PETA इंडिया की आपत्तियों पर कर्नाटक उच्च न्यायालय ने लिया संज्ञान, शिवमोग्गा में प्रस्तावित कंबाला कार्यक्रम रद्द

Posted on by Suniti Kaushik

PETA इंडिया द्वारा कर्नाटक उच्च न्यायालय में दायर याचिका के बाद, जिसमें मांग की गई थी कि कंबाला (बैलों की दौड़) जैसी प्रतियोगिताएं उन क्षेत्रों में आयोजित न की जाएं जहां इनका पारंपरिक इतिहास नहीं है जैसे बेंगलुरु और शिवमोग्गा, अब शिवमोग्गा में 19 अप्रैल 2025 को प्रस्तावित कंबाला कार्यक्रम आयोजित नहीं किया जाएगा। शिवमोग्गा स्थित तुंगभद्रा जोडुकरे कंबाला समिति ने न्यायालय को यह आश्वासन दिया है। माननीय उच्च न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि शिवमोग्गा में भविष्य में किसी भी कंबाला कार्यक्रम से कम से कम 15 दिन पहले PETA इंडिया को सूचना दी जाए ताकि संगठन की आपत्तियों पर विचार करने के बाद ही कार्यक्रम को अनुमति दी जा सके।

पिछले महीने, कंबाला समिति ने PETA इंडिया की याचिका में पक्ष रखने की अनुमति मांगते हुए उच्च न्यायालय में एक आवेदन दायर किया था। इस पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश माननीय एन.वी. अंजारिया और न्यायमूर्ति के.वी. अरविंद की खंडपीठ ने समिति को हस्तक्षेप की अनुमति दी। यह निर्णय बेंगलुरु और पिलिकुला जैसे अन्य क्षेत्रों में पहले से लागू उपायों के अनुरूप लिया गया है और इसे पशु-संरक्षण की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है। इस मामले की अगली सुनवाई अब 24 जून 2025 को होगी।

माननीय न्यायालय ने पिलिकुला जैविक उद्यान के पूर्व निदेशक श्री एच. जयप्रकाश भंडारी को भी इस मामले में हस्तक्षेप की अनुमति दी है। उन्होंने अपने आवेदन में यह तर्क दिया कि पार्क के भीतर या आसपास कंबाला का आयोजन वहां के वन्य प्राणियों के लिए तनावपूर्ण और कष्टप्रद होगा।

बैल बेहद संवेदनशील और सजग प्राणी होते हैं। वे स्वाभाविक रूप से सतर्क रहते हैं और किसी भी तनावपूर्ण या हिंसक माहौल में घबराहट और बेचैनी महसूस करते हैं। लेकिन कंबाला जैसी दौड़ों में उनका इस्तेमाल करने वाले लोग जानबूझकर उन्हें डराने और तकलीफ़ देने के तरीके अपनाते हैं — उन्हें मारा जाता है, उन पर चिल्लाया जाता है, और उनकी नाक में कसकर डोरी डाली जाती है ताकि वे भय और घबराहट में दौड़ने को मजबूर हों। PETA इंडिया की जांच में यह सामने आया कि इन निरीह प्राणियों को कई बार बिना भोजन और पानी के घंटों तक बांधकर रखा जाता है। उन्हें डंडों से पीटा जाता है, दर्दनाक नाक की रस्सियों से बांधा जाता है, और दौड़ की शुरुआत में धक्का दिया जाता है, थप्पड़ मारा जाता है और जबरन डराया जाता है। ये सब केवल उन्हें जबरन दौड़वाने के लिए किया जाता है। इन अमानवीय परिस्थितियों का असर उनके शरीर और मन दोनों पर साफ़ दिखाई देता है — वे अत्यधिक लार टपकाते हैं, मुंह से झाग निकलता है और वे बुरी तरह हांफते हैं। यह सब इस बात का संकेत है कि वे असहनीय तनाव और भय से गुज़र रहे होते हैं। इन सभी तथ्यात्मक निष्कर्षों को PETA इंडिया ने एक विस्तृत रिपोर्ट के रूप में संकलित कर जनवरी 2024 में राज्य सरकार को सौंपा था।

2014 में सुप्रीम कोर्ट ने जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड बनाम ए. नागराजा एवं अन्य मामले में एक ऐतिहासिक और तर्कपूर्ण निर्णय सुनाते हुए यह स्पष्ट किया था कि कंबाला और अन्य बैल-आधारित प्रदर्शन संविधान द्वारा पशुओं को प्रदत्त मौलिक अधिकारों और पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं। अदालत ने यह भी माना कि इन आयोजनों में पशुओं को अनावश्यक पीड़ा और मानसिक तनाव झेलना पड़ता है, जो न केवल कानूनन गलत है बल्कि नैतिक रूप से भी निंदनीय है। हालांकि, इस निर्णय के बाद 2017 से तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र की राज्य सरकारों ने अपने-अपने राज्यों में पारंपरिक रूप से आयोजित किए जाने वाले जलीकट्टू, कंबाला और बैलगाड़ी दौड़ जैसे आयोजनों को वैध बनाने के लिए राज्य कानूनों में संशोधन किए। इसके बाद, 18 मई 2023 को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने भी कुछ निर्धारित नियमों और प्रतिबंधों के अधीन इन आयोजनों को सीमित रूप से जारी रखने की अनुमति प्रदान की।

PETA इंडिया लंबे समय से प्रदर्शनों में बैलों और अन्य पशुओं के इस्तेमाल के खिलाफ अभियान चलाता रहा है।

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