 10% हाथी TB के सक्रिय (reactive) संक्रमण से पीड़ित पाये गए।

कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के 600 हाथियों पर किए गए वैज्ञानिक अध्ययन, जिसके नतीजे 2012 में प्रकाशित किया गए थे, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि “भारत में बंदी बनाए गए एशियाई हाथियों में लक्षण न दिखने वाले ट्यूबरक्युलोसिस [माइकोबैक्टीरियम] का तेजी से संक्रमण हो रहा है।“ वर्ष 2013 में प्रकाशित एक भारतीय अध्ययन के अनुसार “महावत और बंदी हाथियों के बीच M ट्यूबरक्युलोसिस की मिश्र जाती के संक्रमण के दो संभावित मामले हैं। पहले मामले में M. ट्यूबरक्युलोसिस का संक्रमण इंसान से हाथी में व दुसरे मामले में M. ट्यूबरक्युलोसिस का संक्रमण  हाथी से इंसान के बीच हस्तांतरित हुआ है। वर्ष 2016 में प्रकाशित एक अन्य भारतीय समाचारपत्र में लिखा गया था कि तीन साल कि अवधी महज़ एक बार 800 हाथियों और उनके महावतों की जांच की गई और इसमे पाया गया कि “एक प्रजाति से दूसरी प्रजाति में हस्तांतरित हो सकने वाले ट्यूबरक्युलोसिस संक्रमण के सबूत मिले हैं।“

2008 में, रक्षा मंत्रालय ने गणतंत्र दिवस की परेड के दौरान हाथियों को इस्तेमाल किए जाने पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया क्योंकि निराश हाथी कभी भी हिंसक होकर जनता को नुकसान पहुंचा सकते हैं जो कि एक गंभीर चिंताजनक मुद्दा है और साथ ही उनके मालिकाना हक की वैधता के बारे में भी आशंकाएं हैं। 2010 में, सरकार ने हाथियों को ‘राष्ट्रीय धरोहर पशु’ घोषित किया ताकि उनकी रक्षा के मजबूत उपाय किए जा सके। बंदी हाथियों के दुख और पीड़ा को उजागर करने वाली एक विस्तृत अध्ययन रिपोर्ट के आधार पर 2016 में AWBI ने केंद्र सरकार से सिफारिश की कि, प्रदर्शन और प्रशिक्षण के लिए हाथियों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया जाये।

द प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स एक्ट, 1960 की धारा 22 (ii) के अनुसार, केंद्र सरकार का मतस्य, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय, भारत के शासकीय राजपत्र के द्वारा एक केंद्रीय अधिसूचना जारी कर जानवरों के प्रदर्शन और प्रशिक्षण हेतु हाथियों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा सकता है

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