केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त निरीक्षण समिति ने पालामूर बायोसाइंसेस में मौजूद 1200 से अधिक पशुओं को तुरंत हटाने और पुनर्वास की सिफारिश की, PETA इंडिया ने तत्काल कार्रवाई की माँग उठाई

Posted on by Shreya Manocha

PETA इंडिया ने खुलासा किया है कि केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त एक निरीक्षण समिति ने पालामूर बायोसाइंसेस के संबंध में अपनी विस्तृत और चौंकाने वाली रिपोर्ट में तत्काल नियामक कार्रवाई की सिफारिश की है। इस कार्रवाई में 1200 से अधिक पशुओं को तुरंत हटाकर उनका पुनर्वास सुनिश्चित करना शामिल है, ताकि उन्हें आगे और किसी तरह की पीड़ा या कष्ट न झेलना पड़े। समिति ने यह भी अनुशंसा की है कि इस तेलंगाना स्थित संस्था के पंजीकरण और प्रजनन लाइसेंस की स्थिति की गहन समीक्षा की जाए। यह रिपोर्ट उस निरीक्षण के बाद सामने आई है, जो PETA इंडिया द्वारा इस महीने की शुरुआत में जारी एक व्हिसलब्लोअर-नेतृत्व वाले खुलासे के दो दिन बाद किया गया था। इस खुलासे में पालामूर बायोसाइंसेस के भीतर लिए गए आंतरिक वीडियो के माध्यम से वहां की वास्तविक स्थिति को सामने लाया गया था। यह संस्था न केवल एक बड़ा बीगल प्रजनन केंद्र है, बल्कि एक अनुबंध प्रयोगशाला भी है, जो विदेशी कंपनियों से पशु परीक्षण से संबंधित प्रोजेक्ट्स स्वीकार करती है।

इस रिपोर्ट में दर्ज निष्कर्षों और सिफारिशों पर पशुओं पर प्रयोगों के नियंत्रण और पर्यवेक्षण हेतु समिति (CCSEA), भारतीय जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड (AWBI), संस्थागत पशु नैतिकता समिति (IAEC) तथा उद्योग और पशु कल्याण से जुड़े प्रतिनिधियों द्वारा हस्ताक्षर किए गए हैं। PETA इंडिया केंद्र सरकार के अधीन कार्यरत CCSEA से अपील करता है कि वह इस रिपोर्ट पर त्वरित कार्रवाई करते हुए पालामूर बायोसाइंसेस में मौजूद सभी पशुओं को बचाने की अनुमति दे और उन्हें स्नेहपूर्ण घरों व विश्वसनीय पशु संरक्षण केंद्रों में भेजने की व्यवस्था करे। साथ ही संस्था को पशु प्रजनन और उनके उपयोग की दी गई अनुमति को तुरंत निरस्त किया जाए।

निरीक्षकों की रिपोर्ट से स्पष्ट हुआ है कि पालामूर बायोसाइंसेस में कुत्तों (बीगल नस्ल), सूअरों, भेड़ों, गायों सहित अन्य मवेशियों, बंदरों, चूहों, चुहियों और खरगोशों जैसे संवेदनशील पशुओं को निर्दयी प्रयोगों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है – जबकि शुरू में इस संस्था ने इनमें से कुछ प्रजातियों की मौजूदगी से इनकार कर दिया था। रिपोर्ट में जिन गंभीर अनियमितताओं और पशुओं के साथ दुर्व्यवहार की घटनाओं का दस्तावेज़ीकरण किया गया है, उनमें निरीक्षकों द्वारा निम्नलिखित बिंदु उजागर किए गए हैं:

