PETA इंडिया ने महाराष्ट्र सरकार से अनुरोध किया है कि मुर्गीपालन व्यवसाय में होने वाली अवांछित चूजों की क्रूर एवं गैरकानूनी हत्या पर रोक लगाई जाए!

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12 मार्च 2020

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व्यावसायिक नुकसान की आशंका में राज्य में एक किसान ने  लगभग 2 लाख मुर्गियों को ज़िंदा दफ़ना दिया।

मुंबई – व्यावसायिक नुकसान की आशंका में एक किसान द्वारा 2 लाख मुर्गियों को ज़िंदा दफ़ना दिये जाने की खबर मिलने के बाद पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) इंडिया ने महाराष्ट्र के डेयरी और पशुपालन विभाग को को तत्काल एक पत्र भेजकर इस तरह की क्रूर हत्याओं को रोकने के लिए निर्देश जारी करने तथा अवांछित मुर्गियों की हत्याओं हेतु केंद्र सरकार की सलाहकार संस्था भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड(AWBI) तथा विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन(OIE) द्वारा अनुशंसित विधियों का उपयोग करने का आग्रह किया है । विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन(OIE) दुनिया भर में पशु स्वास्थ्य सुधार के मुद्दे पर काम करने वाली, एक अंतर-सरकारी प्राधिकरण संस्था है जिसका भारत भी एक सदस्य है। इस संस्था का काम जानवरों की सामूहिक हत्या पर रोकथाम लगना व यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी जानवर को अनावश्यक पीड़ा, कष्ठ व तनाव न हो।

PETA समूह ने अपने पत्र में आगाह किया कि, जीवित पक्षियों को दफनाकर मारने के यह क्रूर तरीके, “द प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स एक्ट, 1960” की धारा 3 और 11 का उल्लंघन करते हैं व उस तरह के अपराध हेतु भारतीय दंड संहिता की धारा 429, के तहत अपराधी को जुर्माने के साथ पांच साल तक कारावास की सजा दी जा सकती है।

PETA इंडिया द्वारा महाराष्ट्र के पशुपालन विभाग को भेजे गए पत्र की एक प्रति यहाँ देखी और डाउनलोड की जा सकती है।

मुर्गी व्यवसाय में, अवांछित चूजों को पीसकर, कुचलकर, जलाकर व पानी में डुबोकर मार दिया जाता है, इस तरह की क्रूर और गैर कानूनी तरीकों से की जानवाली हत्याएँ PCA अधिनियम और भारतीय दंड संहिता का उल्लंघन करती हैं । इसीलिए PETA समूह ने केंद्र सरकार से अनुरोध किया है की वो समस्त राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश जारी कर भारत में वर्तमान समय में मुर्गीपालन केन्द्रों  व हैचरी व्यवसायिकों द्वारा की जा रही अवांछित जीवित नर चूजों की ह्त्या के क्रूर तरीकों पर रोक लगाएँ।

PETA इंडिया के CEO एवं पशु चिकित्सक डॉ. मणिलाल वलियाते कहते हैं, “अनगिनत नर चूजों की भीषण हत्या इसलिए होती है क्योंकि वे अंडे नहीं दे सकते और अंडा व्यवसायिकों को इनसे कोई मुनाफ़ा नहीं  मिलता। यह क्रूर प्रथा रुकनी चाहिए। मुर्गी पालकों का यह हैवानियतभरा कर्म, जनता के लिए एक कड़ी चेतावनी है किमुर्गियों को चाहे दफ़नाकार मारा जाये या गला काटकर, मुर्गियों की हत्याएँ करने के सभी तरीके बेरहम हैं और इन्हीं के चलते यह मुर्गीपालन व्यावसायिक, बर्ड फ्ल्यू व उसकेजैसी अन्य घातक बीमीरियों को न्योता देते हैं। अंडा उत्पादन के लिए इस्तेमाल की जानेवाली मुर्गियों के शरीर को क्षतविशक्त कर दिया जाता है, भूखा और बहुत ही छोटे व तारों के पिंजरों में कैद  करके रखा जाता है। जबकि मांस के लिए उपयोग की जानेवाली मुर्गियों को गंदे शेड में रखा जाता है और अधिक मात्रा में मांस प्राप्त करने के उद्देश्य से मुर्गियों की परवरिश मांसल शारीर बनाने हेतु की जाती है, अप्राकृतिक तरीकों से होनेवाली शारीरिक वृद्धि के चलते उनकी हड्डियाँ टूट जाती हैं व वे दिल के दौरे का भी शिकार होती हैं। हम सामान्य जनता से अनुरोध करते हैं की वो इन मासूम मुर्गियों पर रहम करते हमेशा वीगन भोजन का ही चुनाव करें।“

पक्षियों को ज़िंदा दफनाकर, दम घुटने से होने वाली धीमी मौत  इन पक्षियों को अनावश्यक पीड़ा एवं दर्द देती है। AWBI ने रोग नियंत्रण उद्देश्य से पशुओं की सामूहिक हत्या के लिए OIE द्वारा दिशानिर्देशों को अपनाने के संबंध में 2012 और 2014 में परामर्श जारी किए थे। भारतीय संविधान के अनुसार हर राज्य के लिए पशुपालन एक संवैधानिक मुद्दा है तथा भारत OIE का सदस्य होने के नाते,  यह सभी राज्य सरकारों का दायित्व बनता है कि, वह क्षेत्रीय पशु स्वास्थ्य कोड (Terrestrial Animal Health Code) के अध्याय 7.6 के तहत OIE दिशानिर्देशों का पालन करें। कोड यह कहा गया है कि जानवरों को इच्छामृत्यु दिये जाने की आवश्यकता पड़ने जैसे किन्ही प्राकृतिक आपदाओं के उपरान्त जानवरों को मारे जाने की आवश्यकता या फिर उनकी जनसँख्या नियंत्रित करने की दशा में कोड के इस अध्याय में बताए गए तरीकों  का पालन किया जाना चाहिए।

PETA इंडिया जो इस सिद्धांत के तहत कार्य करता है कि “जानवर हमारा भोजन बनने के लिए नहीं हैं”, प्रजातिवाद का विरोध करता है क्यूंकि यह मनुष्य की वर्चस्ववादी सोच का परिचायक है। अधिक जानकारी के लिए कृपया हमारी वेबसाईट PETAIndia.com.पर जाएं।

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