घबराय ‘अमूल’ को PETA इंडिया का सुझाव- ‘डेयरी का त्याग करो’

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27 May 2021

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Hiraj Laljani; [email protected] 

मुंबई- अमूल कंपनी द्वारा वीगन दूध को अपमानित करने वाला विज्ञापन देने के बाद, आज ‘पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) इंडिया ‘ने एक पत्र लिखकर कंपनी को सुझाव दिया है कि वह स्वादिष्ट वीगन दूध की बढ़ती लोकप्रियता को बिना घबराए स्वीकार करें और इस प्रकार के दूध का उत्पादन शुरू कर एक नैतिक और उद्योग-हितैषी निर्णय लें नहीं तो इस तरह का बदलाव अपनाने वाली अन्य डेयरी कंपनियों से अमूल को काफ़ी व्यावसायिक नुकसान का सामना करना पड़ेगा।

PETA इंडिया द्वारा अमूल के मैनिजिंग डाइरेक्टर RS सोंधी को लिखा गया पत्र मांगे जाने पर उपलब्ध करवाया जाएगा ।

अपने पत्र में PETA इंडिया ने बताया कि वीगन खाद्य और पेय पदार्थों की मांग इतनी ज़्यादा है कि Grand View Research ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया कि वर्ष 2028 तक डेयरी विकल्पों का वैश्विक व्यापार USD$52.58 बिलियन तक पहुंच जाएगा। Barclays नामक ब्रिटिश फाइनेंशियल सर्विसेज के विश्लेषकों के अनुसार, इस दशक के अंत तक वीगन खाद्य और पेय उत्पादों के बाज़ार में 1,000% से ज़्यादा की बढ़ौती संभव है और Franchise India Holdings Limited द्वारा चलाई जा रही एक वैबसाइट में वर्ष 2019 में प्रदर्शित एक लेख के अनुसार, भारत में पिछले एक दशक में वीगन जीवनशैली अपनाने वाले लोगों में लगभग 360% की बढ़ौती हुई है।

PETA इंडिया की वीगन आउटरीच कोऑर्डिनेटर डॉ. किरण आहूजा कहती हैं- “आज भारत सहित पूरा विश्व डेयरी से पशुओं एवं पर्यावरण को पहुंचने वाले नुकसान और इसके सेवन से होने वाले अन्य स्वास्थ्य खतरों के प्रति जागरूक हो गया है। PETA इंडिया अमूल से अनुरोध करता है कि वो भी हवा के रुख को देखते हुए स्वादिष्ट डेयरी-मुक्त विकल्पों के उत्पादन शुरू करे क्यूंकी वही आज के ग्राहक की सबसे बड़ी मांग है।“

भारत में, यह जानकार बहुत लोगों को आश्चर्य होगा कि डेयरी उद्योग ही गोमांस उद्योग का सबसे बड़ा अपूतिकर्ता है और ज़्यादातर पारिवारिक फ़ार्म अब बंद हो गए हैं। आज डेयरी उद्योग में प्रयोग की जाने वाली ज़्यादातर गायों और भैसों को फ़ैक्टरी जैसे वातावरण में रखा जाता है और कृत्रिम ढंग (कार्मिकों द्वारा जबरन उनके गुदे में हाथ डाला जाता है और भैसों के वीर्य को गायों की योनि में डाला जाता है) से गर्भधारण कराया जाता है। जन्म के तुरंत बाद बछड़ों को अपनी माताओं से अलग कर दिया जाता है जिससे उनके प्राकृतिक दूध को मनुष्यों को बेचा जा सके। आपने स्वयं अक्सर सड़क पर देखा होगा कि नर बछड़ों को भूखा मरने के लिए लावारिस छोड़ दिया जाता है क्योंकि वह डेयरी उद्योग के लिए दूध का उत्पादन नहीं कर सकते। इनमें से बहुत से नर बछड़ों को उनकी चमड़ी के लिए मौत के घाट उतार दिया जाता है जबकि मादा बछड़ों को अपनी माँ की तरह शोषणपूर्ण जीवन व्यतीत करने हेतु मज़बूर किया जाता है। इन्हें तब तब दूध देने के लिए मज़बूर किया जाता है जब तक इनका शरीर जवाब नहीं दे देता और इसके बाद इन्हें भी लावारिस छोड़ दिया जाता है या सस्ते मांस हेतु मौत के घाट उतार दिया जाता है।

डेयरी उद्योग की विवशता इतनी बढ़ गयी है कि राष्ट्रीय सहकारी डेयरी संघ ने उच्च न्यायलय में अर्ज़ी दायर कर मांग करी है कि केवल जानवरों द्वारा उत्पादित दूध को “दूध” कहलाने की मंजूरी मिले। जबकि वर्ष 2018 में, Smithsonian Magazine ने बताया कि भारत में पेड़-पौधों से उत्पादित नारियल के दूध आदि को “दूध” कहने की प्रथा सदियों पुरानी है और ऐसा कई देशों में होता आ रहा है। आम बोलचाल की भाषा में उन्हें बादाम का दूध  या नारियल का दूध  कहा जाता है।

PETA इंडिया जो इस सिद्धान्त के तहत काम करता है कि “जानवर हमारा भोजन बनने के लिए नही हैं” प्रजातिवाद का विरोध करता है क्यूंकी यह एक ऐसी धारणा है जिसके तहत इंसान इस दुनिया में स्वयं को सर्व शक्तिमान मानकर दूसरी अन्य प्रजातियों का शोषण करना अपना अधिकार समझता है। यह ध्यान देने योग्य है कि Nestlé, Epigamia, Chobani, Danone, और Yoplait जैसी दुनियाभर की बड़ी डेयरी कंपनियाँ अब वीगन विकल्पों में निवेश कर रही हैं।

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