नागपुर के पशुपालन विभाग और मुर्गीपालन उद्योग ने बर्ड फ्लू से संबंधित चेतावनी को दबाने की कोशिश करी

Posted on by Erika Goyal

PETA इंडिया ने नागपुर में एक बिलबोर्ड लगाकर लोगों से वीगन भोजनशैली अपनाने की अपील की थी, ताकि गंदे और तंग मुर्गीपालन केंद्रों से तेज़ी से फैलने वाले बर्ड फ्लू के प्रसार को रोका जा सके। लेकिन इस जागरूकता अभियान को उस समय झटका लगा जब ‘नागपुर पशुपालन विभाग’ के उपायुक्त ने इस बिलबोर्ड को हटाने का आदेश दिया —एक ऐसा फैसला जो न केवल मुर्गियों के कल्याण की उपेक्षा करता है, बल्कि जनस्वास्थ्य खतरों को भी दरकिनार करता है। इस पर आपत्ति जताते हुए PETA इंडिया ने उपायुक्त डॉ. नितिन फुके को पत्र लिखकर उनसे अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने की अपील की है। इस बीच, ‘वेट्स इन पोल्ट्री एसोसिएशन’ ने भी PETA इंडिया के खिलाफ ‘एडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया’ में शिकायत दर्ज की है, जिसमें यह भ्रामक दावा किया गया है कि बर्ड फ्लू केवल पक्षियों को प्रभावित करता है—जबकि सच्चाई यह है कि यह वायरस अब तक कई स्तनधारियों को संक्रमित कर चुका है और वैश्विक स्तर पर कई इंसानों की जान ले चुका है। विरोधों के बावजूद PETA इंडिया पीछे नहीं हटा, हमने बर्ड फ्लू बिलबोर्ड को हटाकर उसी जगह पर अब एक नया बिलबोर्ड लगवाया है, जिसमें अभिनेत्री राधिका मदान पत्तागोभी से बने वस्त्र पहनकर मुस्कुरा रही हैं और लोगों से “नई सोच अपनाएं, वीगन बनें।” की अपील कर रही हैं।

मराठी भाषा में लगे इस बिलबोर्ड पर संदेश लिखा था: “बर्ड फ्लू, हा संकटाचा संकेत आहे. वीगन बना!” जिसका हिंदी अर्थ है: “बर्ड फ्लू, यह संकट का संकेत है, वीगन बनिए!” इस बिलबोर्ड का उद्देश्य लोगों को यह समझाना था कि पशु पालन केंद्रों और जीवित पशु मंडियों में पक्षियों को अक्सर बेहद गंदी, अस्वस्थ और असुरक्षित परिस्थितियों में रखा जाता है। इन जगहों पर पक्षियों की खराब हालत और गंदगी के कारण वायरस फैलने और उसके म्यूटेट (रूप बदलने) करने का खतरा बहुत अधिक होता है। PETA इंडिया ने इस संदेश के ज़रिए यह भी स्पष्ट किया कि प्रत्येक व्यक्ति अपने खान-पान संबंधी फैसलों से भविष्य की महामारियों को रोकने में योगदान दे सकता है। वीगन आहार अपनाना न सिर्फ पशुओं के प्रति करुणा व्यक्त करता है, बल्कि यह सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए भी एक ज़िम्मेदार और सकारात्मक कदम है।

नागपुर में राधिका मदान का बिलबोर्ड 535H+WR2, मोती महल के पास, सदर, नागपुर, महाराष्ट्र – 440001 पर लगवाया है।

वायरोलॉजिस्ट (विषाणु विज्ञानी) चेतावनी दे रहे हैं कि जैसे-जैसे बर्ड फ्लू स्तनधारी जीवों को संक्रमित कर रहा है, यह वायरस मनुष्यों में और उनके बीच अधिक आसानी से फैलने की क्षमता विकसित कर सकता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, H5N1 बर्ड फ्लू — जिसकी मृत्यु दर मनुष्यों में लगभग 60% है — एक ऐसी महामारी का रूप ले सकता है जो COVID-19 से 100 गुना अधिक घातक हो सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि बीमार या मृत पक्षियों, संक्रमित वातावरण (जैसे जिंदा पक्षियों की मंडियाँ), मृत पक्षियों के अवशेष, कच्चा मांस, संक्रमित अंडों के छिलके और कच्चे डेयरी उत्पादों के संपर्क में आने से बर्ड फ्लू संक्रमण का गंभीर खतरा बना रहता है।

संक्रामक रोगों से बचाव में मदद करने के साथ-साथ, वीगन भोजन अपनाने वाले लोग हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के जोखिम को भी कम करते हैं। इसके अलावा, यह भोजन पशुओं को असहनीय पीड़ा से बचाने का एक करुणामय विकल्प है। आज के मांस, अंडा और डेयरी उद्योगों में करोड़ों पशुओं को बड़े बड़े गोदामों में अत्यंत संकुचित और अमानवीय हालात में पाला जाता है। साचे अवक्षतः में होने के दौरान मुर्गियों का गला काट दिया जाता है । अंडा उद्योग में, नर चूजे — जो अंडे नहीं दे सकते — अक्सर बेकार समझे जाते हैं और उन्हें जलाकर, डुबोकर, कुचलकर, जिंदा मछलियों का चारा बनाकर या अन्य क्रूर तरीकों से मार दिया जाता है। डेयरी उद्योग में, बछड़ों को उनकी माताओं से जबरन अलग कर दिया जाता है। सूअरों को दिल में छुरा घोंपकर मारा जाता है, और मछलियों को ज़िंदा रहते हुए ही तड़पाते हुए उनके श्री के टुकड़े टुकड़े कर दिए जाते है और यह सब अत्याचार महज हमारे मांसाहार भोजन के लिए होता है।

मुर्गियाँ भी हमारी ही तरह संवेदनशील और भावनाओं से भरपूर प्राणी हैं। उनका भी एक व्यक्तित्व होता है — वे आपस में गहरे सामाजिक संबंध बनाती हैं, सपने देखती हैं, और आने वाले समय को लेकर उम्मीदें रखती हैं। जैसे हम जीना चाहते हैं, वैसे ही वे भी मरना नहीं चाहतीं। फिर भी, केवल भारत में हर चार घंटे में लगभग 10 लाख जीवित और महसूस करने में सक्षम मुर्गियों को मार दिया जाता है — सिर्फ इसलिए कि लोग उनका मांस खा सकें।

 

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