  • संस्थान पशुओं की कुल संख्या का कोई रिकॉर्ड प्रस्तुत नहीं कर सका। निरीक्षकों ने परिसर में 1,232 से अधिक पशु गिने, जिनमें CCSEA द्वारा स्वीकृत संख्या से कहीं अधिक कुत्ते शामिल थे।
  • “अतिरिक्त” पशुओं को प्रयोगशालाओं के पास ही बिना किसी जैव सुरक्षा उपाय या स्वास्थ्य जांच के अस्थायी कमरों में अव्यवस्थित तरीके से ठूंस-ठूंसकर रखा गया था।
  • विभिन्न प्रजातियों के पशुओं को बार-बार दर्दनाक प्रयोगों में झोंका जाता है – कभी-कभी एक प्रयोग के कुछ ही हफ्तों बाद उन्हें फिर से इस्तेमाल किया गया, जो कि CCSEA दिशानिर्देशों का गंभीर उल्लंघन है। एक कुत्ते को कंपन और तड़प झेलते हुए अंततः मार दिया गया। वहीं, गायों को भी प्रयोगों में शामिल किया गया और वे बेहद कुपोषित अवस्था में मिलीं।
  • 73 कुत्तों को कथित “पुनर्वास” के नाम पर एक अस्थायी व्यवस्था में रखा गया था, लेकिन वहां भी वे प्रजनन और प्रयोगों में इस्तेमाल हो रहे अन्य कुत्तों की तरह ही गंदगी और दयनीय हालात में जी रहे थे।
  • निरीक्षण में सामने आया कि पशुओं को बिना किसी बिछावन के सख्त और छिद्रित फर्श पर रहने के लिए मजबूर किया गया था। उनके पास न तो खुला स्थान था, न व्यायाम या खेलने की कोई सुविधा, और न ही मानसिक रूप से सक्रिय रखने वाले कोई साधन। प्रजनन क्षेत्र में कई पशु अपनी ही गंदगी में पड़े हुए पाए गए। वहाँ मौजूद एक छोटा-सा तथाकथित “प्ले एरिया” भी केवल दिखावे भर का था, जिसका फर्श उतना ही कठोर और असुविधाजनक था — जिससे स्पष्ट होता है कि इन मासूम पशुओं की बुनियादी ज़रूरतों तक की अनदेखी की जा रही थी।
  • अन्य प्रजातियों के पशुओं को भी बिना सुविधा वाले पिंजरों में रखा गया था। यहां तक कि बंदरों के लिए भी कोई बाहरी बाड़ा नहीं था।
  • कई कुत्ते बीमार हालत में पाए गए – जैसे चेरी आई, कुपोषण – लेकिन न तो उनके कोई मेडिकल रिकॉर्ड थे और न ही उपचार का कोई प्रमाण। मिनीपिग्स और गायों की भी शारीरिक हालत बेहद खराब पाई गई।
  • निरीक्षकों के सामने ही एक पशु संचालक ने एक कुत्ते को बेरहमी से गर्दन की खाल से खींचा। रिपोर्ट में लिखा गया कि “इस क्रिया को जिस सहजता से अंजाम दिया गया, वह दर्शाता है कि इस प्रकार का हिंसक व्यवहार यहां आम और स्वीकार्य है।” व्हिसलब्लोअर द्वारा सामने लाए गए वीडियो में भी कुत्तों के पैरों को पिंजरे में फंसाने जैसी हिंसा को कैद किया गया है।
  • परिसर में पशुओं को बिना किसी संक्रमण जांच या स्वास्थ्य स्क्रीनिंग के इधर-उधर ले जाया जाता है।
  • मिनीपिग्स को जल निकासी वाले ऐसे फर्श पर खड़ा रखा गया, जहां उनके खुर फंस सकते हैं, जिससे उन्हें चोट लगने का खतरा बना रहता है।
  • व्हाइट यॉर्कशायर नस्ल के सूअरों की मौजूदगी शुरू में छुपाई गई थी। उनके हृदय संबंधी प्रयोगों की जानकारी एक कर्मचारी की अनजाने में हुई स्वीकारोक्ति से सामने आई।
  • संस्थान ने यह दावा किया था कि वहां कोई भेड़ नहीं है, लेकिन निरीक्षकों को वहाँ सात भेड़ें मिलीं।
  • बंदरों को ऐसे संकरे लोहे के प्लेटफॉर्म वाले पिंजरों में रखा गया था जहां वे ठीक से बैठ या लेट भी नहीं सकते थे।
  • 12 दुबली-पतली गायों को बिना मौसम से सुरक्षा के कीचड़ में खड़ा पाया गया।
  • संस्थान द्वारा किए जा रहे पशु देखभाल के दावों की पुष्टि CCTV फुटेज से नहीं हो सकी।
  • कुत्तों को मारने से पहले उन्हें बेहोश करने के लिए आवश्यक सेडेटिव दवाएं इस्तेमाल नहीं की जातीं। वहां अन्य आवश्यक दवाओं की भी भारी कमी पाई गई, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि संस्था में मुक्ति (यूथनेशिया) की कोई उचित प्रक्रिया नहीं है।
  • कुत्तों को दिन में केवल एक बार भोजन दिया जाता है।
  • संस्थान में पशु प्रयोगों में हर पशु का कितनी बार उपयोग हुआ, इसका कोई रिकॉर्ड नहीं रखा गया। निरीक्षकों ने कहा, “रिकॉर्ड-रखने की यह सतही और बिखरी व्यवस्था न केवल नियामक अनुपालन की अनदेखी है, बल्कि पशु कल्याण के प्रति लापरवाह रवैये को दर्शाती है।”
  • किसी भी पशु आवास इकाई में पृथक-वास (quarantine) की व्यवस्था नहीं थी, जिससे संक्रामक बीमारियों के फैलने का बड़ा खतरा बना रहता है।
  • बंदरों को जंगली क्षेत्रों से पकड़ कर लाया गया था, लेकिन स्क्रीनिंग प्रक्रिया में क्यासनूर फॉरेस्ट डिज़ीज़ (KFD) जैसी संक्रमणकारी बीमारियों की जांच नहीं की जाती, जो बंदरों से अन्य बंदरों और मनुष्यों में फैल सकती हैं।
  • संस्थान में न तो कोई “चिंता, भय और तनाव प्रबंधन” प्रोटोकॉल था और न ही प्रयोगों के दौरान जानवरों को सेडेटिव दिए जाते थे। उदाहरणस्वरूप, निरीक्षकों ने देखा कि दो बंदरों पर घाव बनाने के लिए चीरा लगाए जाने वाला प्रयोग बिना बेहोश किए किया जा रहा था।
  • साइट पर कोई संगठित पशु चिकित्सा दस्तावेज उपलब्ध नहीं थे।
  • संस्थान में मौजूद बड़ी संख्या में पशुओं के अनुपात में दवाएं लगभग न के बराबर थीं – न सेडेटिव, न एनाल्जेसिक, न एनेस्थेटिक और न ही कोई आपातकालीन या दर्द निवारक दवा।
  • निरीक्षण के समय सिर्फ दो पशु चिकित्सक मौजूद थे। रात के समय कोई पशु चिकित्सकीय व्यवस्था नहीं थी और रात्रिकालीन कर्मचारी भी पशु आवास इकाइयों में मौजूद नहीं थे।
  • अनुमोदित प्रोटोकॉल में दर्शाई गई संख्या और ज़मीनी वास्तविकता में अंतर पाया गया।
  • निरीक्षकों को बार-बार अनुरोध के बावजूद केवल चयनित CCTV फुटेज ही दिखाया गया।
  • निरीक्षकों ने रिपोर्ट में निष्कर्ष दिया कि इस संस्था में पशु कल्याण और देखभाल को लेकर जो रवैया अपनाया गया है, वह “संरक्षण में रखे गए पशुओं के स्वास्थ्य और भलाई के प्रति गहरी उपेक्षा और असंवेदनशीलता” को दर्शाता है।

