PETA इंडिया ने एक प्यारे बछड़े की जान बचाकर ‘Hug-a-Cow’ डे को ‘Save-a-Cow’ डे में बदला

Posted on by Siffer Nandi

हाल ही में, वेलेंटाइन डे के अवसर पर जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड द्वारा ‘Hug-a-Cow’ डे मनाने की घोषणा की गयी और PETA इंडिया द्वारा जानवरों के प्रति इसी दयालुता को आगे बढ़ाते हुए ‘Save-a-Cow’ डे मनाया गया। इसी बीच PETA इंडिया द्वारा ज़रूरतमंद जानवरों हेतु पशु चिकित्सकीय देखभाल का आयोजन किया गया जिसके लिए स्काउटिंग गतिविधियों का आयोजन भी किया गया। इस प्रक्रिया के दौरान, PETA इंडिया की एडवोकेसी ऑफिसर फरहत उल ऐन ने हरियाणा के गुड़गांव में एक लावारिस नर बछड़े को खाई में फंसा हुआ पाया। यह बछड़ा एक दर्दनाक, खुले घाव से पीड़ित था और एक पैर पर भार उठाने में असमर्थ था। फरहत द्वारा इस बछड़े का नाम ‘वेलेंटाइन’ रखा गया। ‘वेलेंटाइन’ को चिकित्सकीय देखभाल प्रदान की गई और PETA इंडिया द्वारा उसे एनिमल राहत द्वारा संचालित एक सुंदर अभयारण्य में ले जाया गया है जहाँ वह अपना आगे का जीवन शांतिपूर्ण ढ़ंग से व्यतीत करेगा।

हमें गायों के साथ-साथ बैलों के प्रति भी संवेदनशीलटा प्रकट करने की आवश्यकता है क्योंकि बछड़ों के जन्म के तुरंत बाद उन्हें अपनी माँ से अलग करने की व्यापक तौर पर प्रचलित डेरी प्रथा के खिलाफ़ आवाज़ उठाई गयी है। मादा बछड़ें दूध नहीं दे सकते इसलिए उन्हें भूखा मरने के लिए छोड़ दिया जाता है या चमड़ी के लिए इन जानवरों को बेच दिया जाता है। डेयरी फार्मों में बछड़ों को खलबच्चों  में बदल दिया जाता है अर्थात मृत बछड़ों के शरीर की खाल में भूसा भरकर उन्हें नकली बच्चा बनाकर गायों एवं भैसों के पास ऐसे खड़ा कर दिया जाता है ताकि गायें भैंसे उन्हें अपना जीवित बछड़ा समझे और दूध देती रहें।

 

डेरी उद्योग जानवरों की आपूर्ति करके गोमांस और चमड़ा उद्योग का भी समर्थन करता है , जो भारत में बड़े पैमाने पर मौजूद हैं। University of Oxford के शोधकर्ताओं के अनुसार, केवल मांस और डेयरी उत्पादों का त्याग करके अपने कार्बन फूटप्रिंट को 73 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है और यह इस ग्रह पर अपने नकारात्मक प्रभाव को कम करने का सबसे सफ़ल तरीका है। इसके अलावा डॉक्टरों द्वारा डेयरी उपभोग को हृदय रोग, टाइप 2 मधुमेह, कुछ प्रकार के कैंसर, और अन्य बीमारियां से भी जोड़कर देखा गया है।

हमें सभी जानवरों के प्रति हर दिन दयालुता दिखानी चाहिए!

गायों को बचाएँ