पशुओं पर प्रयोग करने के खिलाफ चल रहे अभियान की कमान PETA इंडिया को

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प्रतिष्ठित संस्थान “नेशनल कांग्रेस ऑन ऑल्टरनेटिव्स टू एनिमल टेस्टिंग” द्वारा चुने गए प्रयोजक दल का हिस्सा होने पर PETA इंडिया को गर्व है। नेशनल कांग्रेस एक ऐसा वार्षिक कार्यक्रम हैं जो नयी दवाओं की खोज, पर्यावरण जोखिम मूल्यांकन और सौंदर्य प्रसाधन क्षेत्रों के उत्पादन में उभर रही नयी संभावनाओं के आंकलन और नियामक दिशानिर्देशों पर अपडेट जानकारी सांझा करने की अनुमति देता है। हमें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों, वैज्ञानिकों और छात्रों के सामने अपने तथ्य प्रस्तु करने हेतु आमंत्रित किया गया था। अगर स्पष्ट रूप से कहें तो यह एक बहुत बड़ा अवसर था।

PETA इंडिया का एक वैज्ञानिक“सोसाइटी फॉर अल्टरनेटिव्स टू एनिमल एक्सपेरिमेंट्स (SAAE)” का संस्थापक एवं आजीवन सदस्य है वा यह संस्था भी इस कार्यक्रम में भागीदारी निभा रही है। यह संस्थान दवाओं की खोज, विषक्तता परीक्षण में पशुओं पर प्रयोगों की जगह अन्य विकल्प खोजने हेतु कार्य कर रहे वैज्ञानिकों को एक ऐसा अवसर प्रदान करता है जहाँ वह आपसी विचारों एवं जानकारियों को एक दूसरे के साथ सांझा कर नयी व अपडेट जानकारी प्राप्त कर सकें।

इस अवसर पर हमारी विज्ञान टीम के सदस्यों ने विशरोधक दवाओं के निर्माण हेतु गैर-पशु परीक्षण विधियों को अपनाए जाने की आवश्यकता, घोड़ों से खून लेकर विशरोधक एवं विषमारक दवाएं बनाने की सीमाओं, एंटीबॉडी (प्रतिरक्षा) तथा नए उपचारों हेतु गैर-पशु परीक्षण विधियाँ अपनाएं जाने पर चर्चा की।

वर्ष 2015 में भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड द्वारा एक टीम गठित की गयी थी जिसमे PETA इंडिया के लोग भी शामिल थे, ने विशरोधक एवं विषमारक दवाओं के निर्माण हेतु 10 घोड़पालन केन्द्रों की जांच की व वहाँ हजारों घोड़ों, खच्चरों और गधों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार और उपेक्षा का दस्तावेजीकरण किया। इस जांच में पाया गया कि, यह जानवर गंदी, भीड़-भाड़ वाली, कम सुविधा भरी जगहों पर बदतर जिंदगी जी रहें हैं। वह अपने ही मल मूत्र मे सने खड़े रहते हैं। इन जानवरों में एनीमिया, दर्दनाक घाव, पाचन तंत्र संबंधी रोग, त्वचा और दंत समस्याएं, खुर की असामान्यताएं, संक्रमण और कुपोषण जैसी समस्याएं आमतौर पर देखने को मिली। हमेशा डर और चिंता का जीवन जीने वाले इन घोड़ों का खून निकालने के लिए जब कोई श्रमिक उनके पास जाने की कोशिश करता था तो वह घोड़े उनसे दूर भागने का संघर्ष करते थे। निरीक्षकों ने ऐसे घोड़ों को भी देखा जिंहे इच्छामृत्यु न देकर धीमी मौत मरने के लिए छोड़ दिया गया था।

आज – क्योंकि जानवरों पर प्रयोग करना  क्रूर, महंगा, और अमानवीय है , दुनिया के सबसे बुद्धिमान वैज्ञानिकों ने दवाओं के खोज एवं अध्ययन के क्षेत्र में नयी तकनीकों को विकसित किया है जो पशुओं पर आधारित नहीं हैं व मानव स्वास्थ्य के अनुरूप हैं। PETA इंटरनेशनल साइंस कंसोर्टियम लिमिटेड, जानवरों पर प्रयोग किए बिना मानवीय तरीकों से डिप्थीरिया एंटीटॉक्सिन के निर्माण हेतु फ़ंड प्रदान कर रहा है। अभी तक डिप्थीरिया के उपचार हेतु जो दवाएं बन रही है उनमे घोड़ों का खून इस्तेमाल होता है जिससे रोगियों में प्रतिकूल प्रतिक्रियाएँ हो सकती है। इस परियोजना के द्वारा हमारा उद्देश्य एक ऐसी दवा बनाना है, जो मानव या अन्य जानवरों को नुकसान पहुंचाए बिना डिप्थीरिया संक्रमण के इलाज में प्रभावी होगी।