निरीक्षकों की रिपोर्ट इस गंभीर निष्कर्ष पर पहुँचती है कि “पालामूर बायोसाइंसेस प्राइवेट लिमिटेड” (PBPL) में देखी गई संचालन संबंधी खामियाँ कोई अलग-थलग घटनाएँ नहीं हैं, बल्कि वे संस्थान की संरचनात्मक, प्रक्रियागत और नैतिक विफलताओं की गहराई से जड़ जमाई हुई प्रणाली को दर्शाती हैं। निरीक्षण के दौरान दस्तावेज़ की गई अवहेलनाओं की मात्रा और गंभीरता यह स्पष्ट करती है कि यह संस्था न तो स्थापित पशु कल्याण मानकों का पालन कर रही है, और न ही नियामक ज़िम्मेदारियों का निर्वहन। ऐसी स्थिति में तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है – विशेष रूप से पशुओं को हटाकर उनका पुनर्वास सुनिश्चित करना आवश्यक है ताकि वे आगे और किसी भी दर्द, तनाव या पीड़ा से बच सकें। इसके अतिरिक्त, पंजीकरण और प्रजनन लाइसेंस की समीक्षा भी अनिवार्य है, क्योंकि संस्था द्वारा बार-बार किए गए गंभीर उल्लंघन निर्धारित मानदंडों की अवहेलना को दर्शाते हैं। हालांकि यह रिपोर्ट सामने आए हुए काफी समय बीत चुका है, अब तक इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। जबकि देशभर के पशु कल्याण और अधिकार संगठनों ने इन पीड़ित पशुओं को सुरक्षित और करुणामय आश्रयों में स्थानांतरित करने तथा उनके पुनर्वास में सहयोग करने की तत्परता पहले ही जता दी है।

PETA इंडिया द्वारा जारी किए गए व्हिसलब्लोअर-आधारित खुलासे में यह सामने आया कि बीगल नस्ल के कुत्तों को इतने अधिक संख्या में पिंजरों में ठूंसकर रखा गया था कि वे एक-दूसरे को घायल कर रहे थे और उनके शरीर से खून बह रहा था। मिनीपिग्स को इतनी बेरहमी से ज़हरीले पदार्थ दिए गए कि उनका खून निकल आया। वहीं, जंगल से पकड़े गए भयभीत बंदरों पर भी अमानवीय प्रयोग किए जा रहे थे। अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, संस्थान में दर्दनिवारक दवाओं का अभाव था, कुछ कुत्ते प्रयोगों के बाद चलने-फिरने तक में असमर्थ हो गए और तड़प-तड़प कर मर गए, और पशुओं के साथ हिंसक व्यवहार आम बात थी। इन सभी क्रूरताओं की पुष्टि अब केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त निरीक्षकों की आधिकारिक रिपोर्ट में भी हो चुकी है।

भारत में पहली बार किसी पशु प्रयोगशाला  के खिलाफ पुलिस द्वारा आपराधिक मामला दर्ज किया गया है। 16 जून 2025 को, तेलंगाना के महबूबनगर ज़िले स्थित बूथपुर पुलिस स्टेशन ने पालामूर बायोसाइंसेस के खिलाफ भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 173(1) के तहत प्राथमिकी (FIR) दर्ज की। यह कार्रवाई भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धाराओं 34, 269, 289, 337 और 429 के संभावित उल्लंघनों के आधार पर की गई है। यह देश का पहला मामला है जब किसी पशु परीक्षण प्रयोगशाला पर पशुओं के साथ क्रूरता के आरोपों को लेकर पुलिस द्वारा औपचारिक रूप से आपराधिक मामला दर्ज किया गया है।

26 जून 2025 को, PETA इंडिया की साइंटिस्ट और रिसर्च पॉलिसी एडवाइज़र डॉ. अंजना अग्रवाल ने कहा,”पालामूर बायोसाइंसेस में पशुओं के साथ की गई भयंकर क्रूरता को सामने आए लगभग 15 दिन बीत चुके हैं और सरकार द्वारा नियुक्त निरीक्षकों की जांच को भी 10 दिन से अधिक हो चुके हैं, फिर भी अब तक इस गंभीर रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है। PETA इंडिया पालामूर बायोसाइंसेस में मौजूद सभी पशुओं को तत्काल बचाकर करुणामय घरों और सुरक्षित पशु आश्रयों में पुनर्वासित किए जाने की माँग करता है – साथ ही इस संस्था में पशुओं का प्रजनन और उन पर किए जा रहे प्रयोगों को स्थायी रूप से रोके जाने की आवश्यकता है।”

पालामूर बायोसाइंसेस में पीड़ित पशुओं के लिए अभी कार्रवाई करें